For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ये मान सरोवर का पंकज, आँखों में ढूंढे है पानी- पंकज मिश्रा की गजल

22 22 22 22 22 22 22 22

कब रात हुई कब सुब्ह हुई, इस पत्थर ने कब है जानी
जब ताप चढ़ा ग़म का बेहद, तब धड़कन ने की मनमानी

चिंगारी पैदा होनी है, इस पत्थर से मत टकराओ
शोला ए इश्क़ ही भड़केगा, ग़र तूने बात नहीं मानी

वो सभी कथानक कल्पित हैं, जिनमें प्रियतम से मिलन हुआ
इस देवदास की प्यास अमिट, जो साथ घाट तक है जानी

ले जाना है तो ले जाओ, ये कुंडल कलम व ग़ज़ल कवच
इतिहास भला कैसे बदले, हर युग में कर्ण परम् दानी

इस दर पर लक्ष्मण का स्वागत, लेकिन वो चरण शरण आये
हे राम अवध में कहीं नहीं, पंडित रावण जैसा ज्ञानी

नज़रें नीची रख कर मिलना, इस ओर उठाना प्रतिबंधित
ये मान सरोवर का पंकज, आँखों में ढूंढे है पानी

मौलिक अप्रकाशित

Views: 1061

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 14, 2017 at 7:26pm
आदरणीय आशुतोष सर मनन नाम लिख दिया है आपने मैं पंकज
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 14, 2017 at 7:26pm
आदरणीय भाई जी सादर प्रणाम आशीर्वाद प्रदान करने के लिए बहुत-बहुत आभार
Comment by रामबली गुप्ता on February 14, 2017 at 7:24pm
वैसे एक बात कहना चाहूँगा.. मतले को छोड़कर मक्ते तक पोरी ग़ज़ल में तुकांत आपने "आनी" रक्खा है। मैं समझ तो रहा हूँ की आप तुकांत "ई" लेकर चल रहे हैं किन्तु यदि मतले में भी तुकांत "आनी" हो जाय तो ग़ज़ल की सुंदरता और भी बढ़ जायेगी। कोशिश करके देखें सिर्फ मतले की तो बात है। जहाँ तक मैं समझता हूँ मतले के ऊला में ये परिवर्तन आसानी से हो सकता है जैसे-"कब रात हुई कब सुब्ह हुई, इस पत्थर ने है कब जानी।" बस सानी में कुछ कोशिश करें। शेष सब शुभ शुभ
Comment by रामबली गुप्ता on February 14, 2017 at 7:24pm
वैसे एक बात कहना चाहूँगा.. मतले को छोड़कर मक्ते तक पोरी ग़ज़ल में तुकांत आपने "आनी" रक्खा है। मैं समझ तो रहा हूँ की आप तुकांत "ई" लेकर चल रहे हैं किन्तु यदि मतले में भी तुकांत "आनी" हो जाय तो ग़ज़ल की सुंदरता और भी बढ़ जायेगी। कोशिश करके देखें सिर्फ मतले की तो बात है। जहाँ तक मैं समझता हूँ मतले के ऊला में ये परिवर्तन आसानी से हो सकता है जैसे-"कब रात हुई कब सुब्ह हुई, इस पत्थर ने कब है जानी।" बस सानी में कुछ कोशिश करें। शेष सब शुभ शुभ
Comment by रामबली गुप्ता on February 14, 2017 at 7:03pm
आदरणीय भाई पंकज जी बहुत ही शानदार ग़ज़ल हुई है दिल से बधाई लीजिये।
Comment by Mohammed Arif on February 13, 2017 at 6:42pm
आदरणीय पंकज मिश्रा जी आदाब, क्या ख़ूब ग़ज़ल कही है आपने ।शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें ।
Comment by नाथ सोनांचली on February 12, 2017 at 3:30pm
आदरणीय पंकज कुमार मिश्रा जी सादर अभिवादन। अच्छी ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ। सादर
Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 12, 2017 at 2:43pm

आदरणीय मनन जी इस रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर 

Comment by Samar kabeer on February 12, 2017 at 2:41pm
अज़ीज़म पंकज कुमार मिश्रा आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
16 hours ago
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service