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कोंपलें सब खुल रही(गीत)/सतविन्द्र कुमार राणा

गीतिका छ्न्द पर गीत प्रयास(14,12)(तीसरी,दसवीं,सत्रहवीं,छब्बीस वीं लघु)अंत गुरु लघु गुरु

ठंड की ठिठुरन चली मधुमास ज्यों है आ रहा

कोंपलें सब खुल रहीं हर वृक्ष अब लहरा रहा


पीत पहने सब वसन यह प्रीत का मौसम हुआ

अब धरा देखो महकती धूप ने ज्यों ही छुआ

पर्ण अब हैं झूमते सब औ पवन है गा रहा

कोंपलें सब खुल रहीं हर वृक्ष अब लहरा रहा।


पीत वर्णी पुष्प चहुँदिक खेत में हैं खिल रहे

सब भ्रमर गाते हुए हर पुष्पदल से मिल रहे

राग औ अनुराग का ये संग सबको भा रहा

कोंपलें सब खुल रहीं हर वृक्ष अब लहरा रहा।


नेह से भरकर बड़े बच्चे बनें हैं आज सब

हाथ में हैं डोर उनके हैं पतंगें ख़ास अब

अब गगन हर रंग को ये देखलो दमका रहा

कोंपलें सब खुल रहीं हर वृक्ष अब लहरा रहा।


मातु शारद को भजें हम पूजतें हैं ज्ञान को

छ्न्द गीतों से बढ़ाते भारती के मान को

की सफल कोशिश किसी ने नाम है उसका रहा

कोंपलें सब खुल रहीं हर वृक्ष अब लहरा रहा।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on February 5, 2017 at 9:22pm

श्रद्धेय सौरभ सर सादर वन्दन!आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहा करती है,आपकी हर टीप से आगामी प्रयास के लिए पथ दर्शन होता है।आपके संकेत को मैं भली भांति समझ पा रहा हूँ।शब्दों की इस प्रकार की आवृत्ति पुनः न हो,यही समुचित प्रयास रहेगा।कथ्य को ध्यान में रखते हुए ,ऐसा प्रयास करता रहूँगा।पुनः सादर नमन,एवं प्रयास पर उपस्थित होकर मार्गदर्शन करने के लिए सादर हारदिक आभार! 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on February 5, 2017 at 9:18pm
आदरणीय विजय निकोरे सर,सराहना के लिए हार्दिक आभार,सादर नमन!

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 4, 2017 at 11:19pm

आदरणीय सतविन्द्र भाई, प्रस्तुत गीत पर हुआ आपका प्रयास और आपकी लगन स्पष्ट महसूस हो रही है. वाह वाह ! 

वैसे, प्रस्तुतीकरण में अब-तब-सब का अतिरेक खटक भी रहा है. किन्तु आपकी रचनाओं को देख कर यह भान अवश्य हो रहा है, और आपके प्रति यह आश्वास्ति अवश्य बन रही है, कि आप पंक्तियों के माध्यम से भावनाओं और भावों को शाब्दिक करने में सुगठित होते जा रहे हैं. आपकी लगन दीर्घकालिक हो. सादर शुभकामनाएँ 

Comment by vijay nikore on February 3, 2017 at 9:51am

 इस अच्छी रचना के लिए बधाई, आदरणीय सतविन्द्र जी

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on February 2, 2017 at 8:57pm
आदरणीय लेक्शन धामी सर सराहना और प्रोत्साहन के लिए सादर हारदिक आभार!
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on February 2, 2017 at 8:52pm
आदरणीय पंकज भाई जी हौंसलाफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत आभार!
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on February 2, 2017 at 8:51pm
आदरणीय बृजेश ब्रज भाई जी सादर हार्दिक आभार!
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on February 2, 2017 at 8:49pm
आदरणीय समर कबीर जी,सादर नमन,आपसे प्रोत्साहन मिला हमेशा ही मेरे लिए अमूल्य है।सादर हार्दिक आभार
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on February 2, 2017 at 8:47pm
आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी प्रयास के अनुमोदन एवं प्रोत्साहन के लिए सादर हारदिक आभार संग नमन!
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 2, 2017 at 12:29pm

आ. भाई सतविंदर जी सूंदर गीत हुआ है हार्दिक बधाई .

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