For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

माटी का दिया ......

जलता रहा
इक दिया
अंधेरों में
रोशनी के लिए

तम
अधम
करता रहा प्रहार
निर्बल लौ पर
लगातार

आख़िर
हार गया वो
धीरे धीरे
कर लिया एकाकार
अंधकार से


रह गया शेष
बेजान
माटी का दिया
फिर जलने को
अन्धकार में
गैरों के लिए

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 710

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on January 18, 2017 at 5:58pm

आदरणीय गिरिराज जी भाई साहिब प्रस्तुति एवम सृजनकर्ता के भावों को अपने स्नेहिल शब्दों से मान देने का हार्दिक आभार। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 17, 2017 at 9:04pm

आदरनीय सुशील भाई , अच्छी लगी आपकी कविता , बधाइयाँ स्वीकर करें । भाव थोड़ा नकारात्मक है , पर मन हमेशा आशावादी रहता भी नहीं कभी निराशा भी छा जाती है ...  मै इसे स्वाभाविक मानता हूँ ।

Comment by Sushil Sarna on January 17, 2017 at 5:43pm

आदरणीय समर कबीर साहिब प्रस्तुति को अपने स्नेहिल शब्दों से मान देने का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on January 17, 2017 at 5:42pm

आदरणीय बृजेश जी, सुरेन्द्र जी एवम मिथिलेश वामनकर जी .... नेट के कारण विलम्ब हेतु क्षमा चाहता हूँ। सर सृजन दिया बाती और अन्धकार के मध्य संघर्ष को केंद्रित कर रचा गया। आ. बृजेश जी व् सुरेन्द्र जी के नज़रिये अगर देखें तो वो अपने स्थान पर सही हैं मैं भी उनके कथन को सही मानता हूँ। हो सकता है मैं अपने विचारों को वो आकार देने में समर्थ न हुआ होऊं फिर भी अपना पक्ष मैं इस प्रकार रखना चाहता हूँ।

माटी का दिया ......


जलता रहा
इक दिया
अंधेरों में
रोशनी के लिए
....... आ. यहां मेरा मूल भाव अँधेरे के लिए रोशन होना है , उसके लिए उसकी रोशनी का भाव लिए है मेरा दिया। मेरे विचार में यदि थोड़ा परोक्ष रूप से सोचें तो मेरे भाव के मूल में नकारात्मकता नहीं सकारात्मकता है क्योँकि वो जल तो अँधेरे को रोशन करने के लिए ही रहा है।

तम
अधम
करता रहा प्रहार
निर्बल लौ पर
लगातार
आख़िर
हार गया वो
धीरे धीरे
कर लिया एकाकार
अंधकार से

...... अब यहां पर मेरा भाव ये है की एक तरफ तो दिया अँधेरे को रोशन करने के लिए जल रहा है दूसरी तरफ अँधेरा उसके मूल भाव को तिरिस्कृत कर अपनी तासीर से मजबूर दिए पर हर पल हावी होने के लिए अपना प्रभाव बढ़ा रहा है। अपनी रोशनी के अंतिम बिंदु तक दिया जलता है लेकिन अन्धकार के बढ़ते प्रभाव के आगे हार जाता है और गहरे अन्धकार में खो जाता है। यहां एकाकार से मतलब अन्धकार में खोना है।

रह गया शेष
बेजान
माटी का दिया
फिर जलने को
अन्धकार में
गैरों के लिए

.... अब यहां मेरा भाव नकारात्मकता से सकारात्मकता की ओर जाता है। हार के भी वो फिर से अन्धकार को रोशन करना चाहता है।

आदरणीय बस इस सन्दर्भ में मुझे इतना ही कहना है। हो सकता है आप संतुष्ट हों या हो सकता है आप संतुष्ट न हों लेकिन मैं अपनी तासीर से नकारात्मक विचारों का पक्षधर नहीं हूँ। प्रतीकों का प्रयोग सृजन को बल प्रदान करने के लिए , उसके सौंदर्य को बढाने के लिए , भावों को अलंकृत करने के लिए मैं करता हूँ।
आ. बृजेश जी , आ. सुरेन्द्र जी एवम आ. मिथिलेश वामनकर जी इस प्रस्तुति पर बस मैं इतना ही कह सकता हूँ। हम सब यहां सीखने के लिए ही हैं ... . मेरा सृजन मेरे भाव मेरा वक्तव्य यदि आपको संतुष्ट नहीं कर पाया तो इसके लिए मुझे खेद है। ..... सदर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 17, 2017 at 12:15pm

आदरणीय सुशील सरना सर, इस प्रस्तुति पर आदरणीय बृजेश जी और आदरणीय सुरेन्द्र जी ने कुछ प्रश्न किये हैं. आपके उत्तर के पश्चात् ही प्रस्तुति पर प्रतिक्रिया देना उचित होगा. सादर 

Comment by नाथ सोनांचली on January 16, 2017 at 8:14am
आदरणीय सुशील सरना जी सादर अभिवादन, दिये का अँधेरे से एकाकार करना का कई भाव हो सकता है, आपने क्या सोच कर लिखा है, यह तो आप जानते होंगे पर दीये का अंधेरे से एकाकार वाली बात तक मै पहुँच नहीं पाया। शेष आपने कुछ सोच कर ही लिखा होंगा, आप की उस सोच का सम्मान और लेखनी को नमन संग बधाई।
Comment by बृजेश नीरज on January 15, 2017 at 10:43pm

क्षमा! यह एक नकारात्मक कविता है. इस विचार के मूल में ही दोष है. रौशनी एक उम्मीद है और इस उम्मीद का सबसे बड़ा प्रतीक दिया है. दिया रौशनी के लिए नहीं जलता, रौशन करने के लिए जलता है.लौ, अँधेरे, अन्याय के खिलाफ संघर्ष का प्रतीक है. महोदय, लौ अँधेरे से एकाकार नहीं होती. लौ का विलुप्त होना, अँधेरे के सामने घुटने टेकना नहीं है. अँधेरे के खिलाफ संघर्ष सतत जारी है, जुगनू, दिया, चाँद, सूरज, विचार, शब्द आदि-आदि के माध्यम से. in बड़े प्रतीकों के साथ इस तरह का व्यवहार मुझे उचित नहीं लगता. बाकी आप सब विद्वान शायद मुझसे सहमत न हों.

Comment by Samar kabeer on January 15, 2017 at 9:03pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,दिये को इस्तेआरा बनाकर आप सब कुछ कह गये, बहुत ख़ूब वाह, इस बहतरीन प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service