For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

यथार्थ या सत्यार्थ (लघुकथा) / शेख़ शहज़ाद उस्मानी

" अच्छा लगता है कि तुम मेरी ज़िन्दगी के इस मुकाम पर भी हमेशा की तरह अपनों की तरह समझाईश देती हो! " उसने सिगरेट का धुआँ मुंह से छोड़ते हुए अपनी इकलौती ख़ास सहेली से कहा।

"समझाईश! कभी असर हुआ मेरी समझाईश का तुम पर? अरे, माँ-बाप के अरमानों का नहीं,तो अपने असली वजूद का अब तो कुछ ख़्याल करो!"

सहेली की बात पर मुस्कराते हुए उसने कहा- "तूने कौन से तीर मार लिए? मैंने तो ऐसी कई सच्चाइयों को नज़दीक़ से जान लिया है, जो तुम्हारी जैसी कई बयान तक नहीं कर पातीं! खुश हूँ मैं अपनी इस 'स्टाइल' से! मज़ा आ रहा है! तू अपनी सोच, बस!"

"सज़ा को मज़ा कहो, या ख़ुदा की रज़ा, सब तुम्हारी अपनी ज़िद से तुमने ही किया, तुम्हारे माँ-बाप का कोई कसूर नहीं था!"- सहेली ने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा। लेकिन सिगरेट के लम्बे कश के साथ भावावेश में शब्दों का ज्वालामुखी उसके मुँह से फूट पड़ा- "उंह... माँ-बाप! 'बेटी-बेटा एक समान' जपने वालों ने लाड़ले बेटे की तरह पाला तो मुझे, लेकिन ...." कहते-कहते उसने अपने आंसू पोंछ कर कहा- "लेकिन लाड़-दुलार में बिगड़ते इस बेटे को समय पर संभाल नहीं पाये, तो कैसे माँ-बाप!"

"बेटे की तरह पालने और लड़कों की तरह स्वच्छंद जीवन अपनाने में अंतर है! क्यों चुना तुमने लड़कों की तरह जीवन जीना?" सहेली ने उसका सिर अपनी गोदी में रखते हुए कहा।

"लड़कों की संगत में रहते-रहते मर्दों की संगत पा ली। मर्दों की तरह वेशभूषा की लत के साथ ही मर्दों को समझने-परखने की लत भी लग गई!"

"जो हुआ,सो हुआ, लेकिन समय पर तुम्हें शादी कर लेनी थी!" सहेली ने पुनः अपनी पुरानी बात दोहरा दी।

"शादी! मर्द जात की तासीर जानने के बाद? अपनी कोख ज़ख्मी करने के बाद?"

"यह क्या कह रही हो तुम! क्या तुमने..?"

"हाँ, तीन बार अबोर्शन करा चुकी हूँ, हर तरह के नशे सीख चुकी हूँ, लड़कों की, मर्दों की सच्ची दुनिया देख चुकी हूँ!" इतना कहकर वह फफक कर रो पड़ी और सहेली नि:शब्द थी।

"चुप हो गईं न ! तू लड़की होते हुए भी लड़की को पूरी तरह न समझ पायी और मैंने लड़की होते हुए लड़कों जैसा जीवन जीकर 'सबको' जान लिया, लड़के-लड़कियों को, मर्द-औरतों को भी!" इतना कहकर उसने एक अजीब सी संतुष्टि की सांस लेते हुए कहा -"लेकिन यह सच है कि एक लड़की को एक लड़की ही समझ सकती है, सचमुच तुम मेरी सच्ची सहेली हो!"

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 574

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 17, 2017 at 7:02pm
इस रचना पटल पर अपना क़ीमती समय देते हुए प्रोत्साहित व मार्गदर्शित करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरम जनाब मिथिलेश वामनकर साहब। कसावट हेतु पुनः अभ्यासरत, प्रयासरत।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 17, 2017 at 6:59pm
इस ब्लोग पोस्ट पर अपना अमूल्य समय देकर प्रोत्साहित करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरम जनाब समर कबीर साहब व जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहब।
__शेख़ शहज़ाद उस्मानी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 17, 2017 at 1:12pm

आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपकी लघुकथा मुझे तनिक बोझिल सी लगी. लघुकथा से जो सन्देश निकलकर आ रहा है उसकी तुलना में अधिक शब्द खर्च हो गए है. मुझे तनिक कसावट की गुंजाइश लग रही है. बहरहाल इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई. सादर 

Comment by Samar kabeer on January 16, 2017 at 11:00am
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,बहुत अच्छी लगी आपकी लघुकथा,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Mohammed Arif on January 15, 2017 at 5:11pm
आदरणीय शेख शहज़िद उस्मानीजी, आदाब ! सामयिक और प्रासंगिक लघुकथा । ढेरों बधाईयाँ ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 15, 2017 at 3:04pm
कृपया अंतिम अनुच्छेद के वाक्यांश // तू लड़की होते हुए भी लड़की को पूरी तरह न समझ पायी// को इस तरह पढ़ियेगा- // तू लड़की होते हुए भी 'ख़ुद' को पूरी तरह न समझ पायी //
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 15, 2017 at 12:27am
रचना पर समय देकर अपनी राय देने व प्रोत्साहन देने के लिए बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद आदरणीय डॉ. विजय शंकर जी।
Comment by Dr. Vijai Shanker on January 14, 2017 at 8:32pm
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी , सत्य और मूल सत्य तक पंहुचना बहुत कठिन है , पर एक साधारण सी बात यह भी है कि जीवन उतना कटु है नहीं , बस जितना कटु हम बना लें , यह बहुत कुछ हम पर ही निर्भर होता है। अच्छी प्रेरक कहानी है , बधाई , सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आसमाँ को तू देखता क्या है अपने हाथों में देख क्या क्या है /1 देख कर पत्थरों को हाथों मेंझूठ बोले…"
12 minutes ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"2122 1212 22 बेवफ़ाई ये मसअला क्या है रोज़ होता यही नया क्या है हादसे होते ज़िन्दगी गुज़री आदमी…"
30 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"धरा पर का फ़ासला? वाक्य स्पष्ट नहीं हुआ "
43 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय Richa Yadav जी आदाब। ग़ज़ल के अच्छे प्रयास के लिए बधाई स्वीकार करें। हर तरफ शोर है मुक़दमे…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"एक शेर छूट गया इसे भी देखिएगा- मिट गयी जब ये दूरियाँ दिल कीतब धरा पर का फासला क्या है।९।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल से मंच का शुभारम्भ करने के लिए बहुत बहुत हार्दिक…"
1 hour ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी आदाब।  ग़ज़ल के अच्छे प्रयास के लिए बधाई स्वीकार…"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"2122 1212 22 बात करते नहीं हुआ क्या है हमसे बोलो हुई ख़ता क्या है 1 मूसलाधार आज बारिश है बादलों से…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"खुद को चाहा तो जग बुरा क्या है ये बुरा है  तो  फिर  भला क्या है।१। * इस सियासत को…"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
5 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"ग़ज़ल~2122 1212 22/112 इस तकल्लुफ़ में अब रखा क्या है हाल-ए-दिल कह दे सोचता क्या है ये झिझक कैसी ये…"
9 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"स्वागतम"
9 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service