For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मेरे कानों में मुहब्बत फुसफुसाया कौन था (ग़ज़ल 'राज ')

2122  2122  2122  212

किसने  होंटों पे तबस्सुम को  सजाया कौन था

छुप के दिल में वस्ल का दीपक जलाया कौन था

 

साँसे मेरी जीस्त मेरी मेरा अपना था वजूद

धडकनों पे मेरी जिसने हक जमाया कौन था

 

जब कभी भीगी तख़य्युल में कहीं पलकें मेरी

शबनमी उन  झालरों से मुस्कुराया कौन था

 

गुफ्तगू के उस सलीके पर मेरा तन मन निसार

बातों बातों में मुझे अपना बनाया  कौन था

 

जब तेरी फ़ुर्कत में  भीगा था मेरा तकिया कभी  

सुब्ह को फिर धूप बन जिसने सुखाया कौन था

  

जब जमाने ने उगाये ख़ार मेरी राह  में

तोड़कर महताब कदमों में बिछाया कौन था

 

जी रही थी तल्खियों के साथ जब ये जिन्दगी

मेरे कानों में मुहब्बत फुसफुसाया  कौन था

----------मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 1001

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 11, 2017 at 9:51pm

आदरनीया राजेश जी , इस खूबसूरत गज़ल के लिये मेरी बधाइयाँ स्वीका र करें ।

जी रही थी तल्खियों के साथ जब ये जिन्दगी

मेरे कानों में मुहब्बत फुसफुसाया  कौन था        -   लाजवाब शेर हुआ ... हार्दिक बधाई ।

Comment by vijay nikore on January 11, 2017 at 1:21pm

इतनी खूबसूरत गज़ल की उमीद आपसे रहती है, और आपने फिर से यह उमीद पूरी करी। बधाई, आदरणीया राज जी।

Comment by Samar kabeer on January 10, 2017 at 8:32pm
बहना मेरे कहे को मान देने के लिये शुक्रिया ।
छटे शैर का सानी मिसरा कमज़ोर है,'जिस'या 'किस'शब्द के बग़ैर शैर में रवानी पैदा नहीं हो सकती,मिसरा ये ही रखें तो बहतर होगा:-
हर क़दम पर जिसने अपना दिल बिछाया कौन था"
मुझे हैरत है इस मिसरे को आपने क्यों नज़र अंदाज़ कर दिया ?

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 10, 2017 at 3:31pm

आदरणीया राजेश दीदी, बहुत कठिन रदीफ़ काफिया लेकर आपने ग़ज़ल कही है. संशोधन के बाद बहुत शानदार ग़ज़ल हुई है. मतला तो जबरदस्त बन गया है. ये शेर बहुत पसंद आये-

साँसे मेरी जीस्त मेरी मेरा अपना था वजूद

धडकनों पे मेरी जिसने हक जमाया कौन था............... वाह वाह 

 

गुफ्तगू के उस सलीके पर मेरा तन मन निसार

बातों बातों में मुझे अपना बनाया  कौन था................... अद्भुत 

 

जब तेरी फ़ुर्कत में  भीगा था मेरा तकिया कभी  

सुब्ह को फिर धूप बन जिसने सुखाया कौन था.................क्या खूब चित्र खींचा है. वाह 

शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 9, 2017 at 9:42pm

आद० समर भाई जी आदाब इस ग़ज़ल पर सच में बहुत दिमाग लगाना पड़ा बहुत कोशिशों के बावजूद भी कुछ त्रुटियाँ रह गई पोस्ट करते हुए आपका ही इन्तजार कर रही थी आपने बहुत अच्छी इस्स्लाह दी है .शम्मा से पहले दीपक ही लिखा था न जाने किस बहाव में आकर फिर शम्मा कर दिया | तोडकर महताब कदमों में बिछाया कौन था पहले ये भी सोचा था आपकी इस्स्लाह के अनुसार इसको अभी एडिट करती हूँ आपका दिल से बहुत बहुत शुक्रिया . 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 9, 2017 at 9:31pm

आद० डॉ० आशुतोष जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया | 

Comment by Samar kabeer on January 9, 2017 at 9:23pm
बहना राजेश कुमारी जी आदाब,ग़ज़ल की ज़मीन बहुत दुश्वार है, फिर भी आपने अपनी कोशिश भर अच्छे अशआर निकाले, दाद के साथ मुबारक बाद पेश करता हूँ ।

बहना कुछ बातें साफ़गोई से करना मेरी मजबूरी है,और मैं ये भी जानता हूँ कि आप ख़ुद भी स्पष्ट वादी हैं ।
मतला मफ़हूम के हिसाब से बहुत मजबूत है मगर रदीफ़ और क़ाफिये में तालमेल न होने से कमज़ोर हो गया है,इसे इस तरह देखिये:-
"किसने होटों पे तबस्सुम को सजाया कौन था
छुप के दिल में वस्ल का दीपक जलाया कौन था" बहना शमअ जलाई जाती है,जलाया नही जाता ।
दूसरा शैर बहुत उम्दा है वाह ।
तीसरे शैर में "तख़य्युल" कर लें ।
चौथे शैर के सानी मिसरे को यूँ करना उचित होगा:-
"बातों बातों में मुझे अपना बनाया कौन था" ।
पांचवें शैर का ऊला मिसरा लय से भटक गया है,इसे इस तरह कह सकते हैं :-
"जब भी फ़ुरक़त में तेरी भीगा मेरा तकिया कभी" ।
छटे शैर का सानी भी मफ़हूम अदा करने से क़ासिर है,'बिछाया'की जगह बिछाये होनना चाहिये क्योंकि "तारे"बहुवचन है न ,इस मिसरे को यूँ कह सकते हैं :-
"हर क़दम पर जिसने अपना दिल बिछाया कौन था"
आख़री शैर बहतरीन शैर हुआ है,जिसे हासिल-ए-ग़ज़ल कहना सही होगा,और ख़ास कर सानी मिसरे ने बहुत महज़ूज़ किया ,इसके लिये अलग से मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 9, 2017 at 9:16pm
आदरणीया राजेश जी रूमानी अहसास से सराबोर कर देने वाली खाओं की दुनिया में ले जाने वाले अहसासों से लबरेज इस शानदार ग़ज़सल के लियेहर्दिक बधाई स्वीकार करें सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
14 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service