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सुनाएये कोई शोक -गीत
आज मन उदास है ॥
भरिये कोई रंग
आज मन , बेमन है ॥

फूलों का रंग भी फीका
भौरे भी दहशतज़र्द है
सब जगह उजड़ा हुआ चमन है
भरिये कोई रंग
आज मन , बेमन है ॥

चलो ,खोलता हू वे सभी परतें
जो पूरी न सकी तुम्हारी हसरतें
किससे कहू , किससे वयां करूं
आज खोता हुआ हर बचपन है
भरिये कोई रंग
आज मन , बेमन है ॥

कुछ चंदे दे दो भाई
महंगाई की मार से
मरने वालों के लिए
खरीदना आज कफ़न है
भरिये कोई रंग
आज मन , बेमन है ॥

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Comment

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 10, 2010 at 10:29pm
Badhiya hai babban bhai, Geet likhaney ka aapka prayas bahut hi badhiya hai,

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 28, 2010 at 1:20pm
//फूलों का रंग भी फीका
भौरे भी दहशतज़र्द है//

"दहशतज़र्द" शब्द गलत है, सही शब्द "दहशतज़दा" होता है !

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 28, 2010 at 12:28pm
बहुत दर्द है इस गीत में बबन भाई ! मगर आखरी बंद में महंगाई की और कफ़न के लिए चंदे का ज़िक्र कुछ अखर सा रहा है ! पिछले बंदों से इस बंद का तारतम्य टूट गया महसूस हुआ, ज़रा इस पर ज़रूर गौर फरमाएं !

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