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गजल(कोई पहले आज बताये..)

नोट नया भी अब हकलाये
कब तक चलना कौन सुझाये?1

सीमाएँ जब हैं निर्धारित
बोलो कौन धता बतलाये?2

ढूँढ रही हैं रोज कतारें,
तहखाने में क्यूँ रिरियाये?3

छोटे-छोटे नोट चहकते
बंद गुलाबी क्यूँ मुरझाये?4

छापा पड़ता लाला के घर
कलुआ बैठ बड़ा मुसुकाये।5

नोट पुराना जलता-बुझता
ढ़ेर घरों में आग लगाये।6

गदहे खाते खेत फिरें सब
मार जुलाहे के सर आये।7
मौलिक व अप्रकाशित@मनन

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Comment

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Comment by Manan Kumar singh on December 18, 2016 at 1:48pm
आभार आदरणीय महेंद्र जी।
Comment by Mahendra Kumar on December 18, 2016 at 10:21am
आदरणीय मनन जी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही आपने। मेरी तरफ से आपको ढेरों मुबारक़बाद। सादर।
Comment by Manan Kumar singh on December 17, 2016 at 10:12am
अब परिमार्जित रूप में,धन्यवाद मोहतरम समर जी
Comment by Manan Kumar singh on December 16, 2016 at 7:23pm
मोहतरम समर जी, आदाब!लाजिमी परिमार्जन करता हूँ।
Comment by Samar kabeer on December 16, 2016 at 5:07pm
जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
मतले के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है ।
तीसरे शैर के ऊला मिसरे में 'जिन्हें'शब्द बहुवचन का है और आपकी रदीफ़ एक वचन,इसलिये 'जिन्हें'की जगह "जिसे"कर लें ।
पांचवें शैर के सानी मिसरे में 'बहुत'की जगह "क्यों"शब्द रखें,लय बाधित हो रही है ।

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"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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