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1222 1222 1222 1222

तेरे जलवे से वाकिफ हूँ तेरा दीदार करता हूँ ।
मुहब्बत मैं तुझे सज़दा यहां सौ बार करता हूँ ।।

नज़र बहकी फिजाओं में अदाएं भी हुई कमसिन ।
बड़ी मशहूर हस्ती हो नया इकरार करता हूँ ।।

न जाने कौन सी मिट्टी खुदा ने फिर तराशा है ।
है कारीगर बड़ा बेहतर बहुत ऐतबार करता हूँ ।।

नई आबो हवा में वो कली खिल जायेगी यारों ।
गुलाबी रोशनाई से लिखा रुख़सार करता हूँ ।।

यहां बेदर्द ख्वाहिश है वहां कातिल निगाहें हैं ।
बड़ी शिद्दत से मैं दिल में दफ़न हर खार करता हूँ ।।

जमाने में रकीबों ने बड़ी कीमत लगा दी है ।
है नीलामी का ये मंजर नया व्यापार करता हूँ ।।

कोई तश्वीर है धुँधली , है जिंदाबाद ये कोशिश ।
अधूरे अक्स को लेकर उसे साकार करता हूँ ।।

तमन्ना रूठ मत जाए तेरे कूचे में दाखिल है ।
शिक़ायत वक्त करता है उसे बेकार करता हूँ ।।

बहुत नजदीक से गुज़री है तेरे हुस्न की खुशबू ।
हवाओं की अदावत से ज़िगर लाचार करता हूँ ।।

--- नवीन मणि त्रिपाठी
अप्रकाशित मौलिक

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 17, 2016 at 3:44pm

आ० राजेश कुमारी जी से सहमत 

Comment by Naveen Mani Tripathi on November 15, 2016 at 11:01pm
आ0 राजेश कुमारी जी सादर नमन
Comment by Naveen Mani Tripathi on November 15, 2016 at 11:00pm
आ0 कबीर सर सादर आभार मैं निर्देशित पंक्तियों को ठीक करता हूँ ।

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Comment by rajesh kumari on November 15, 2016 at 9:24pm

बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आद० नवीन मणि जी दिल से बधाई लीजिये आद० समर भाई जी की बात पर गौर करें थोड़े बदलाव के बाद जिंदाबाद ग़ज़ल होकर निकलेगी वो आपके लिए मुश्किल काम नहीं है 

Comment by Samar kabeer on November 15, 2016 at 5:33pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,इसके लिये मुबारकबाद क़ुबूल करें ।
ग़ज़ल अभी और समय चाहती है,तीसरा शैर रवानी,बयान की वजह से बहुत कमज़ोर हे,और सानी मिसरा लय में नहीं है,क़ाफ़िया की वजह से ।
चौथा शैर भी बहुत कमज़ोर है'रुख़सार करता हूँ'क्या बात हुई?मफ़हूम साफ़ नहीं है ।
पांचवें शैर का सानी मिसरा यूँ करें:-
"बड़ी शिद्दत से दिल में दफ़्न मैं हर खार करता हूँ",सही शब्द है"दफ़्न"।
सातवें शैर में 'तश्वीर'को "तस्वीर" कर लें ।

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