For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

‘वागीश्वरी’ सवैया पर एक प्रयास

१२२ १२२ १२२ १२२ १२२ १२२ १२२ १२

भजो राम को या भजो श्याम को या, भजो नित्य ही मित्र माँ बाप को |

चुनों धर्म का मार्ग सच्चा हमेशा , बढ़ावा न देना कभी पाप को,

सिखाना सभी को सिखाना स्वतः को, भुलाना यहाँ व्यर्थ संताप को,

नई ये हवाएं कहें क्या सुनो तो, सुनो थाप को वक्त की चाप को ||

तजो लाज सारी करो कर्म अच्छे, रहोगे जहां में तभी शान से |

न लेना किसी का न देना किसी का, जिलाता यही मार्ग सम्मान से,

बिना कर्म पाते सभी दुःख देखो, नहीं शान्ति पाते मिले दान से,

इसे सीख जानो इसे ज्ञान मानो, मिला हो भले एक अन्जान से ||

मौलिक/अप्रकाशित.

Views: 788

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 10, 2016 at 8:53am

आदरनीय अशोक भाई , बहुत सुन्दर संदेश देते , इस प्रवाह मय सवैयों के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by Ashok Kumar Raktale on November 8, 2016 at 9:56pm

आदरणीय भाई सत्यनारायण सिंह जी सादर, आप भी वागीश्वरी सवैये पर प्रयास करना चाहते हैं जानकर प्रसन्नता हुई है. आपको छंद अच्छे लगे इसके लिए आपका दिल से आभार. सादर.

Comment by Ashok Kumar Raktale on November 8, 2016 at 9:55pm

आदरणीय समर कबीर साहब सादर नमस्कार, आपको प्रस्तुत छंद पसंद आये मेरी रचना को मान मिला. सादर आभार.

Comment by Ashok Kumar Raktale on November 8, 2016 at 9:51pm

आदरणीय रामबली गुप्ता जी सादर, आपको छंद अच्छे लगे इसके लिए दिल से आभार. आपके द्वारा प्रथम छंद में आये 'या' को पुनरुक्ति दोष की तरह देखा जा रहा है जबकि मुझे वह इसतरह तो कतई नहीं लग रहा है. "न लेना किसी का न देना किसी का" यह उक्ति समाज से सम्बन्ध तोड़ लेने के लिए प्रयुक्त नहीं होती यह लेन-देन की बुराई की ओर इंगित करती है. फिरभी यह मेरा छंद पर प्रयास ही है आपने छंद को जिस गहनता से पढ़ा है मैं उसके लिए आपका पुनः आभारी हूँ और आगे अवश्य ही आपके विचारों का  ध्यान में रखूंगा. सादर.

Comment by Ashok Kumar Raktale on November 8, 2016 at 9:42pm

प्रस्तुत सवैया छंदों को सराहने के लिए दिल से आभार आदरणीय सुशील सरना साहब.सादर.

Comment by Satyanarayan Singh on November 8, 2016 at 2:48pm

आदरणीय अशोक रक्ताले जी सादर,

 दोनो ही वागीश्वरी सवैये सुंदर रचे है आपका प्रयास सचमुच सराहनीय है.जो  मुझे  भी इस विधा को समझने और लेखन कार्य के लिये उत्प्रेरित कर राहा है. अतएव आपका मन से आभार तथा इस  प्रस्तुति हेतु सादर बधाई  

Comment by Samar kabeer on November 7, 2016 at 5:42pm
जनाब अशोक कुमार रक्ताले जी आदाब,बहुत सुंदर वागीश्वरी सवैये लिखे हैं आपने जो अच्छा संदेश दे रहे हैं,और सबसे बढ़िया ये कि मुझे और बहुत कुछ सीखने को मिला,ख़ास कर सवैया का अंतिम 12 मेरे लिये बहुत उलझन पैदा कर रहा था,आपकी रचना से मेरी ये उलझन दूर हुई,इस बहतरीन प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।
Comment by रामबली गुप्ता on November 7, 2016 at 3:50pm
आद0 अशोक भाई जी दोनों ही वागीश्वरी सुंदर हुए हैं हृदय से बधाई स्वीकार करें।
प्रथम सवैये के प्रथम पद में यति के पूर्व 'या' शब्द दो बार आने से पुनरुक्ति दोष प्रतीत हो रहा है जरा एक बार देख लीजियेगा।

दूसरे सवैये का तृतीय पद शेष अन्य तीनों पदों के साथ उतना प्रभावी नही लग रहा। ' न लेना किसी का न देना किसी का' यानि किसी से कोई सम्बन्ध न होना फिर सम्मान से जीने का क्या तातपर्य?

संभव है मैं आपके भावों तक न पहुंच पा रहा होऊं। एक पाठकीय दृष्टिकोण से ऐसा लगा सो लिखा। सादर
Comment by Sushil Sarna on November 7, 2016 at 1:20pm

आदरणीय रक्ताले साहिब इस दिलकश सवैये की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय मिथिलेश भाई, रचनाओं पर आपकी आमद रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करती है.  लिखा-कहा समीचीन और…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
21 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service