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आया मधुमास (अति बरवै पर आधारित गीत)

सजनी ने साजन को, खींच लिया पास |

अमराई फूल गई, आया मधुमास ||

  

धूप खिली निखरी-सी, आयी मुस्कान |

बागों में छेड़ दिया, भँवरों ने तान ||

कलियों के मन जागी, खिलने की आस......... 

खिड़की से झाँक रही, जिद्दी है धूप |

रंग बिना लाल हुआ, गोरी का रूप  ||

सखियों की सुधियों में, कौंधा परिहास........... 

 

डाली है अल्हड पर , फिरभी है भान |

बौराए महुए के , खींच रही कान ||

महक रहे वन-कानन, महका आवास......... 

 

धरती के आँचल में, सरसों के फूल |

विरहन के नैनों में , चुभते हैं  शूल ||

डोल रहा डोल रहा, पल-पल विश्वास.......... 

 

मौलिक/अप्रकाशित.

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Comment

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Comment by RAMESH SHARMA on April 10, 2017 at 4:45pm

वाह आदरणीय मधुमास  पर क्या खूब सूरत दोहे रचे हैं 

Comment by Ashok Kumar Raktale on February 8, 2017 at 2:10pm

आदरणीय सुरेश कुमार जी सादर आपकी मन मुग्ध करती प्रतिक्रिया के लिए दिल से आभार. सादर नमन.

Comment by Ashok Kumar Raktale on February 8, 2017 at 2:10pm

आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम,आपके सहयोग के लिए अतिशय आभार. सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 8, 2017 at 8:12am

सादर धन्यवाद, आदरणीय अशोक भाई जी

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on February 7, 2017 at 8:25pm
आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जजी सादर नमन! बधाई!बधाई!बधाई!हार्दिक बधाई!दिल को छू गया यह सुंदर गीत!
Comment by Ashok Kumar Raktale on February 6, 2017 at 10:10pm

जी ! आदरणीय सौरभ जी  सादर, आपके सुझावों से सचमुच गीत में निखार आया है ,मैं आपके सुझावों को अपनी रचना में लागू करता हूँ. सादर आभार.

Comment by Ashok Kumar Raktale on February 6, 2017 at 10:07pm

गीत को पसंद कर उत्साहवर्धन करने के लिए दिल से आभार आदरणीय डॉ. आशुतोष मिश्रा जी. सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 6, 2017 at 9:47pm

आदरणीय अशोक भाई जी, आप इस रचना का संशोधित स्वरूप प्रतिस्थापित करें, यह आपकी सदाशयता होगी. साथ ही, ऐसा हुआ तो वह मेरे लिए भी सम्मान की बात होगी. मिलजुल कर हमने जो प्रयास किये वो गीत को जैसी बुनावट दे रहा है वही किसी रचनाकर्म पर अपेक्षित है.
हार्दिक आभार आदरणीय

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 6, 2017 at 3:19pm

आदरणीय अशोक जी प्रकृति के शानदार चित्रण के साथ विरहनी के वियोग का समायोजन करता शानदार गीत इस गीत के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर 

Comment by Ashok Kumar Raktale on February 6, 2017 at 1:33pm

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सादर, आपसे मिली प्रतिक्रिया सचमुच ही मेरे प्रयास को बहुत बल दे रही है. आपने सच ही कहा है आदरणीय सौरभ जी ने सम्प्रेषणीयता की कमी को देखते हुए जो संशोधन सुझाए हैं वह गीत में जान डाल दे रहे हैं. आपके साथ-साथ ही पुनः आदरणीय सौरभ जी का भी आभार व्यक्त करता हूँ. सादर.

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