For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

2122 1212 22/112

.
आह मज़लूम ने भरी होगी.
आग यूँ ही नहीं लगी होगीI

एक गोली कहीं चली होगी.
एक दुनिया उजड़ गई होगीI

शर्म से लाल हो गया पीपल,
बेल कोई लिपट गई होगीI

झूमकर नाचने लगी मीरा, 

शाम की बांसुरी बजी होगीI

जुगनुओं का हुजूम जब निकला,
चाँद की नींद उड़ गई होगीI

आज तक भी है अनगढ़ा पत्थर,
जिसको छैनी बुरी लगी होगीI

रो रही अब कटी फटी सी पतंग,
डोर की बाँह छोड़ दी होगीI  


दर्द से आज तक हो नावाकिफ,
यार! तुम से न शायरी होगीI
.
(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 1614

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on October 19, 2016 at 11:29am

आपकी मुक्तकंठ प्रशंसा हेतु दिल से आपका शुक्रिया अदा करता हूँ आ० सुरेन्द्र नाथ सिंह कुशक्षत्रप जीI


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on October 19, 2016 at 11:26am

दिल से आपका शुक्रिया अदा करता हूँ आ० रवि शुक्ला भाई जी, आपकी सराहना किसी पुरुस्कार से कम नहींI


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on October 19, 2016 at 11:25am

हार्दिक आभार आ० प्रमोद श्रीवास्तव जी.


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on October 19, 2016 at 11:24am

गज़ल पसंद करने हेतु आपका हार्दिक आभार आ० सीमा सिंह जीI


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on October 19, 2016 at 11:23am

मेरे पीर-ओ-मुरशिद, मैंने कतई आपके कहे को गलत ठहराने की हिमाकत नहीं की हैI वैसे बाबा तुलसीदास जी कहन के बाद मेरे लिए बात एकदम शीशे की तरह साफ़ थीI मैंने सिर्फ कारीन के आगे फकत अपना पक्ष रखने की कोशिश की हैI वैसे पंजाब में भी पतंग को गुड्डी ही कहा जाता हैI      

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on October 18, 2016 at 4:49pm
आदरणीय योगराज प्रभाकर महोदय किस किस शेर की तारीफ करें, जितनी करें उतनी कम है।नख से लेकर शिखा तक मुबारकबाद कबूल फरमाएं । दूसरे आदरणीय समर कबीर साहब जी को भी हार्दिक बधाई जिनके माध्यम से 'पतंग'के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी हासिल हुई। पुनः बधाई स्वीकार करें । सादर ।
Comment by Samar kabeer on October 18, 2016 at 3:26pm
बिराद्रम जनाब योगराज प्रभाकर साहिब आदाब,

"क़ासिद के आते आते ख़त इक और लिख रखूँ
मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में"

आपने "पतंग" के स्त्रीलिंग होने के बारे में जो मिसालें पैश की हैं वो मेरे लिये नई नहीं है,यहाँ इस मंच पर ये चर्चा इसलिये शुरू की कि मंच को इसका लाभ मिल सके इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि पतंग शब्द पूरी तरह पुल्लिंग है हिन्दी और उर्दू के शब्द कोष में इसे पुल्लिंग ही बताया गया है , ये अलग बात की हम इसे स्त्रीलिंग के तौर पर इस्तेमाल कर लेते है।

कुछ दिनों पहले की बात है मैंने अपनी एक ग़ज़ल एक मंच पर पोस्ट की थी,उस मंच के एडमिन बहुत ज़हीन और आप ही की तरह ज्ञानी है, उस ग़ज़ल का ये शैर :-

हम सिखा देंगे तुम्हे पैच लड़ाने का हुनर
हमने बचपन में पतंग ख़ूब उड़ाई हुई है

मेरी ग़ज़ल पोस्ट करने से पहले उन्होंने मुझे फ़ोन किया और ये बताया कि पतंग शब्द तो पुल्लिंग है और आपने इसे स्त्रीलिंग बाँधा है ,मैंने भी आपही की तरह ये सारी मिसालें जो आपने दी है उनके समक्ष रखीं और इसके बाद मैंने ये बात तस्लीम की कि वाक़ई हिन्दी उर्दू शब्दकोष के हिसाब से ये शब्द पुल्लिंग ही है, लेकिन अगर कोई मेरे इस शैर पर ऐतराज़ करता है तो उसका जवाब मैं दे दूँगा और वो जवाब ये है कि पतंग को "गुड्डी" भी कहा जाता है जो स्त्रीलिंग है और इसके बाद भी अगर आप मेरे शैर से मुत्मइन नहीं है तो मैं आपको इजाज़त देता हूँ कि आप मेरे इस शैर को ग़ज़ल से ख़ारिज कर सकते है, इस पर उन्होंने कहा कि मैं इस शैर को आपकी ग़ज़ल से ख़ारिज नहीं करूँगा और अगर किसी ने ऐतराज़ किया तो उसका जवाब आप नहीं मैं दूँगा।

मुझे उम्मीद है कि आप मेरे मक़सद से वाक़िफ़ हो गए होंगे कि मैंने आपके शैर पर ऐतराज़ नहीं किया बल्कि मंच को ये बताना चाहता था कि "पतंग" शब्द पुल्लिंग है स्त्रीलिंग नहीं। मेरी तरफ से पुनः बधाई स्वीकार करें इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए ।

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on October 18, 2016 at 10:19am

परम आदरणीय समर कबीर साहिब, हिंदी में पतंग को स्त्रीलिंग के तौर पर लेना बिलकुल जायज़ हैI. इसके हक में हालाकि इस हक़ीर के पास दलाइल का अम्बर मौजूद है, लेकिन मैं चंद मिसालों में अपनी बात मुकम्मिल करूँगा.  

'रामचरितमानस' में महाकवि तुलसीदास ने ऐसे प्रसंगों का उल्लेख किया है, जब भगवान् श्रीराम ने अपने भाइयों के साथ पतंग उड़ाई थी। इस संदर्भ में 'बालकांड' में उल्लेख मिलता है-

'राम इक दिन चंग उड़ाई
इंद्रलोक में पहुँची जाई॥' (चंग=पतंग)

'तिन तब सुनत तुरंत ही, दीन्ही छोड़ पतंग।
खेंच लइ प्रभु बेग ही, खेलत बालक संग।'

इसके इलावा ऐसे बहुत से लोकप्रिय गीत भी हैं जहाँ पतंग को स्त्रीलिंग की तरह लिया गया है:

-'न कोई उमंग है, न कोई तरंग है, मेरी ज़िंदगी है क्या, एक कटी पतंग है - कटी पतंग
-'अरी छोड़ दे सजनि‍या छोड़ दे पतंग मेरी छोड़ दे' – (नागिन 1954)
-'चली-चली रे पतंग मेरी चली रे' – (भाभी 1957)
-तेरी-मेरी नज़र की डोरी, लड़ी जो चोरी-चोरी…. तो दिल की पतंग कट गई….

उर्दू शायरी में पतंग को पुल्लिंग की तरह उपयोग किया जाता है, लेकिन वहां भी पतंग को धड़ल्ले से स्त्रीलिंग माना और बरता गया है, इस सिलसिले में चंद फुटकर अशआर भी मुलाहिजा फरमाएँ:

नफ़रत के साथ प्यार की मीठी तरंग है
माँझा है काट-दार रंगीली पतंग है (काजी हसन रज़ा)

पतंग टूट के आँगन के पेड़ में उलझी
शरीर बच्चों की यलग़ार मेरे घर पहुँची (सिब्त अली सबा)

माँझा कोई यक़ीन के क़ाबिल नहीं रहा
तन्हाइयों के पेड़ से अटकी पतंग हूँ (सूर्यभानु गुप्त)

जश्न-ए-मुरव्वत में लोगों की ऊँची उड़ी पतंग
मर्ग-ए-मुरव्वत में उन सब का 'अनवर' रोया नाम (अनवर सदीद)

जब तक है डोर हाथ में तब तक का खेल है
देखी तो होंगी तुम ने पतंगें कटी हुई (मुनव्वर राणा)

हर पाँव से उलझा हूँ कटी डोर के मानिंद
'तारिक़' मिरी क़िस्मत की पतंग जब से कटी है (शमीम तारिक़)

अंत में यह ग़ज़ल आपकी खिदमत में जनाब ज़फर इकबाल साहिब की उर्दू ग़ज़ल पेश कर रहा हूँ:

तिलिस्म-ए-होश-रुबा में पतंग उड़ती है
किसी अक़ब की हवा में पतंग उड़ती है

चढ़े हैं काटने वालों पे लूटने वाले
इसी हुजूम-ए-बला मैं पतंग उड़ती है

पतंग उड़ाने से क्या मनअ कर सके ज़ाहिद
कि उस की अपनी अबा में पतंग उड़ती है

ये आप कटती है या काटती है दूसरी को
बस एक बीम-ओ-रजा में पतंग उड़ती है

कहीं छतों पे बपा है बसंत का त्यौहार
कहीं पे तंगी-ए-जा में पतंग उड़ती है

कहीं फ़लक पे सरकती है सरसराती हुई
कहीं दिलों की फ़ज़ा में पतंग उड़ती है

खुला है इस पे कुछ ऐसे बहार का मौसम
है रुख़ पे रंग क़बा में पतंग उड़ती है

ये ख़्वाब है कि उलझता है और ख़्वाबों से
ये चाँद है कि ख़ला में पतंग उड़ती है

उमीद-ए-वस्ल में सो जाएँ हम कभी जो 'ज़फ़र'
तो अपनी ख़्वाब-सरा में पतंग उड़ती है

Comment by Samar kabeer on October 17, 2016 at 5:53pm
जनाब योगराज प्रभाकर साहिब आदाब,वाह वाह बहुत ख़ूब क्या कहने हैं इस ग़ज़ल के,हर शैर अपने आप में लाजवाब और क़ाबिल-ए-सताइश है ,मगर ये शैर तो दिल लूट गया:-
शर्म से लाल हो गया पीपल
बैल कोई लिपट गई होगी
इस ग़ज़ल पर दिल से ढेरों दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।।
एक बात बताना चाहूंगा हुज़ूर-ए-वाला कि सातवें शैर में "पतंग"शब्द पुल्लिंग है, देखियेगा ।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 17, 2016 at 4:23pm
आज तक भी है अनगढ़ा पत्थर,
जिसको छैनी बुरी लगी होगीI

रो रही अब कटी फटी सी पतंग,
डोर की बाँह छोड़ दी होगीI

दर्द से आज तक हो नावाकिफ,
यार! तुम से न शायरी होगीI बहुत खूब ।

आदरणीय सर बेहद खुबसूरत गज़ल कही है । प्रणाम सर ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service