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रामभरोसे (लघुकथा)राहिला

"अरे अब चुप भी हो जा।लड़के के नम्बर तेरे नाराज़ होने से बढ़ नहीं जायेंगे।जैसे तू डाक्टर बन गया ,वो भी बन जायेगा।सीटें तो मिलनी ही हैं वो कहाँ जाएँगी।"
"आप उसे बढ़ावा ना दें पिताजी!"
"अरे भई!मैं उसे कोई बढ़ावा नहीं दे रहा।बस,तू अब ये किच-किच बंद कर।मेरी तबियत वैसे भी सुबह से कुछ ठीक नहीं हैं।कह कर वो धम्मसे सौफे पर गिर गए और पसीने - पसीने हो गए।
"क्या हुआ आपको? "घबराकर राजेश ने उन्हें सम्हाला।लेकिन जल्दी ही एक हृदय रोग विशेषज्ञ होने के नाते उसे समझते देर ना लगी ,मामला हृदयघात का है।
"राहुल...!,राहुल!जरा जल्दी आ ।उन्होंने अपने पुत्र को आवाज़ दी।
"जी! पापा जी!"लड़का आवाज़ सुन तुरंत आ गया ।
"जरा जल्दी से पेन कागज़ लेकर आ ।मैं कुछ इंजेक्शन लिख कर दे रहा हूँ, फौरन ले आ।तेरे दादा को हार्ट अटैक आया है।"
"जी!,अभी लाया ।"वो फिर अंदर की ओर दौड़ा।राजेश ने फौरन कुछ इंजेक्शन एक पर्चे पर लिख दिए।
"अरे सुन राहुल!वहीं पास में डाक्टर शर्मा बैठते हैं ना उन्हें भी बुला लाना।" वे कराहते हुए बोले।
"जी!"कह कर वो मेडिकल की ओर दौड़ा।
"हद करते हैं पिताजी!उसे क्यों बुलाया ?वो क्या कर लेगा ।मैं क्या मर गया हूँ।"
उसके होते हुए इस तरह किसी दुसरे डाक्टर को यूँ बुलाना राजेश को कहीं न कहीं कचोट गया।
"तू नाहक बुरा मान रहा है।वो कुछ नहीं कर लेगा ।करेगा तो तू ही,पूरा भरोसा है तुझपर।वो तो जरा तसल्ली के लिये बुलवा भेजा।" उन्होंने नज़र चुराते हुए कहा।
मौलिक एवं अप्रकाशित।

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Comment by Nita Kasar on August 28, 2016 at 3:42pm
आरक्षण की बैसाखी थाम कर बेटा कितना क़ाबिल बन पायेगा संदेहजनक है ।सच ही कहा है जैसा बोते है वैसा ही काटते है ।आख़िरकार संस्कार घर से ही मिलते है बधाई आपको आद०राहिला जी ।
Comment by pratibha pande on August 26, 2016 at 10:19am

दादा जी तो बच जायेंगे पर दूसरे गरीब लोग जो इन के  भरोसे हैं उनको तो राम ही बचाए   ...एक संवेदनशील मुद्दा है ये और आपने कथा भी कसी हुई लिखी है   दिल से बधाई लें आप राहिला जी 


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Comment by rajesh kumari on August 25, 2016 at 11:30am

पिता को अच्छे से पता है की रिजर्वेशन से बेटा डॉक्टर बना है मगर कह नहीं सकता कहीं बेटे को बुरा न लगे दूसरे  डॉक्टर को बुलाना समझदार के लिए इतना ही बहुत है बहुत जबरदस्त गहरा कटाक्ष है इस  रिजर्वेशन सिस्टम पर बहुत बेहतरीन लघु कथा लिखी है राहिला जी दिल से बधाई स्वीकारें |

Comment by Samar kabeer on August 23, 2016 at 3:01pm
मोहतरमा राहिला साहिबा आदाब,आप के क़लम की धार दिन ब दिन पैनी होती जा रही है, ये लघुकथा भी बहुत अच्छी लगी,दिल से बधाई स्वीकार करें ।

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