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टीस(लघुकथा)राहिला

"अब आप रंज ना करें महात्मा जी!ऐसे भविष्य का भान आपको ही क्या ,किसी को ना था ।हमने तो सुनहरे भारत का सपना संजोया था।अब यूँ रंजीदा होने से क्या हासिल।"
"रंज, बहुत छोटा शब्द है पटेल साहब!हम सब ने अपने वतन की एकता को लाखों के खून से सींचा था ।और आज उस वृक्ष के अस्तित्व के नाम पर सिर्फ यहाँ समृति चिन्ह नजर आ रहा है।"
"आपको क्या लगता है , क्या हमने अपना प्यारा वतन गलत हाथों में सौंप दिया?"भगत जी व्याकुल हो बोले।
"नहीं भगत जी ऐसा नहीं हो सकता ।आप ऐसा ना कहें ।ये न भूलें आप जिनकी बात कर रहे हैं वो उन लाखों देश भक्तों के वंशज हैं।कहीं ना कहीं उस एकता का अंश अवश्य होगा।"आज़ाद बोले
"लेकिन कहाँ?,शाखाएँ तो पहले ही टूट कर अलग हो चुकी थीं।बहुत दिनों तक बस उम्मीदों का ठूँठ दिखाई पड़ता रहा ।अब वो भी नजर नहीं आता।"मांयूसी भरे लहज़े में बापू फिर बोले
"आप मांयूस ना हों।उस वृक्ष की जड़े हो सकता है बाक़ी हों।शायद उनमें अब भी जान हो।चलो खोद कर देखते हैं।"ज्यों ही ये बात अशरफ ने कही समर्थन में बाबा साहब बोले -
"बिल्कुल सही कहा भाई!, हमनें उस समय उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा जब उम्मीद की वजह बाक़ी नहीं थी तो अब क्यों छोड़ें!जड़ में जान बाक़ी होगी तो कभी न कभी पीके फूटेंगे ही ।"
सारे मिल कर चिन्हित जगह पर खुदाई करते हैं ।लेकिन काफी गहराई तक खोदने के बाद भी जडें नहीं मिली।
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by rajesh kumari on August 23, 2016 at 8:25pm

इस लघु कथा के माध्यम से देश की अखंडता एकता पर करारा तीक्ष्ण कटाक्ष किया है सचमुच बहुत गंभीर और विचारणीय मुद्दा है हमे उस पेड़ को अपनी कलम के माध्यम से पुनर्जीवन देना है |आपको बहुत बहुत बधाई प्रिय राहिला जी 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on August 23, 2016 at 6:55pm

वाह बहुत ही सुन्दर तरीके से ऐतिहासिक  तथ्यों पर आधारित टीस को उभारा गया है ... सचमुच हम जड़ को पहले ही खोद चुके हैं...बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आप बधाई की पात्र है आदरणीया राहिला जी!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 23, 2016 at 1:05pm
पहले ही जड़ खुद चुकी थी आदरणीय राहिला जी शानदार रचना के लियहर्दिक बधाई सादर
Comment by नयना(आरती)कानिटकर on August 21, 2016 at 1:55pm

 राहिला जी आपने बडी कुशलता से ठीस को उभारा है.सभी अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए जडो को भी नही जोड पाए. सार्थक रचना

Comment by Sushil Sarna on August 21, 2016 at 1:04pm

आदरणीया राहिला जी एक यथार्थ को आपने बड़ी ही रोचकता से चित्रित किया है। स्वार्थ की कुल्हाड़ी ने जड़ों को भी नहीं छोड़ा। अत्यंत संवेदनशील विषय को आपने प्रस्तुत किया है।  हार्दिक बधाई स्वीकार करें। 

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