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तरह ग़ज़ल -याद रख अगर कच्चा रास्ता नहीं होता

तरह ग़ज़ल
याद रख,अगर कच्चा रास्ता नहीं होता
आज तू सड़क पर यूँ दौड़ता नहीं होता ।
आदमी करेगा बेशर्म हरक़तें अक्सर,
ना समझ नहीं है,के जानता नहीं होता!!
तेज गति समय पहले मौत को बुलाती है
आप धीरे चलते तो हादसा नहीं होता
प्यार के मरासिम ऐसे निभाये जाते हैं
फूल को देखना तो है तोड़ना नहीं होता
क्यों ख़फा है दुनिया से,फैसला बदल अपना
इस जहाँ में हर कोई बेवफ़ा नहीं होता वो तो खूबसूरत है,हर नज़र उसी पर है
ग़म न कीजिए,वो गर आपका नहीं होता।
वो हजारों मीलों से प्यार देख लेते हैं
इश्क करने वालों में फासला नहीं होता
झूठ के सहारे हम तो "सुजान "जीते हैं
जिंदगी की सच्चाई का पता नहीं होता ।

मौलिक व अप्रकाशित।
सूबे सिंह "सुजान"

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Comment

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Comment by सूबे सिंह सुजान on July 15, 2016 at 2:07pm
जयनित जयनितकुमार जी,बिल्कुल सही फरमाया ।
दरअसल ़यह लिखने में गलत हो गया है ।
"फूल देखना तो है तोड़ना नहीं होता ।"
ऐसे होना चाहिए ।
Comment by जयनित कुमार मेहता on July 14, 2016 at 9:31pm
आदरणीय सूबे सुजान जी, ग़ज़ल अच्छी हुई है,बधाई आपको।

चौथे शेर का सानी मिसरा बहर में बैठ नहीं रहा है-

"फूल को देखना तो है तोड़ना नहीं होता"
Comment by सूबे सिंह सुजान on July 14, 2016 at 12:32pm
गिरिराज भंडारी, जी आपकी बात ठीक है । भविष्य में ख्याल रखूँगा रखूँगा।
Comment by सूबे सिंह सुजान on July 14, 2016 at 12:26pm
Samar kabeer, जी आपकी बात ठीक है आभार ।
Comment by सूबे सिंह सुजान on July 14, 2016 at 12:25pm
सतविन्दर् जी शुक्रिया शुक्रिया ।
Comment by सूबे सिंह सुजान on July 14, 2016 at 12:25pm
शिज्जू शिज्जू जी आपका आभार है ।
Comment by सूबे सिंह सुजान on July 14, 2016 at 12:23pm
Shyam narain verma,जी आभार

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 14, 2016 at 11:43am

आदरणीय सूबे सिंह सुजान भी , अच्छी ग़ज़ल हुई है , दिल से बधाइयाँ आपको । बहर का उल्लेख किया जाना चाहिये था , आपने नही किया है ।

Comment by Samar kabeer on July 13, 2016 at 6:17pm
जनाब सूबेसिंह सुजान जी आदाब,ग़ज़ल अच्छी हुई है, बधाई स्वीकार करें ।
ग़ज़ल कहते वक़्त अल्फ़ाज़ की बंदिश चुस्त होना चाहिये, इसका ख़ास ध्यान रखिये ।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on July 13, 2016 at 5:21pm
वाह्ह्ह् बेहतरीन ग़ज़ल।हार्डकी बधाई आदरणीय

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