For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दो कोड़ी की औक़ात (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

बहुत तेज़ धूप में राहगीर ज़ल्दबाज़ी में सड़क के विभाजक (डिवाइडर) पर चढ़कर उस पार जा रहा था। तभी उसकी नज़र डिवाइडर पर बैठे एक मरियल से भिखारी पर पड़ी, जो बार-बार अपने खाली कटोरे और चप्पलों को चूमकर माथे से लगा रहा था। उस राहगीर से रहा नहीं गया। उसने उस भिखारी से वह सब करने की वज़ह पूछी।

उसने अपने पेट पर हाथ रखकर कहा, "खाली कटोरा, खाली पेट; आज कुछ नहीं मिला हम दोनों को, देख! भूख का दर्द बांट रहे हैं, भैया!"

"लेकिन तुम चप्पलों को भी चूमकर माथे से क्यों लगा रहे हो?" - राहगीर ने पूछा।

भिखारी ने चप्पलों पर माथा टेक कर कहा- "जिस ने हमारी तकलीफ़ को महसूस किया, वह दोबारा नहीं दिखाई दिया, सो उसकी दी हुई चप्पलों में उसे देख लेता हूँ, भैया!"- कहकर वह अपने तलवे सहलाने लगा।

राहगीर ने तुरंत अपना पर्स खोलकर नोटों के बीच में से दो रुपये का सिक्का निकाला और उस भिखारी के कटोरे में सिक्का डालकर जाने लगा।

मुट्ठी बंद करते हुए भिखारी ने धीरे से कहा-"दो कोड़ी की औक़ात!"

कुछ सुनकर राहगीर ने पलटकर पूछा- "कुछ कहा तुमने?"

"कुछ नहीं भैया, बस ये कहा कि सड़क ऐसे पार मत किया करो ज़ल्दबाज़ी में!" यह कहकर वह उसके सूट-बूट और बैग को निहारने लगा।

[मौलिक व अप्रकाशित]

Views: 926

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by pratibha pande on July 6, 2016 at 7:20pm

सुन्दर रचना सुगढ़ित शिल्प में ,  हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय उस्मानी जी 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 6, 2016 at 4:46pm
रचना पर समय देकर अनुमोदन व सराहना करने के लिए व अपने विचार साझा करने के लिए हृदयतल से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय राजेन्द्र कुमार दुबे जी, आदरणीय महेन्द्र कुमार जी व आदरणीय सुशील सरना जी। पाठकगण कृपया 'कोड़ी' के स्थान पर "कौड़ी" पढ़ियेगा।
Comment by Sushil Sarna on July 6, 2016 at 4:28pm

अादरणीय उस्मानी साहिब हकीकत को बयां करती इस लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई। 

Comment by Mahendra Kumar on July 6, 2016 at 11:33am
अक्सर निचले पायदान पे खड़ा व्यक्ति ऊपर खड़े व्यक्ति की हक़ीक़त को आसानी से पहचान लेता है। इस वास्तविकता को बयां करती लघुकथा के लिये हार्दिक बधाई, आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी! मेरे हिसाब कोड़ी की जगह कौड़ी होगा। आप देख लीजिएगा, सादर!
Comment by Rajendra kumar dubey on July 6, 2016 at 11:22am
आदरणीय उस्मानी जी सूटबूट वाले की औकात का आकलन एक भिखारी ही कर सकता हैं बहुत ही बेहतरीन लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
17 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service