For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

​ग़ज़ल ..भूख के चर्चे हुये हैं मुफलिसी की बात है...

2122        2122       2122      212

हो बड़े मगरूर अपनी जीत मेरी हार में
हम लुटा देते हैं हस्ती प्रेम के व्यापार में

भूख के चर्चे हुये हैं मुफलिसी की बात है
वांच ली सारी किताबें क्या रखा है सार में

गीत बैठे तक रहे हैं झनझनाहट तार की
क्या जुगलबंदी हुई है राग सुर औ प्यार में

बाँध कर सिर पे कफ़न हैं चल पड़े कुछ जंगजू
कुछ फ़ना होते रहे हैं इक नज़र के वार में

जो झुका जितना जहाँ में उतना ऊँचा नाम है
कुछ नहीं मिलता यहाँ पे बेरुखी व्यव्हार में

उल्फतों की बात मत कर है गज़ब की रीत ये
कोपलें फूलीं फलीं ये जंग के आसार में

(मौलिक एवं अप्रकाशित) 

​©बृजेश कुमार 'ब्रज'

Views: 600

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 23, 2016 at 10:25pm

आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं आभार आदरणीय  Dr Ashutosh Mishra जी  

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 23, 2016 at 10:23pm

आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं आभार आदरणीय रामबली गुप्ता जी थोड़ा अलग तो है  लेकिन सत्य के बेहद नजदीक 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 23, 2016 at 10:13pm

रचना पटल पे आपका हार्दिक अभिनन्दन महोदय  jaan' gorakhpuri जी......आदरणीय सत्य तो यही है 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 20, 2016 at 10:55pm

रचना पटल पे आपके अमूल्य समय और विस्तृत समीक्षा के लिए आपका हार्दिक आभार संग नमन आदरणीय  Samar kabeer जी.... सर्वप्रथम देर से आने  के लिये क्षमा चाहता हूँ ... आदरणीय मेरे लिये प्यार बहुत ही पवित्र और आस्था की भाव है .....मतले में सिर्फ ये कहना चाहा है कि वो लोग जो प्रेम को व्यापार समझते हैं हम तो उसमें भी अपनी हस्ती लुटा देते हैं ....चौथे शेर को अभी दुरुस्त करता हूँ  

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 20, 2016 at 10:48pm

रचना पटल पे आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं आभार आदरणीया  Rahila जी 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 17, 2016 at 5:27pm

आदरणीय इस उम्दा ग़ज़ल के लिए ह्रदय से आभारी हूँ सादर बधाई के साथ 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 16, 2016 at 9:41pm
भूख के चर्चे हुये हैं मुफलिसी की बात है
वांच ली सारी किताबें क्या रखा है सार में

वाह्ह्ह्ह्,बेहतरीन शेर.समर सर की बात से मैं भी सहमत हूँ।ग़ज़ल पर हार्दिक बधाई।
Comment by रामबली गुप्ता on May 16, 2016 at 6:18pm
अच्छी गज़ल हुई है। प्रेम को व्यापार के रूप में देखना हमें भी कुछ अलग सा लगा। बाकी सुधीजन विचारें
Comment by Samar kabeer on May 16, 2016 at 3:05pm
जनाब बृजेश कुमार'ब्रज'साहिब आदाब,ग़ज़ल अच्छी हुई है, दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ ।
'हम लुटा देते हैं हस्ती प्रेम के व्यापार में'
आप प्रेम को व्यापार समझते हैं ?
चौथे शैर का ऊला मिसरा लय में नहीं,एक शब्द छूट रहा है, देखिएगा ।
Comment by Rahila on May 16, 2016 at 9:47am
बहुत खूब ग़ज़ल हुई आदरणीय सर जी! हर शेर बहुत शानदार लगा । बहुत बधाई ।सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

कुर्सी जिसे भी सौंप दो बदलेगा कुछ नहीं-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

जोगी सी अब न शेष हैं जोगी की फितरतेंउसमें रमी हैं आज भी कामी की फितरते।१।*कुर्सी जिसे भी सौंप दो…See More
23 hours ago
Vikas is now a member of Open Books Online
Tuesday
Sushil Sarna posted blog posts
Monday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
Monday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"ओबीओ के मंच से सम्बद्ध सभी सदस्यों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाइयाँ  छंदोत्सव के अंक 172 में…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी ! समय के साथ त्यौहारों के मनाने का तरीका बदलता गया है. प्रस्तुत सरसी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह ..  प्रत्येक बंद सोद्देश्य .. आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, आपकी रचना के बंद सामाजिकता के…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, आपकी दूसरी प्रस्तुति पहली से अधिक जमीनी, अधिक व्यावहारिक है. पर्वो-त्यौहारों…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी  हार्दिक धन्यवाद आभार आपका। आपकी सार्थक टिप्पणी से हमारा उत्साहवर्धन …"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंद पर उपस्तिथि उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार। दीपोत्सव की…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय  अखिलेश कॄष्ण भाई, आयोजन में आपकी भागीदारी का धन्यवाद  हर बरस हर नगर में होता,…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service