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उस रोज़ हाल मुझसे बताया नहीं गया- ग़ज़ल

221 2121 1221 212
उस रोज़ हाल मुझसे बताया नहीं गया
और उसके बाद रंज छुपाया नहीं गया

जो दर्द से नजात दिला सकता था मुझे
वो लफ़्ज़ अपने होंठों पे लाया नहीं गया

अश्कों की रोशनाई में लम्हे डुबो-डुबो
दिल के वरक़ पे लिक्खा मिटाया नहीं गया

तू तो ग़लत न था ये जहाँ सरगिराँ सही
सर किसलिये बता कि उठाया नहीं गया

इक बोझ मेरे काँधे पे हालात ने रखा
मजबूर इतना था कि गिराया नहीं गया

(रोशनाई- इंक; सरगिराँ- नाखुश)

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by नादिर ख़ान on May 2, 2016 at 5:20pm

खूबसूरत ग़ज़ल कही आदरणीय शिज्जु भाई.... सुधिजनों की टिप्पणी से मुझे भी व्यक्तिगत फायदा हुआ, उत्तम रचना कर्म के लिए आपको बधाई तथा सभी का शुक्रिया .... जिनकी वजह से शेर की बारीकी को समझ सका  |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 2, 2016 at 3:38pm

बात अच्छी निकली है और अच्छी चर्चा भी हुई है. बहुत खूब है शिज्जू भाई. दाद कुबूल कीजिये. 

अभी तक रोशनाई दवात ही बताई जा रही है. जबकि आदरणीय समर साहब ने बेहतर इशारा किया है. 

Comment by Shyam Narain Verma on May 2, 2016 at 2:59pm
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल! आपको बहुत-बहुत बधाई! सादर 

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 2, 2016 at 7:52am
आ. मिथिलेशजी सही पकड़े हैं हा हा हा :-) आमतौर पर ग़ज़ल लिखने के बाद तीन चार बार पढ़कर मैं खुद ही सुधार लेता हूँ लेकिन इस बार मैंने ऐसा नहीं किया सीधे पोस्ट कर दिया। इस शेर को और आदरणीय निलेश भाई और जनाब समर साहब ने जो निशान देही की है उस जगह सुधारकर कुछ यूँ लिखा है

अश्कों की रोशनाई में लम्हे डुबो-डुबो
दिल के वरक़ पे लिक्खा मिटाया नहीं गया

तू तो ग़लत न था ये जहाँ सरगिराँ सही
सर किसलिये बता कि उठाया नहीं गया

या जैसा आपने सुझाया है
अश्कों की रोशनाई में सपने डुबो डुबो
इस दिल पे लिक्खा किस्सा मिटाया नहीं गया

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 2, 2016 at 7:46am
बहुत बहुत शुक्रिया आपका आ. मिथिलेशजी एवं आ. अनुजजी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 2, 2016 at 2:16am

आदरणीय शिज्जू भाई बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है शेर दर शेर दाद हाज़िर है.

एक शंका है - ख़्वाबों की स्याही में लम्हे डुबा कर रख लिए थे तो फिर उसी से लिखना था उसके लिए अश्कों को जहमत देने की क्या जरुरत थी. अश्कों को कागज बनाया जा सकता था. क्योकि ख्वाबों की इंक लम्हे की कलम तो हो गई मगर लिखा किस पर ? कागज है ही नहीं और किस्सा लिखा गया. अश्कों पे लिख सकते है पर बात नहीं बनेगी. ये पूरी किस्सा लिखाई ऐसे 'कम्प्लीट' होगी-

अश्कों की रोशनाई में सपनें डुबो-डुबो
लम्हों पे लिक्खा किस्सा मिटाया नहीं गया

हा हा हा .... बस ऐसे ही खयाल आया. सादर 

Comment by Anuj on May 1, 2016 at 5:30pm

इक बोझ मेरे काँधे पे हालात ने रखा
मजबूर इतना था कि गिराया नहीं गया

हकीकत निगारी और जज्बात की अक्कासी साथ-साथ ! बहुत खूब !!

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 1, 2016 at 4:46pm

जी ...आपका मिसरा बहर में है ,,बस लयात्मकता कम थी इसलिए सुझाव दिया ...
सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 1, 2016 at 4:39pm
बहुत बहुत शुक्रिया जनाब समर साहब एवं निलेश भाई यहाँ मैंने चौथे शेर में अलिफ़ वस्ल का फ़ायदा लेने की कोशिश की है //स रुठाया नहीं गया// कुछ इस तरह
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 1, 2016 at 3:37pm

वाह वाह वाह 
क्यों तुझसे सर बता ये उठाया नहीं गया,,
बधाई 

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