For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गीत- भावना के वाह को अब रोक लो

भावना के वाह को अब रोक लो तुम।
कहो कुछ भी किन्तु पहले सोंच लो तुम।।
भावना के वाह...........

शब्द-शर मुख से निकल ना लौटता है।
सालता तन-बदन हिय को घोंटता है।
कर न दें आहत किसी को शब्द तेरे,
हे! सखे! रुककर जरा यह सोंच लो तुम।
भावना के वाह.............

मान देकर हृदय सबका जीत तो लो।
शब्द-मधु बरसा उरों को सींच तो लो।
मान दोगे मान पावोगे सदा ही,
बोल मीठे बोल दो तो बोल लो तुम।
भावना के वाह...........

है बड़ा कोई यहाँ छोटा न कोई।
काम आये राह में कब भ्रात कोई।
स्नेह का सम्बन्ध ही सबसे उचित है,
तथ्य यह मन की तुला में तोल लो तुम।
भावना के वाह..............

मनुज क्यों खग-जन्तु भी रखते क्षुधा हैं।
स्नेह तो सबके लिए अनुपम सुधा है।
स्नेह के बस में सकल जग जगतपति भी,
स्नेह से हिय स्नेहनिधि से जोड़ लो तुम।
भावना के वाह.........

मनुज हो तुम मनुजता का मान रक्खो।
बंधु-बांधव ही यहाँ सब ध्यान रक्खो।
सौख्य पावोगे सदा सुख दे मनुज को,
दुख घटे बँट, द्वार सुख के खोल लो तुम।
भावना के वाह........

टूटते हर तार हिय के जोड़ देना।
धार मधि ना डूबते को छोड़ देना।
कर बढ़ा असहाय्य का कर थाम लेना,
भाव में सहयोग-सेवा घोल लो तुम।
भावना के वाह.............

-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 592

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on April 6, 2016 at 12:56pm

अच्छा संदेश देती हुई सुन्दर रचना। बधाई।

Comment by amita tiwari on April 6, 2016 at 12:43am

खूब सुन्दर रचना ......हार्दिक बधाई

Comment by रामबली गुप्ता on April 5, 2016 at 10:51am
आद.सुशील सरना जी, आद.डॉ आशुतोष सर जी,एवं आदरेया राजेश कुमारी यदि मेरे ब्लॉग की अन्य रचनाओं को पढ़कर अपने बहुमूल्य सुझाव दें तो आप सब की अति कृपा होगी मुझ पर।सादर
Comment by रामबली गुप्ता on April 5, 2016 at 10:20am
उत्साहवर्धन के लिए सादर आभार आदरेया राजेश कुमारी जी
एवं आदरणीय डॉ आशुतोष मिश्रा जी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 4, 2016 at 9:28pm

शब्द-शर मुख से निकल ना लौटता है।
सालता तन-बदन हिय को घोंटता है।
कर न दें आहत किसी को शब्द तेरे,
हे! सखे! रुककर जरा यह सोंच लो तुम।
भावना के वाह.............आपकी कोई रचना पहली बार पढ़ रही हूँ ,बहुत अच्छी प्रस्तुति है सार्थक सन्देश देती हुई इस सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई आपको आ० रामबली जी |

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 4, 2016 at 3:07pm

आदरणीय रामबली जी रचना के माध्यम से आपने बढ़िया सन्देश दिया है इस रचना के लिए ह्रदय ताल से बधाई स्वीकार करें सादर 

Comment by रामबली गुप्ता on April 3, 2016 at 7:29pm
सादर आभार आद.गोपाल सर
सत्य ही विचारा है आपने
वैसे ये गीत संशोधनाधीन ही है इसे और भी सुंदर बनाने का प्रयास है।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 3, 2016 at 3:55pm

aअ० रामबली जी 

निस्संदेह  मनोरम रचना  . 'भावना के वाह;'  का  कोई और विकल्प इस गीत को  अधिक ऊर्ज्वस्वित कर सकता है . आ० राम बली जी आपकी पहली रचना मेंने पढी , अभिभूत हुआ  आपको बधाई 

Comment by रामबली गुप्ता on April 3, 2016 at 10:44am
सादर आभार आ. सुशील सर
Comment by Sushil Sarna on April 2, 2016 at 9:07pm

शब्द-शर मुख से निकल ना लौटता है।
सालता तन-बदन हिय को घोंटता है।
कर न दें आहत किसी को शब्द तेरे,
हे! सखे! रुककर जरा यह सोंच लो तुम।
भावना के वाह.............
अति सुंदर आदरणीय रामबली गुप्ता जी बहुत ही सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति हुई है। शब्द चयन सरल और भावपूर्ण , प्रवाह ऐसा कि अंत तक पाठक उसका रस्वादन करें .... दिल से बधाई स्वीकार करें।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
22 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service