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पहन पोशाक गांधी की - ग़ज़ल ( लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’ )

1222    1222    1222    1222
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जिसे  राणा सा  होना था  वो  जाफर बन गया यारो
सियासत  करके  गड्ढा भी  समंदर बन गया यारो ।1।

हमारी  सीख कच्ची  थी  या उसका रक्त ऐसा था
पढ़ाया  पाठ  गौतम  का सिकंदर  बन गया यारो ।2।

करप्सन  और  आरक्षण  का  रूतबा   देखिए ऐसा
फिसड्डी था जो कक्षा में वो अफसर बन गया यारो ।3।

तरक्की  है कि  बर्बादी  जरा  सोचो नए  युग की
जहाँ बहती नदी  थी इक वहाँ घर बन गया यारो ।4।

फिरंगी तो गए घर से  मगर पहना के फितरत यूँ
पहन  पोशाक  गांधी की  वो  डायर बन गया यारो ।5।

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मौलिक व अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’
 

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 18, 2016 at 12:55pm

आ0 भाई रामबली जी, प्रशंसा के लिए आभार ।

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on March 17, 2016 at 3:01pm
आदरणीय लक्ष्मण धामी सर सादर बधाई
Comment by Ravi Shukla on March 17, 2016 at 2:59pm

आदरणीय लक्षमण जी बढि़या ग़ज़ल कही है और व्‍यंग भी अच्‍छे है सिस्‍टम पर बधाई

Comment by TEJ VEER SINGH on March 17, 2016 at 11:18am

हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी जी!बेहतरीन गज़ल!

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 16, 2016 at 7:08pm


जनाब लक्ष्मण भाईजी!   बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है.  मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ.  मेरे ख्याल से  'गड्ढा' को 'नाला' कर ले तो बात साफ हो जायेगी. सादर

Comment by Samar kabeer on March 16, 2016 at 5:59pm
जनाब लक्ष्मण धामी'मुसाफ़िर'जी आदाब,बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही आपने शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ ।
Comment by Rahul Dangi Panchal on March 16, 2016 at 4:13pm
सुन्दर रचना
Comment by रामबली गुप्ता on March 16, 2016 at 3:01pm
आ.लक्ष्मण धामी जी बहुत ही सुंदर रचना हुई है। बधाई स्वीकार करें।सादर

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