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ग़ज़ल - जब किसी लब पे कोई दुआ ही नहीं -- गिरिराज भंडारी

212   212   212   212 

जीत उसको मिली जो लड़ा ही नहीं

कौन सच में लड़ा ये पता ही नही

 

साजिशों से अँधेरा किया इस क़दर  

कब्र उसकी बनी जो मरा ही नहीं

 

झूठ के पाँव पर मुद्दआ था खड़ा

पर्त प्याज़ी हठी, कुछ मिला ही नहीं

 

यूँ बदी अपना खेमा बदलती रही

अब किसी के लिये कुछ बुरा ही नहीं

 

इन ख़ुदाओं को देखा तो ऐसा लगा

इस जहाँ में कहीं अब ख़ुदा ही नहीं

 

छोड़ दी जब गली, नक्श भी मिट गये

चाहतें क्या रहें ? जब गिला ही नहीं 

 

क्या कुबूल अब ख़ुदा भी करे सोचिये

जब किसी लब पे कोई दुआ ही नहीं

 

जिसने समझा मुझे उसने देखा मुझे  

मुझको खोजो नहीं, मै छिपा ही नहीं

************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 1016

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 25, 2016 at 10:56pm

आदरणीय मदन मोहन सक्सेना भाई , गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिये आपका आभारी हूँ ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 25, 2016 at 10:54pm

आदरनीया अन्नपूर्णा जी , उत्साह वर्धन के लिये आपका हृदय से आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 25, 2016 at 10:54pm

आदरनीय नादिर खान भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 25, 2016 at 10:53pm

आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , हौसला अफज़ाई का बेहद शुक्रिया आपका ।

Comment by gumnaam pithoragarhi on February 25, 2016 at 9:35pm

वाह सर जी वाह खूब ग़ज़ल हुई है बधाई

Comment by Sushil Sarna on February 25, 2016 at 8:14pm

जीत उसको मिली जो लड़ा ही नहीं
कौन सच में लड़ा ये पता ही नही

साजिशों से अँधेरा किया इस क़दर
कब्र उसकी बनी जो मरा ही नहीं

छा गए आदरणीय गिरिराज भंडारी जी छा गए हमारे दिलो दिमाग पर छा गए .... शे'र दर शे'र दिल से दाद कबूल फरमाएं। ...._/\_

Comment by Madan Mohan saxena on February 25, 2016 at 3:10pm

जीत उसको मिली जो लड़ा ही नहीं
कौन सच में लड़ा ये पता ही नही

साजिशों से अँधेरा किया इस क़दर
कब्र उसकी बनी जो मरा ही नहीं
बहुत शानदार ग़ज़ल शानदार भावसंयोजन हर शेर बढ़िया है आपको बहुत बधाई

Comment by annapurna bajpai on February 25, 2016 at 12:27pm

क्या खूब गजल है , वाह वाह आदरणीय भण्डारी जी

Comment by नादिर ख़ान on February 25, 2016 at 11:33am

साजिशों से अँधेरा किया इस क़दर  

कब्र उसकी बनी जो मरा ही नहीं

 

झूठ के पाँव पर मुद्दआ था खड़ा

पर्त प्याज़ी हठी, कुछ मिला ही नहीं

बहुत उम्दा ग़ज़ल कही आदरणीय गिरिराज सर बहुत मुबारकबाद आपको .... 

जिसने समझा मुझे उसने देखा मुझे  

मुझको खोजो नहीं, मै छिपा ही नहीं ..................सच को बयां करता उम्दा शेर है। .. 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 25, 2016 at 11:05am

अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय गिरिराज जी, दिली दाद कुबूल करें।

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