For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रिश्तों की धुलाई / लघुकथा

उसने आज अपने सभी नये पुराने रिश्तों को धोकर साफ़ करने के विचार से , काली संदूक से उन्हें बाहर निकाला ।
पानी में गलाकर ,साबुन से घिसकर , खूब धोया । कितने मैल, कितनी काई , छूटकर नाली में बही , लेकिन उनमें से मैल निकलना अभी तक जारी था ।
रिश्तों की काई धोते - धोते हठात् पानी खत्म होने का एहसास हुआ । जरा सा पानीे बचा था ।
लगे हाथ उसने दोस्ती को बिना साबुन ही खंगाल लिया ।
उसे यकीन था , रगड़ कर धोये हुए समस्त रिश्ते चमक गये होंगे ।
सुखाने के लिये तार पर फैलाते वक्त वह चकित हुआ । रिश्तों की कालिमा अभी भी पूर्ववत थी जबकि दोस्ती तार पर दप - दप चमक कर , मुस्कुरा रही थी ।


मौलिक और अप्रकाशित

Views: 555

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by kanta roy on March 28, 2016 at 10:10am

आदरणीय सुशील जी , कथा  पर  आपका  विस्मृत  होना मेरे लेखकीय  कर्म को सार्थकता दे  गया . कैसे  आभार  व्यक्त  करू  शब्द  कम  पद  गए  है  . सादर  नमन  आपको  

Comment by kanta roy on March 28, 2016 at 10:08am

आदरणीया  अन्नपूर्णा जी  , बिलकुल  सही  कह  रही  है  आप  कि दोस्ती कभी फीकी नहीं पड़ती है समय धूल अवशय जम जाती है जिसे खंगाल कर निकाला जा सकता है लेकिन रिश्तों को कितना भी सहेजा जाए वे कुछ न कुछ समस्या लिए ही रहते है । आभार  आपको  ह्रदय  से  .

Comment by kanta roy on March 28, 2016 at 10:07am

जी  आदरणीय लक्ष्मण जी  ,सही  कहा  आपने  दोस्ती  पर  मेल  नहीं  चढ़ती है  क्योंकि वहाँ स्वार्थ  नहीं  होता  है  . आभार  आपको 

Comment by kanta roy on March 28, 2016 at 10:06am

हा  हा  हा  हा  ,आदरणीय सुनील जी बहुत  खूब  प्रतिक्रया  है  ये  आपकी  कथा  पर  . बहुत  खूब  भाव  को  यहाँ  व्याख्यादित किया  है  आपने  . मैं  अभिभूत  हुई  . आभार  आपको 

Comment by kanta roy on March 28, 2016 at 10:04am

आपकी  सटीक  प्रतिक्रया  मन  को  मोहित  कर  देती  है  आदरणीया राहिला  जी  . आभार  तहेदिल  आपको  कथा  को  पसंद  करने  हेतु  

Comment by Sushil Sarna on February 25, 2016 at 8:11pm

रिश्तों की कालिमा अभी भी पूर्ववत थी जबकि दोस्ती तार पर दप - दप चमक कर , मुस्कुरा रही थी ।   .... वाह आदरणीया कान्ता रॉय जी विस्मृत हूँ कल्पना की उड़ान देखकर। रिश्तों की धुलाई   .... एक अलग ही विषय ,अलग प्रस्तुति का ढंग , विषय के गर्भ से निकली उक्त पंचलाइन गज़ब का अहसास दे रही है। हार्दिक बधाई स्वीकार करें। 

Comment by annapurna bajpai on February 25, 2016 at 1:00pm

बहुत खूब लिखा !! आपने आदरणीया कांता जी , सच ही है दोस्ती कभी फीकी नहीं पड़ती है समय धूल अवशय जम जाती है जिसे खंगाल कर निकाला जा सकता है लेकिन रिश्तों को कितना भी सहेजा जाए वे कुछ न कुछ समस्या लिए ही रहते है । 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 25, 2016 at 11:32am

दोस्ती  पर  कभी  मैल नहीं चढ़ा करता .वह तो हमेसा ही उज्जवल होती है .

Comment by Rahila on February 24, 2016 at 12:47pm
रिश्तों की कालिमा दोनों ओर से धुले तो शायद चमक जाये । एक तरफा कोशिश अक्सर नाकाम होती है । और रही दोस्ती की बात ,ये तो वो मृगकस्तूरी है जिसकी महक से किसी का भी जीवन सुगंधमय हो जाये । खरे सोने जैसी चीज की चमक कब कम होती है । शानदार लेखन, उम्दा प्रस्तुति आदरणीय कांता दी! बहुत बधाई । सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" posted a blog post

ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है

1212 1122 1212 22/112मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना हैमगर सँभल के रह-ए-ज़ीस्त से गुज़रना हैमैं…See More
1 hour ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधकह दूँ मन की बात या, सुनूँ तुम्हारी बात ।क्या जाने कल वक्त के, कैसे हों…See More
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी posted a blog post

ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)

122 - 122 - 122 - 122 जो उठते धुएँ को ही पहचान लेतेतो क्यूँ हम सरों पे ये ख़लजान लेते*न तिनके जलाते…See More
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
""रोज़ कहता हूँ जिसे मान लूँ मुर्दा कैसे" "
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
"जनाब मयंक जी ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, गुणीजनों की बातों का संज्ञान…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय अशोक भाई , प्रवाहमय सुन्दर छंद रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई "
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय बागपतवी  भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक  आभार "
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आदाब, ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएँ, गुणीजनों की इस्लाह से ग़ज़ल…"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
10 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद, इस्लाह और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
10 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आदाब,  ग़ज़ल पर आपकी आमद बाइस-ए-शरफ़ है और आपकी तारीफें वो ए'ज़ाज़…"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज भाईजी के प्रधान-सम्पादकत्व में अपेक्षानुरूप विवेकशील दृढ़ता के साथ उक्त जुगुप्साकारी…"
12 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service