For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जिन्न(लघुकथा )राहिला

गृहस्थी का काम मिनट -मिनट को पकड़ कर पूरा किये जा रही थी । सारा दिन चकरघिन्नी बनने के बावजूद किसी ना किसी के कोप का भाजन बन ही जाती । मुझे समझ नहीं आता आखिर किस ने ये दुनियादारी के नियम बनाये और किस ने सारे काम का बंटवारा इतने अन्यायपूर्ण ढंग से किया।हाथ पर हाथ धरे सुविधाओं का रसपान करने वाले घर के लगभग सभी सदस्यों के पास "आका "वरदान था और मैं? मैं किसी घटिया सी कहानी के उस जिन्न की तरह थी जो अपने आका के हुकुम पूरा करने में लगा रहता।मैं अकेली थी, तो बहुत दुःखी थी लेकिन तब तक, जब तक कि मैंने जिन्न होने वाली बात छुपा कर रखी थी।लेकिन आज अचानक मेरे मुंह से ये राज खुल गया । और फिर मेरे जैसी ढेर सारे जिन्न मेरी सखियां बन गये ।
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 760

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on February 21, 2016 at 3:17pm
मोहतरमा राहिला जी आदाब,बहुत पसन्द आई आपकी लघुकथा,बधाई स्वीकार करें !
Comment by Rahila on February 21, 2016 at 1:18pm
आदरणीय सतविन्दर सर जी !आपने तो रचना की रग पर ही हाथ रख दिया । यकीनन घर-घर की कहानी । बहुत आभार आपका । सादर
Comment by Rahila on February 21, 2016 at 1:16pm
आदरणीय खान साहब! बहुत शुक्रिया आपका, आपको रचना पसंद आई बहुत अच्छा लगा ।सादर
Comment by Rahila on February 21, 2016 at 1:15pm
आदरणीय उस्मानी जी!मैं भी आपकी बात से सहमत हूं लेकिन जिन्न के स्त्रीलिंग को क्या कहते है ये चाह कर भी पता नहीं कर पाई हा. .हा. .हा. .। दूसरी बात जब जिन्न दूसरों के काम करता फिरता है तो अपने घर के भी करेगा । अगर यहाँ स्त्री लिंग कर देती तो फिर कैसे बात बनती ।जिन्न की स्त्री को तो काम करने की जरूरत ही नहीं पड़ती होगी । आपका बहुत शुक्रिया आप ने अपनी अमूल्य राय व्यक्त की । सादर
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on February 21, 2016 at 11:44am
कहानी घर-घर की।सच में ज़बरदस्त तंज।हार्दिक बधाई आदरणीया राहिला जी।
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on February 21, 2016 at 11:22am

मोहतरमा राहिला साहिबा ,   जिन्न को मज़्मून बनाकर अच्छी लघु कथा हो गयी है ,    मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on February 20, 2016 at 4:55pm
अंतिम दो वाक्य बड़े दिलचस्प रहे और वज़नदार भी। प्रवाह तो है ही, लघुता व कथ्य की सम्प्रेषणता भी। बहुत बहुत हार्दिक बधाई आपको आदरणीया राहिला जी। पहले से और बेहतर व सटीक लिख रही हैं आप। कथा के अंत में किसी सखी जिन्न का तीखा तंजदार संवाद भी रखा जा सकता था....संभावनायें तो सदैव बहुत सी बनी रहती हैं। मसलन जिन्न शब्द का यदि स्त्रीलिंग शब्द संभव हो ...या... किसी आका के तीखे संवाद के प्रत्युत्तर में सखी जिन्न का तीखा कटाक्ष हो...
Comment by Rahila on February 20, 2016 at 3:30pm
बहुत आभार आदरणीय जैन सर जी! रचना के मर्म को समझ कर आपने जो नायाब टिप्पणी दी है वो तमाम पाठक जिन्न के पास पहुँच गयी ।बहुत शुक्रिया ।सादर नमन।
Comment by Pawan Jain on February 20, 2016 at 3:16pm

बहुत बढ़िया आदरणीय,ये आका तो आदेश देते ही रहेंगे,जब तक जिन्न हाजिर है।एक बार नाफरमानी
कर के देखिए ।सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service