For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

साक्षात्कार ( लघुकथा )

भव्य आॅफिस। उसका पहला साक्षात्कार ...... , घबराहट लाजमी था । इसके बाद दो साक्षात्कार और । पिता नहीं रहे। घर की तंगहाली ,बडी़ होने का फ़र्ज़ ,नौकरी पाना उसकी जरूरत , आगे की पढाई को तिरोहित कर आज निकल आई थी ।

" पहले कभी कोई काम किया है ? "

"जी नहीं , यह मेरी पहली नौकरी होगी । " गरीबी ढीठ बना देती है उसने स्वंय में महसूस किया ।

" हम्म्म ! इस नौकरी को आप क्यों पाना चाहती है ?"

" कुछ करके दिखाना चाहती हूँ , यहाँ मेरे लिए पर्याप्त अवसर है ।" इंटरव्यू के प्रश्नों के उत्तर सीख कर आई थी।

"ओके "

" पद के अनुसार अापके सार्टिफिकेट तो ठीक है ,लेकिन मै आपके निजी बातें , नौकरी पाने की आर्थिक जरूरत के बारे में भी जानना चाहूंगा ,····मैं आपको जनाना चाहता हूँ । " - कहते हुए उन्होंने अपनी कुर्सी जरा आगे सरका ली । एकटक उसे देखते हुए उनके चेहरे के भाव बदल रहे थे।
वह अकचकाई !
क्या देख रहे थे वे ? नौकरी का इससे कोई वास्ता ?

" अपने बारे में सब लिखा है मैंने ,देखिये ···· ? टेबल पर रखे हुए फोल्डर की तरफ इशारा किया उसने।

" हमारी आपकी जोड़ी बनने से ही  अच्छा काम कर पाएंगे , मैं आपको जानना चाहता हूँ। "

" जोड़ी ·····मतलब ? वह स्वंय में सिकुड़ने लगी । उनका घूर कर देखना भद्दा और अजीब लगा। उसके गालों और गरदन पर नजरें टिकाये हुए था । उनकी नजरों की छुअन जैसे शरीर पर रेंग रही थी , गंदी कोशिश .... ! नजरें झूका ली उसने । नजर उठा उसे फिर से देखने की हिम्मत नहीं हुई । चुप बैठी रही । इस एहसास ने मन को घिना दिया ।

" आपके पिता क्या करते है ? " - उनके चेहरे पर पिचपिचाती हुई गिलगिली मुस्कान ..... !

वह चौंकी , क्या वह उसकी मनोदशा से खेल रहा है ...?
पूर्णतया मन से सावधान हो , उसकी कुंठित आशा को मुर्छित करने का प्रण मन में कर , जबड़े को भींच , मुट्ठी कसी , सोचा , आज यहाँ से यूँ ही नहीं जायेगी । झटके से उठ ,टेबल से अपना फोल्डर उठा बैग में रखा ,

" मेरे पिता ? वे पुलिस में है , तडाक ! " उसके गालों पर उनके एहसासों को अपने चप्पल से रौंदती त्तक्षण वहाँ से निकल पडीं ।
बाहर आ नोट पेड पर नजर फिरा , दृढ़ता से दुसरे साक्षात्कार पर जाने का पता चेक करने लगी ।

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 666

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 7, 2016 at 12:22pm

आदरणीया कांता जी , आत्मविश्वास और बहादुरी दोनो आज की अहम ज़रूरत है आज की महिलाओं के लिये , आपके पारेअ के पास दोनो चीज़ें हैं , बहुत सुन्दर ! आपको हार्दिक बधाई कथा के लिये ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 6, 2016 at 9:56am

आज की महिलाओं को इतना बोल्ड होने की आवश्यकता आ ही गई है आ० कांता जी, ऐसे में इस तरह के  प्रेरणास्पद लेखन का हार्दिक स्वागत एवं बधाई. 

Comment by Sushil Sarna on January 5, 2016 at 7:54pm

आदरणीय कांता रॉय जी आपकी ये लघुकथा वर्तमान दृष्टि के प्रति नारी को सचेत करती है। अपने स्वाभिमान के प्रति सजग इस लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई। 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on January 5, 2016 at 12:47pm
बिल्कुल सही ज़वाब।ऎसे ऎसे के साथ ऐसा ही व्यवहार उचित है।ऎसे लोगों के लिए स्त्रीत्व का अर्थ उपभोग मात्र हो गया है।बहुत सुंदर सार लिए बेहतरीन लघु कथा।बधाई वन्दनीया दीदी।
Comment by TEJ VEER SINGH on January 4, 2016 at 6:36pm

हार्दिक बधाई आदरणीय कांता जी!सुन्दर सन्देश परक  लघुकथा!

Comment by Samar kabeer on January 4, 2016 at 5:44pm
मोहतरमा कांता रॉय जी आदाब,आजकल महिलाओं के साथ यही सब कुछ होता है,क्लाइमेक्स भी शानदार है,इस लघुकथा के लिये बधाई स्वीकार करें |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"सभी अशआर बहुत अच्छे हुए हैं बहुत सुंदर ग़ज़ल "
15 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Jul 10
Admin posted discussions
Jul 8
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service