For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

निश्छल प्रेम - लघुकथा

वो अकेली बैठी रो रही थी, जंगली जानवरों से उसका रोना बर्दाश्त नहीं हुआ, वो उसके पास जाकर उसका दुःख पूछने लगे|

उसने कहा, "मैं उससे बहुत प्रेम करती हूँ, लेकिन उसे केवल मेरी खूबसूरती से ही प्रेम है, और वो ही मेरी सुन्दरता नष्ट कर रहा है, पता नहीं कैसे-कैसे रासायनिक द्रव और विष समान कचरा युक्त जल मुझे पीना होता है, उसके फैलाये धुंए से मैं क्षीण और कुरूप होती जा रही हूँ| उसके मचाये शोर से बहुत घबरा जाती हूँ, क्या करूँ?"

फिर उसने तितली से कहा, "तुम जिन फूलों पर जाती थी, उसे भी तोड़ देता है|"
भालू से कहा, "शहद के छत्ते भी वही नष्ट कर रहा है|"
और बगुले से कहा, "पानी की मछलियाँ भी वो ही ले जाता है|"
और हाथी से कहा, "तुम दूर ही रहना, नहीं तो तुम्हें बेच देगा|"

इतने में आदमी आ गया, उसे देखकर सारे जानवर भाग गये, आदमी ने उसे देखा, उसके पास गया और कहा, "तुम कितनी खूबसूरत हो..."

और यह जानते हुए भी कि उसका शोषण होगा, 'प्रकृति' चुपचाप उसका हाथ पकड़ कर चल दी|

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 512

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on December 17, 2015 at 12:38pm

हृदय से आभार आदरणीय विजय निकोरे जी सर !

Comment by vijay nikore on December 16, 2015 at 2:57pm

इस अच्छी लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय चंद्रेश जी।

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on December 9, 2015 at 11:48am

आदरणीया  Rahila जी, आदरणीय Sheikh Shahzad Usmani साहब, आदरणीया  Nita Kasar  जी, आदरणीया kanta roy जी, आदरणीया meena pandey जी, आदरणीय Sunil Verma जी, आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया, आपने रचना पर टिप्पणी कर मेरे मनोबल  को बहुत बढाया है| निवेदन है कि ऐसे ही स्नेह बनाये रखें| सादर, 

Comment by meena pandey on December 8, 2015 at 1:19am

बहुत बधाई इस रचना के लिए आदरणीय चंद्रेश जी 

Comment by kanta roy on December 7, 2015 at 6:57pm

और यह जानते हुए भी कि उसका शोषण होगा, 'प्रकृति' चुपचाप उसका हाथ पकड़ कर चल दी|-----गज़ब की चीज लिख दी है आपने आदरणीय चंद्रेश जी , पढ़कर एकदम से स्तब्ध हो उठी। ढेरो बधाई आपको।

Comment by Nita Kasar on December 7, 2015 at 12:20pm
प्रकृति के साथ जो सलूक मानव ने किया कितने वेदना सह रही वह लाचारी के साथ । ।परिणामत:प्राकृतिक आपदाओं के घेरे में आकर उसके ही वजूद पर ख़तरा बढ़ गया है आखिर प्रकृति का दोहन इस तरह ही चलता रहा तो मानव का साँस लेना दूर हो जायेगा ।अभी नही जागा तो जाने कब जागेगा मानव ।बेहद सारगर्भित व संवेदनशील कथा के लिये दिली बधाई आ०चन्द्रेश जी
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 7, 2015 at 10:49am
बहुत उम्दा व उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय चन्द्रेश कुमार छतलानी जी। मानव और प्रकृति का तालमेल, कभी तकरार, कभी प्यार, कभी अत्याचार तो कभी कल्याण, सुविधा और दुविधा का अद्भुत मेलजोल !
Comment by Rahila on December 7, 2015 at 10:47am
अद्वितीय लेखन आदरणीय चंद्रेश सर जी! बेह।द सटीक और उम्दा रचना हुई । बहुत बधाई आपको । सादर ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
13 minutes ago
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
2 hours ago
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
2 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी, बहुत धन्यवाद"
2 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम जी, बहुत धन्यवाद"
2 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम जी सादर नमस्कार। हौसला बढ़ाने हेतु आपका बहुत बहुत शुक्रियः"
3 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय "
3 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"जी ठीक है  मशविरा सब ही दे रहे हैं पर/ मगर ध्यान रख तेरे काम का क्या है ।"
4 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय संजय शुक्ला जी सादर अभिवादन स्वीकार करें। अच्छी ग़ज़ल हेतु बधाई।"
4 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय मिथिलेश जी सादर नमस्कार। बहुत बहुत आभार आपका।"
4 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"सादर नमस्कार। बहुत बहुत शुक्रियः आपका"
4 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमित जी सादर अभिवादन स्वीकार करें। अच्छी ग़ज़ल हेतु बधाई आपको।"
4 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service