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बिटिया के छोटे-छोटे बच्चे,दो वक़्त की रोटी जुटाने की मशक्कत,और बेटी की जान पर मंडराता खतरा देखकर परमेसर सिहर उठा।उसने अपनी एक किडनी देकर उसके जीवन को बचाने का संकल्प कर लिया।
" तुम तो पहले ही अपनी एक किडनी निकलवा चुके हो,तो अब क्या मजाक करने आये थे यहाँ ?" डॉक्टर ने रुष्ट होकर कहा।
" जे का बोल रै हैं डागदर साब,हम भला काहे अपनी किटनी निकलवाएंगे।
ऊ तो हमार बिटिया की जान पर बन आई है।छोटे-2 लरिका हैं ऊ के सो हमन नै सोची की एक उका दे दै।"
" पर तुम्हारी तो अब एक ही किडनी है,और ये देखो ऑपरेशन के निशान भी हैं "
" अरे ऊ कौनौ किटनी न निकलवाई हमने।ऊ तो मुला नसबन्दी का आपरेसन हुआ था।ऊ जा साल सूखा पड़ा था,तबहीं एक सिविर लगा था।सबका मुफत में नसबन्दी का आपरेसन करके हज्जार रुपैया दै रै थे।तबहिं हमन नै करवा के हज्जार रुपया ....." कहते कहते वह रुक गया।मुफ़्त के शिविर में ऑपरेशन के पीछे का सच अब उसे समझ में आ गया था।
( मौलिक एवम अप्रकाशित )

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Comment by vijay nikore on December 16, 2015 at 3:10pm

अच्छी लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीया ज्योत्सना जी।

Comment by jyotsna Kapil on December 8, 2015 at 9:50am
आदरणीय शुभ्रांशु पांडे जी आपकी सुंदर प्रतिक्रिया ने मेरी बहुत हौसलाअफजाई की इसके लिए हृदय से आभारी हूँ आपकी।
Comment by jyotsna Kapil on December 8, 2015 at 9:49am
दिल से शुक्रिया आपका आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।
Comment by jyotsna Kapil on December 8, 2015 at 9:48am
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आप जैसे गुणीजन की प्रतिक्रिया बहुत हौसला बढ़ा देती है मेरा।हृदयतल से आभार आपका।
Comment by jyotsna Kapil on December 8, 2015 at 9:47am
मेरी हौसलाअफजाई के लिए तहेदिल से शुक्रिया आदरणीय नीता दी।आपकी सुंदर टिप्पणी ने मेरा लेखन सफल कर दिया।
Comment by jyotsna Kapil on December 8, 2015 at 9:46am
आदरणीय राहिला जी आपने अपने स्नेहिल शब्दों से मेरा बहुत हौसला बढ़ा दिया।दिल से शुक्रिया मित्र।
Comment by Shubhranshu Pandey on December 6, 2015 at 5:02pm

आदरणीया ज्योत्सना जी,

चिकित्सा क्षेत्र में हो रही चालबाजियों  को दर्शाती एक सुन्दर कथा. इस तरह के अनेक शिविरों का आयोजन अपने छिपे हुये उद्देश्यों के लिये ही लगायी जाती है. 

सादर.

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 6, 2015 at 8:20am

इस सुन्दर लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई l


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 5, 2015 at 8:14pm

आदरणीया , मुफ्त शिवरों की कड़वी सच्चाई  सच मे ऐसी ही कुछ है । आपकी लघुकथा अच्छी लगी । हार्दिक बधाई

Comment by Nita Kasar on December 5, 2015 at 1:04pm
पैसे के लिये मुफ़्त शिविर का कैसे फ़ायदा उठाते है ये नासमझ लोग ।समाजिक संस्थायें सरकार भी शिविर आयोजित करवाती है पर इस तरह लोग छलावे में आ जाते है कथा के ज़रिये सही प्रश्न उठाया है बधाई आपको आद०जयोत्सना जी ।

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