For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

विडम्बना ( लघुकथा )

बाल श्रम उन्मूलन सप्ताह की कवरेज करके सहकर्मी राकेश के संग लौट रहा सुमित उमंग और जोश से लबरेज़ था।
" सरकार के इस कदम की जितनी प्रशंसा की जाए कम है । कम से कम भोले भाले मासूमों का बचपन तो न छीन पाएगा कोई अब। "
एक झोपड़ पट्टी के पास से गुज़रते हुए जमा भीड़ और एक फटेहाल स्त्री का उच्च स्वर में रुदन सुनकर वह रुक गया
" आग लग जावे इस सरकार को,
अच्छा भला मेरा मुन्ना काम करके चार पैसा कमा लेवे था।पन सज़ा के डर से काउ ने बाए काम पर न रखो।का करता बेचारा ?पेट की आग बुझावे की खातिर चोरी कर बैठा,और कम्बखत पुलिस पकड़कर लै गई।अरे जब काम ही न मिले तो कोई चोरी न करे तो का करे ? " कुछ पल पहले उन बाल श्रमिकों के लिए आर्द्र होता सुमित अब धड़ाधड़ भीड़ और उस महिला की फोटो खींचे जा रहा था।कल के समाचारपत्र के लिए एक नई खबर मिल चुकी थी।
( मौलिक एवम् अप्रकाशित )

Views: 553

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 5, 2015 at 8:00pm

ज्योत्स्ना जी, आपकी ये लघु कथा एक साथ कई पहलुओं को समेटे  हुए है एक और जहाँ बाल श्रम पर केन्द्रित है वहीँ सरकार की बिना आगे की सोचे या क़ानून से पहले उस समस्या का निदान सोचने से पहले ही कदम उठाना सरकार के गलत कदम की और इशारा करती है 

तीसरे मीडिया को तो हर हाल में अपना काम करना है इन तीन पहलुओं पर एक सफल लघु कथा हुई दिल से बहुत बहुत बधाई आपको |

Comment by Abid ali mansoori on November 4, 2015 at 8:18pm

सार्थक और सटीक, वधाई आदरणीया ज्योत्सना जी!

Comment by TEJ VEER SINGH on November 4, 2015 at 5:02pm

हार्दिक बधाई आदरणीय ज्योत्सना जी!अच्छी लघुकथा!

Comment by kanta roy on November 4, 2015 at 12:02pm

सिर्फ एक धांसू खबर के लिए लालायित मानसिकता का बहुत खूब चित्रण हुआ है। एक सार्थक संपन्न लघुकथा के लिए बधाई ज्योत्सना। बहुत खूब लेखन हुआ है।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 4, 2015 at 11:34am

आदरणीया ज्योत्स्ना जी बहुत बढ़िया लघुकथा हुई है. हार्दिक बधाई. आदरणीय डॉ विजय शंकर सर से सार्थक टीप पाने के लिए विशेष बधाई. सर ने वाकई कथा के मर्म को बारीकी से पकड़ा है.// हमारे पास बच्चों के लिए कोई विचार / योजना है ही नहीं , नकारात्मक क़ानून बहुत हैं।// सादर 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 4, 2015 at 9:04am
मैं Dr Vijai Shanker जी व आदरणीया Rahila जी की टिप्पणियों से पूरी तरह सहमत हूँ। पता नहीं ऐसा क्यों होता है कि हर भलाई में बुराई और हर बुराई में कहीं न कहीं एक अच्छाई भी निहित होती है। अधिक प्रतिशत वाली उपलब्धि पर संतोष करने में ही भलाई है इस भारतीय व्यवस्था में। बहुत अच्छा सच्चा चित्रण किया है आपने आदरणीया Jyotsana Kapil जी। हृदयतल से बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ आपको।
Comment by Dr. Vijai Shanker on November 3, 2015 at 10:58pm
आदरणीय सुश्री ज्योत्स्ना कपिल जी , कभी-कभी तो वाकई में लगता है कि न तो हम अपनी समस्याओं को समझ पाते हैं , न उनका सही निदान ढूंढ पाते हैं और प्रायः कोई उलटा - सीधा समाधान निकालते भी हैं तो कितनी ही नई समस्याएं उत्पन्न कर लेते हैं। हमारे पास बच्चों के लिए कोई विचार / योजना है ही नहीं , नकारात्मक क़ानून बहुत हैं। आपको इस विचार - पूर्ण रचना के लिए बधाई , सादर।
Comment by Rahila on November 3, 2015 at 8:47pm
बहुत बेहतरीन रचना आदरणीया ज्योत्सना जी!हर सिक्के के दो पहलू होते है और दोनों ही वजूद में होते है, आपकी रचना की तरह । बहुत बधाई आपको इस उम्दा लेखन के लिये ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, यह तो स्पष्ट है, आप दोहों को लेकर सहज हो चले हैं. अलबत्ता, आपको अब दोहों की…"
40 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज सर, ओबीओ परिवार हमेशा से सीखने सिखाने की परम्परा को लेकर चला है। मर्यादित आचरण इस…"
45 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"मौजूदा जीवन के यथार्थ को कुण्डलिया छ्ंद में बाँधने के लिए बधाई, आदरणीय सुशील सरना जी. "
54 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- गाँठ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,  ढीली मन की गाँठ को, कुछ तो रखना सीख।जब  चाहो  तब …"
59 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"भाई शिज्जू जी, क्या ही कमाल के अश’आर निकाले हैं आपने. वाह वाह ...  किस एक की बात करूँ…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपके अभ्यास और इस हेतु लगन चकित करता है.  अच्छी गजल हुई है. इसे…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय शिज्जु भाई , क्या बात है , बहुत अरसे बाद आपकी ग़ज़ल पढ़ा रहा हूँ , आपने खूब उन्नति की है …"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" posted a blog post

ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है

1212 1122 1212 22/112मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना हैमगर सँभल के रह-ए-ज़ीस्त से गुज़रना हैमैं…See More
6 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी posted a blog post

ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)

122 - 122 - 122 - 122 जो उठते धुएँ को ही पहचान लेतेतो क्यूँ हम सरों पे ये ख़लजान लेते*न तिनके जलाते…See More
6 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधकह दूँ मन की बात या, सुनूँ तुम्हारी बात ।क्या जाने कल वक्त के, कैसे हों…See More
6 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
""रोज़ कहता हूँ जिसे मान लूँ मुर्दा कैसे" "
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
"जनाब मयंक जी ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, गुणीजनों की बातों का संज्ञान…"
7 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service