For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"आजकल सर काफी बदल गए हैं ,नोटिस किया ?"

तीन चार रोलिंग चेयर , कहने वाली की तरफ घूम  गईं  I

"हाँ ss ...मै भी   देख रही हूँ ,पहले तो एक्स रे जैसी  आँखें ,ऊपर से नीचे तक हमें  घूरती  रहती थीं I पर आज कल तो एकदम झुकी रहती हैं Iक्या हो गया मशीन को ?"

"वैरी फनी ,पर सच में यार ,कुछ भी ख़ास पहनो ,बार बार अपने केबिन  में बुला लेते थे  बहाने से "I

"हाँ ss ..  इतना कांशस कर देते थे न कभी कभी , पर अब तो गुड मॉर्निंग का जवाब भी नज़रें नीची कर के देते हैं, चक्कर क्या है ?"

"मुझे पता है "  ये रोलिंग चेयर वाली नहीं थी ,झाड़ू वाली थी I

"क्या पता है ?" सब रोलिंग चेयर  उस तरफ घूम गईं I

"साहब की बेटी तीन महीने की ट्रेनिंग के लिए अपने ऑफिस में आने वाली है ,और फिर शायद  यहीं पक्की भी लग जाय  "I

"ओss हो ss..,तो ये बात है ..,हूँ ss ...."इस लम्बी 'ओहो' और' हूँ '..में सभी शामिल थीं ,नीची चेयर वाली,ऊँची चेयर वाली ,झाडू वाली ..I

मौलिक व् अप्रकाशित 

Views: 806

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 21, 2015 at 1:00pm

वाह्ह्ह्ह  वाह्ह  इस लघु कथा की जितनी भी तारीफ की जाए कम होगी ये स्थिति आज कामकाजी महिलाओं के लिए आम हो गई है चाहे वो महिला किसी भी श्रेणी की हो जिसकी जो आदत है बाज नहीं आता किन्तु जब अपनी बेटी सामने हो तो अच्छे अच्छे बगुलाभगत बन जाते हैं बहुत बढ़िया मर्म है दिल से बधाई लीजिये प्रिय प्रतिभा जी. 

Comment by pratibha pande on September 21, 2015 at 9:45am

आदरणीय धर्मेन्द्र जी ,रचना पर आकर मेरा उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार 

Comment by pratibha pande on September 21, 2015 at 9:42am

रचना का आपके द्वारा इतना मुखर अनुमोदन मुझे अभिभूत कर रहा है ,आपका ह्रदय तल से आभार आदरणीय मिथिलेश जी 

Comment by pratibha pande on September 21, 2015 at 9:40am

कार्य  स्थल में महिलाओं को जिस तरह की परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है उसका दंश ऊँची चेयर सेलेकर  झाड़ू वाली तक सब बराबर महसूस करती हैं  ,कथा की अंतिम पंक्तियों का मर्म कुछ ऐसा ही है ,कथा का शीर्षक 'औरतें ' भी इसी भाव को बयां करता है ,  आप ने  रचना पर आकर मुझे मान दिया और मेरा उत्साह वर्धन किया आपका ह्रदय तल से आभार आदरणीय रवि प्रभाकर जी  सादर 

Comment by Ravi Prabhakar on September 21, 2015 at 8:37am

जर्बदस्‍त व तीक्ष्‍ण कटाक्ष करने में सफल रही अापकी इस सशक्‍त रचना के लिए आपको ह्दय तल से असीम शुभकामनाएं आदरणीय प्रतिभा जी । मुझे इस लघुकथा की अंतिम पंक्‍ित एकदम अनावश्‍यक लगी। /साहब की बेटी तीन महीने की ट्रेनिंग के लिए अपने ऑफिस में आने वाली है ,और फिर शायद  यहीं पक्की भी लग जाय  / कथा यदि यहीं समाप्‍त हो जानी चाहिए थी। सादर शुभकामनाएं ।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 20, 2015 at 10:04pm

अच्छी लघुकथा है आदरणीया प्रतिभा जी, दाद कुबूल कीजिए


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 20, 2015 at 8:43pm

बढ़िया बढ़िया ..............शानदार जानदार 

संवाद शैली का जादू चल गया 

कथ्य जिस झटके से उभरा है लघुकथा सफल कर गया ....

बातों बातों में बड़ी बात ....

दिल से दाद और ढेर सारी बधाई 

ये लघुकथा लिखी नहीं गई है बल्कि हो गई है. इसे कहते है लघुकथा कहना.... वाह वाह 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
17 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service