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तुम्हारे शहर में खाना ख़राब हूँ मैं तो (फिल बदीह ग़ज़ल 'राज')

1212   1122    1212    22

तमाम उम्र जलूँ आफ़ताब हूँ मैं तो,

पढ़ी न जाय कभी वो किताब हूँ मैं तो

 

न ढूँढिये मुझे केवल सराब हूँ मैं तो,

किसी चमन का फ़सुर्दा गुलाब हूँ मैं तो      .

 

खुदी के प्रश्न का खुद ही जबाब हूँ मैं तो,

हुजूर अपनी जमीं का नबाब हूँ मैं तो

 

एजाज नूर का जिसके जुबाँ जुबाँ पर है,

उस आईने का फ़क़त इक निकाब हूँ मैं तो

 

दिखा सके न कभी आँख गैर कोई भी

,वतन की हद पे लिखा इक रुआब हूँ मैं तो

 

बुला के बज्म में अपनी भला क्या कीजैगा

,तुम्हारे शहर में खाना ख़राब हूँ मैं तो

 

मुझे बुला के भला ख़्वाब में क्या पाओगे

मुसीबतों का सबब बेहिसाब हूँ  मैं तो

 

करेगा कैसे उजाला ये डूबता सूरज,

रखो न आस मेरी इक हुबाब हूँ मैं तो

---------------मौलिक एवं अप्रकाशित 

 

 

 

 

 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 21, 2015 at 12:54pm

आ०  गिरिराज जी,आप जैसे ग़ज़लकार से दाद पाना मेरे लिए मायने रखता है आपका दिल से बहुत- बहुत शुक्रिया.  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 21, 2015 at 12:21pm

आदरणीया राजेश जी , क्या बात है !! बहुत खूब सूरत ग़ज़ल कही है , दिली मुबारक बाद स्वीकार करें ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 21, 2015 at 10:22am

अजय शर्मा जी,बहुत- बहुत शुक्रिया.  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 21, 2015 at 10:21am

आ० धर्मेन्द्र सिंह जी,ग़ज़ल आपको पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से बहुत बहुत आभार  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 21, 2015 at 10:20am

आ० नीरज कुमार नीर जी,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका बहुत- बहुत शुक्रिया|  

Comment by ajay sharma on September 20, 2015 at 10:23pm

बुला के बज्म में अपनी भला क्या कीजैगा

,तुम्हारे शहर में खाना ख़राब हूँ मैं तो..........wah wah

 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 20, 2015 at 10:12pm

अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीया राजेश कुमारी जी, दाद कुबूल कीजिए

Comment by Neeraj Neer on September 20, 2015 at 4:53pm

वाह बहुत सुंदर गजल हुई है ॥

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on September 19, 2015 at 11:14pm
जी आदरणीया अतिशयोक्ति की बात से शेर और स्पष्ट हुआ।आजकल व्यस्तता काफी बढ़ गयी है इसलिए बहुत कम आना हो पा रहा है ओबीओ पर आगे प्रयास रहेगा और सक्रीय होने के लिए । सादर

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Comment by rajesh kumari on September 19, 2015 at 8:29pm

कृष्ण मिश्रा जी,ग़ज़ल पर आपकी उपस्थति और  दाद  से बेहद प्रसन्न हूँ |आपके संशय का निवारण करना मेरा धर्म है --क्या को गिराना मेरे हिसाब से तो जायज है दूसरी बात सामने आकर तो मुसीबतों का सबब होता ही है किन्तु ख़्वाब की बात अतिश्योक्ति की तरह प्रयोग की है ---जैसे ख़्वाब में भी मुझे बुलाओगे तो मुसीबत होगी ---ग़ज़लों में बाते घुमा फिर कर कहें तो शेर का और वजन बढ़ता है ऐसा मैं मानती हूँ | आपका तहे दिल से शुक्रिया ...आजकल ओबिओ पर आप कम दिखाई दे रहे हैं 

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