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मिला आज बेटा वो बलवाइयों में (फिलबदीह ग़ज़ल 'राज')

122   122  122    122

कुहुकती है कोयलिया अमराइयों में

महकते  कई  फूल पुरवाइयों में  

 

दिखाई  न  दी आज दीवार उनकी

अजी, क्या सुलह हो गई भाइयों में ?

 

ग़मों के  भँवर में जो खोया था बचपन

मिला आज यादों की परछाइयों में

 

पिघलते हों पत्थर धुनें जिनकी सुनकर

फुसूँ हमने देखा वो शहनाइयों में

 

उजाले  में दिन के छुपे रहते बुजदिल

उमड़ते वही अब्र तन्हाइयों में

 

न कद से समंदर की औकात परखो

छुपा है खजाना तो गहराइयों में

 

वफ़ा आज जाने कहाँ को गई है

न है बांकपन में न रानाइयों में

 

पिता माँ बहन नाज करते थे जिसपर

मिला आज बेटा वो बलवाइयों में

मौलिक एवं अप्रकाशित 

 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 2, 2015 at 1:57pm

प्रिय तनूजा जी,आपका दिल से आभार |शुभकामनायें 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 2, 2015 at 1:56pm

आ० गिरिराज जी ,आपकी दाद मेरे लिए अमूल्य है तहे दिल से बहुत- बहुत शुक्रिया .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 2, 2015 at 1:55pm

आ० रवि शुक्ला जी ,आपका तहे दिल से बहुत- बहुत आभार .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 2, 2015 at 1:54pm

आ० श्याम नारायण वर्मा जी ,इस उत्साह वर्धन के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया |

Comment by Tanuja Upreti on September 2, 2015 at 12:19pm

बहुत सुन्दर ग़ज़ल मै'म वाह वाह I बधाई I 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 2, 2015 at 10:46am

आदरनीया राजे श जी , अक और अच्छी अज़ल के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by Ravi Shukla on September 1, 2015 at 10:56pm
आदरणीया राजेश जी सुन्दर ग़ज़ल के लिए शेर दर शेर दाद क़ुबूल करें । बधाई
Comment by Shyam Narain Verma on September 1, 2015 at 7:09pm
बहुत सुन्दर ग़ज़ल! आपको हार्दिक बधाई!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 1, 2015 at 10:42am

आ० समर कबीर भाई जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपकी शैर दर शैर दाद पाकर मन उत्साहित है आपकी इस  नवाजिश का  तहे दिल से शुक्रिया  |आपकी इस्स्लाह का स्वागत है मैं लिखते हुए यही सोच रही थी कि जैसे  कोई के  को की मात्रा को गिराकर  लघु कर सकते हैं तो क्या कोयलिया का भी कर सकते हैं  ,पूर्णतः आश्वस्त नहीं थी इस लिए ये लिखा था अब आपकी इस्स्लाह को देखते हुए इसे संशोधित करना ही ठीक होगा क्यूंकि आपका मिसरा ज्यादा प्रभावशाली लग रहा है आपका आभार भाई जी  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 1, 2015 at 10:35am

आ० सुशील  सरना जी,आपकी दाद पाकर ग़ज़ल धन्य हो गई अभिभूत हूँ दिल की गहराइयों से आपका आभार | 

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