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नाम माशूक का तो खूँ से लिखा करते थे(तरही ग़ज़ल 'राज')

चीर चट्टान के सीने को मिला करते थे

तब मुहब्बत में सनम लोग वफ़ा करते थे  

 

काट देता था ज़माना भले ही पर नाजुक 

होंसलों से नई परवाज़ भरा करते थे

 

दिल के ज़ज्बात कबूतर के परों पर लिखकर

प्यार का अपने वो  इजहार किया करते थे

 

कैस फ़रहाद या राँझा कई दीवाने तब   

नाम माशूक का तो खूँ से लिखा करते थे

 

एक हम थे  जो जमाने  की नजर से डरकर

जल्द खुर्शीद के ढलने की दुआ करते थे 

 

आज वो रह गए केवल मेरा सपना बनकर

चाँदनी रात में हम जिनसे मिला करते थे  

 ------------मौलिक एवं अप्रकाशित 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 1, 2015 at 10:28am

आ० भुवन निस्तेज जी ,आपका तहे दिल से आभार |

Comment by भुवन निस्तेज on September 1, 2015 at 9:56am

दिल के ज़ज्बात कबूतर के परों पर लिखकर

प्यार का अपने वो  इजहार किया करते थे

waah kyaa bat hai...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 27, 2015 at 9:45pm

आ०  धर्मेन्द्र जी ,आपकी दाद पाकर मेरा उत्साह दुगुना हो गया दिल से बहुत बहुत आभार आपका |

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 27, 2015 at 9:34pm
बहुत ख़ूब आदरणीया राजेश कुमारी जी, अच्छी ग़ज़ल के लिए दाद कुबूल कीजिए।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 27, 2015 at 10:04am

आ० गिरिराज जी ,आप जैसे ग़ज़लकार से दाद पाना मेरे लिए मायने रखता है बहुत बहुत शुक्रिया आपका ,मेरा लिखना सार्थक हुआ |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 27, 2015 at 10:03am

आ० रवि शुक्ला जी,आपका बहुत- बहुत आभार .  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 27, 2015 at 7:38am

क्या बात है , आदरणीया राजेश जी , बहुत खूबसूरत गज़ल कही है , सभी अश आर बेहतरीन हुये हैं । दिली मुबारक बाद कुबोल कीजिये ।

Comment by Ravi Shukla on August 26, 2015 at 2:18pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी सुन्‍दर प्रस्‍तुति के लिये बधाई स्‍वीकार करें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 25, 2015 at 12:42pm

आ० कांता रॉय जी, आप जैसे संवेदनशील पाठक से दाद पाकर कोई भी रचना स्वतः धन्य हो जाती है मेरे उत्साह में इजाफ़ा करती हुई इस प्रतिक्रिया के लिए बेहद शुक्रगुजार हूँ | 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 25, 2015 at 12:40pm

प्रिय प्रतिभा पाण्डेय जी,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से बहुत बहुत आभारी हूँ | 

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