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इतनी सारी रोटियाँ (लघुकथा ) कान्ता राॅय

"कितने बडे परिवार में व्याह दिया तुमने माँ , एक बार भी नहीं सोचा कि कैसे निभाऊँगी मै ? "

"नहीं बिट्टो ऐसा नहीं कहते ,भरा - पूरा घर है तुम्हारा । ऐसे परिवार क़िस्मत- वालियों को मिलते है । "

"खाक क़िस्मत -वालियाँ , तुम नहीं जानती कि मुझे , इतनीss सारी रोटियां अकेले सेंकनी पडती है ।"

"घर के लोगों की रोटियां नहीं गिनते बिट्टो , नजर लग जाती है ।" माँ हल्की चपत लगाते हुए कह उठी थी उस दिन ।

माँ का लाड़ से मुस्कुरा कर रह जाना, आज उसे बहुत याद आ रहा था ।

पति की अचानक हुए रोड एक्सीडेंट में उनका मरणासन्न अवस्था और  बडे़ परिवार का एकजुटता से बच्चे समेत उसको भी संभालना , आज रसोई पकाते हुए रोटियां गिनती में बहुत कम  नजर आ  रही थी ।

"मौलिक व अप्रकाशित" 

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Comment by kanta roy on September 22, 2015 at 9:40am
कथा पसंदगी के लिये आभार आपको आदरणीय शिज्जू शकूर जी
Comment by kanta roy on September 22, 2015 at 12:42am

कथा पसंदगी  के लिए तहे दिल से आभार आदरणीय    Manoj kumar Ahsaas जी

Comment by kanta roy on September 22, 2015 at 12:38am

कथा  पर आपके द्वारा  मेरा मनोबल बढ़ने के लिए तहे दिल से आभार आदरणीय  डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव  जी , .आपके द्वारा कथा पर अनुमोदन मिलना मेरे लिए एक अवार्ड के सामान  है। 

Comment by kanta roy on September 22, 2015 at 12:32am

कथा  पर मेरा हौसला बढाने के लिएतहे दिल से आभार आदरणीय मिथिलेश जी  

Comment by kanta roy on September 22, 2015 at 12:26am

ह्रदयतल से आभार आपको आदरणीय प्रतिभा जी कथा पर मेरा हौसला बढाने के लिए।  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 21, 2015 at 12:11pm

अखंडित परिवार का यही तो सबसे बड़ा फायदा है , दुख हो सुख आराम से बांट लिये जाते हैं । बहुत सुन्दर लघुकथा लगी आपकी , हार्दिक बधाई आपको ।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 20, 2015 at 10:06pm

इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई

Comment by Neeraj Neer on September 20, 2015 at 4:46pm

वाह आदरणीया कांता जी बहुत ही सशक्त लघुकथा हुई है ..... 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 20, 2015 at 11:36am

वाह वाह आ० कांता जी,बहुत ही सार्थक प्रेरक लघु कथा लिखी है आज के माहौल में ऐसी लघु कथाओं की आवश्यकता है जो प्रेरणादायी हों तथा रिश्तों को जोड़ने में सहायक हों दिल से बधाई इस सुन्दर लघु कथा पर | 

Comment by Dr. Vijai Shanker on September 18, 2015 at 8:24am
परिवार के महत्व को स्थापित करती इस लघु - कथा के लिए बहुत बहुत बधाई , आदरणीय सुश्री कान्ता रॉय जी , सादर।

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