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''हंगाम फितरत पाल बैठा हूँ''

2212  2212   22

क्या ख़ूब आफ़त पाल बैठा हूँ

दिल में शराफ़त पाल बैठा हूँ

.

मुफ़्त इक मुसीबत पाल बैठा हूँ

बुत की मुहब्बत पाल बैठा हूँ

.

क्यूँ ये सितारे हैं ख़फ़ा मुझसे?

जो तेरी चाहत पाल बैठा हूँ

.

वो बेवफा कहने लगा मुझको

जबसे मुरव्वत पाल बैठा हूँ

.

कोई तो तुम अब फ़ैसला दे दो

पत्थर की सूरत पाल बैठा हूँ

.

गर तू तगाफुल पे अड़ा है

सुन मैं भी वहशत पाल बैठा हूँ

.

वारे तमन्ना-ए-वफ़ा-ए-य़ार

ख़ुद से बग़ावत पाल बैठा हूँ

.

दीवानगी है गो ख़ुराके इश्क़

हंगाम फितरत पाल बैठा हूँ

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मौलिक व् अप्रकाशित © ‘जान’ गोरखपुरी

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Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on September 16, 2015 at 4:27pm

उत्साहवर्धन के लिए आभार आ० शिज्जू सर,जिहाफ़ की मुझे बहुत जानकारी नहीं है,आगे से इस तरह के बह्र के सम्बन्ध ज़रूर सलाह ले लिया करूँगा,आ० मार्गदर्शन बनाएं रक्खें!

Comment by MUKESH SRIVASTAVA on September 16, 2015 at 12:26pm

kyaa baat hai mtira


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Comment by मिथिलेश वामनकर on September 16, 2015 at 12:06pm

बहुत बढिया प्रस्तुति .... आदरणीय शिज्जु जी की बात पर गौर कीजियेगा 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 16, 2015 at 10:59am

बहुत बढ़िया प्रिय कृष्णा

Comment by Dr. Vijai Shanker on September 16, 2015 at 9:39am
क्या ख़ूब आफ़त पाल बैठा हूँ
दिल में शराफ़त पाल बैठा हूँ।
बहुत खूब, सुन्दर , बधाई , प्रिय कृष मिश्रा जी , सादर।
.

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Comment by शिज्जु "शकूर" on September 16, 2015 at 8:42am
बहुत बढ़िया कृष्ण मिश्राजी इस ग़ज़ल के लिये बधाई। बह्र के चयन से पहले तस्दीक कर लें कि वो मान्य बह्र है या नहीं 2212 मूल बह्र हजज है जहाँ तक मेरी जानकारी है इसका जिहाफ़ नहीं बनेगा।
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on September 15, 2015 at 7:24pm
.यह शेर कुछ इस तरह है-
गर तू तगाफुल पे अड़ा है तो^^
सुन मैं भी वहशत पाल बैठा हूँ

टाइपिंग में 'तो'छूट गया था।
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on September 15, 2015 at 4:33pm
तहेदिल से शुक्रिया आ0 रवि जी|
Comment by Ravi Shukla on September 15, 2015 at 11:36am

अादरणीय जान गोरखपुरी जी ग़ज़ल के लिये बधाई कुबूल करें

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