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दुनिया बिलकुल छोटी है (ग़ज़ल) -- मिथिलेश वामनकर

22---22---22---2

 

फूलों में सरगोशी है

सच की खुशबू फैली है

 

मुमकिन को भी मायूसी

नामुमकिन कर देती है

 

चलती है बस ताकत की

लागर तो फरयादी है

 

मेरी जाँ की दुश्मन भी

मेरी ही नादानी है

 

मत पूछो क्या ग़ज़लों में ?

ये दुनिया ही दूजी है

 

मैंने पूछा कैसी हो ?

जाने माँ क्यों रोती है

 

सूरत में आवाजें हैं

सीरत में ख़ामोशी है

 

ख़्वाब मुफ़स्सल है लेकिन

दुनिया बिलकुल छोटी है

 

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(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर

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Comment by मिथिलेश वामनकर on August 26, 2015 at 2:18pm

आदरणीय दिनेश भाई जी, त्रुटी स्पष्ट करने के लिए हार्दिक आभार. एक रौ में लिखी ग़ज़ल है. छोटी बह्र में अभ्यास कर रहा हूँ लेकिन बात नहीं बन पा रही है. प्रयास जारी है. सादर 

Comment by Ravi Shukla on August 26, 2015 at 2:08pm

आदरणीय मिथिलेश जी

गज़ल का कथ्‍य बहुत पंसद आया । उसके लिये आपका आभार । हमें ऐसा क्‍यों लगा है कि यह ग़ज़ल ताजा कही हुई नहीं है इतने दिनों में आपके एक अंदाज के आदी हो गये है । क्षमा सहित निवेदन है क‍ि वो अंदाजे बयां यहां हमे नहीं मिल रहा । हो सकता है हम गलत हो ये हमारा विचार है ।

Comment by Harash Mahajan on August 26, 2015 at 1:59pm

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी ....छोटी बहर में एक नायाब ग़ज़ल....हर शेर अपने आप में सम्पूर्ण और एक दुसरे से जुडा  नज़र आता है ! इस बेतरीन प्रस्तुति के लिए बधाई ! साभार !1

Comment by दिनेश कुमार on August 26, 2015 at 1:48pm
इसी प्रकार यादें प्यारी लगती हैं, में रदीफ़ बदल गया है।
Comment by दिनेश कुमार on August 26, 2015 at 1:46pm
आदरणीय मिथिलेश भाई, खुशियाँ बहुवचन है, इसलिए रदीफ़ है की बजाय हैं हो रहा है। मिसरा दोबारा कह लीजिए

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 26, 2015 at 12:54pm

आदरणीय दिनेश भाई जी, ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आभार.

आपने कहा टंकण त्रुटी हुई है सुधारकर 'वापस' करता हूँ. सादर 

Comment by दिनेश कुमार on August 25, 2015 at 6:16pm
बेहतरीन ग़ज़ल आ.मिथिलेश भाई। बहुत ख़ूब।

सूरत में आवाजें हैं
सीरत में ख़ामोशी है... बहुत ख़ूब

मत पूछो क्या ग़ज़लों में
ये दुनिया ही दूजी है... सहमत हूँ भाई। वाह

मतला भी बहुत अच्छा है। बस यह मिसरा ठीक कर लें भाई -- खुशियाँ वापिस मिलती है

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 25, 2015 at 5:08pm

आदरणीय सुशील सरना सर,  आप जैसे संवेदनशील रचनाकार से प्रशंसा पाना मेरे लिए बहुत मायने रखता है. ग़ज़ल के मुखर अनुमोदन से मुग्ध हूँ. जादूगर नहीं सर बिलकुल नया अभ्यासी हूँ. एक विशाल हृदय पाठक ने मान दिया ये मेरे लिए बड़ी बात है.  सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. नमन 

Comment by Sushil Sarna on August 25, 2015 at 4:06pm

मेरी जाँ की दुश्मन भी
मेरी ही नादानी है

मत पूछो क्या ग़ज़लों में ?
ये दुनिया ही दूजी है

वाह आदरणीय मिथिलेश जी बहुत ही मासूम खूबसूरत ग़ज़ल की प्रस्तुति हुई है। अगर आपको ग़ज़लों का जादूगर कहा जाए तो अतिश्योक्ति न होगी। बहरहाल इस दिलकश प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।

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