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इस फ़िजूली से बेहतर यही, कुछ न कुछ आप करते रहें--- (ग़ज़ल)--- मिथिलेश वामनकर

212—212—212----212—212—212

 

वो बदलते नहीं है अगर,  तो फ़क़त इतना चल जाएगा

आप खुद ही बदल जाइए, ये ज़माना बदल जाएगा

 

बात इतनी सी है ये मगर, नासमझ बन के बैठे हुए

बेटियाँ जो तरक्की करें, ये वतन ही संभल जाएगा

 

इस फ़िजूली से बेहतर यही, कुछ न कुछ आप करते रहें

काम करते रहें आप तो कोई मकसद निकल जाएगा

 

नर्म लफ़्ज़ों से हो जाते है सख्त़-दिल भी फतह, मान लो

आप लहजे से बेहतर हुए और पत्थर पिघल जाएगा

 

इल्म क्या है किताबी भला, तज्रिबा जो नहीं आपको

दो बुजुर्गों से मिल आइये, काम इतने से चल जाएगा

 

जब भी बारिश जरा सी हुई तो उफनती है छोटी नदी

वो है कमज़र्फ, दौलत न दो वो यक़ीनन मचल जाएगा

 

ख्वाहिशों की हदें क्या बला? जो समझना अगर आपको 

एक बच्चे को पुचकारिये, वो खुशी से उछल जाएगा

 

ये यकीं मान ले ऐ बशर, है ठिकाना घड़ी दो घड़ी   

इस जहां में जो आया था कल, इस जहां से वो कल जाएगा

 

जो तमन्ना के पीछे अगर, दौड़ता ही रहा उम्र भर

हाथ तेरे न कुछ आएगा औ' खुदा का फज़ल जाएगा

 

एक दर बंद जो हो गया, दूसरा मुन्तज़िर मान लो  

अपनी कोशिश को आवाज़ दो, कोई रस्ता निकल जाएगा

 

इन ख़ुशी के पलों को अगर, जो समेटा नहीं आपने

ये खबर भी न हो पाएगी, वक़्त यूं ही फिसल जाएगा

 

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(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
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Comment

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Comment by गिरिराज भंडारी on August 20, 2015 at 7:18am

आदरणीय मिथिलेश भाई , अच्छी गज़ल कही है , आपको दिली बधाइयाँ गज़ल के लिये ।

एक शब्द के विषय मे सोचियेगा ,

फिज़ूल = व्यर्थ  , इसमे बे लगायें ( बे = विरोधी अर्थ देता है ) तो क्या अर्थ निकलेगा ?  

Comment by Sushil Sarna on August 19, 2015 at 4:49pm

इन ख़ुशी के पलों को अगर, जो समेटा नहीं आपने
ये खबर भी न हो पाएगी, वक़्त यूं ही फिसल जाएगा
शानदार भावों को अभिव्यक्त करती शानदार ग़ज़ल … हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय मिथिलेश जी।

Comment by Ravi Shukla on August 19, 2015 at 12:18pm

आदरणीय मिथिलेश जी

सुन्‍दर ग़ज़ल हुइ्र है शेर दर शेर दाद कुबूल करें । आपकी सोच में बुजुर्गो के प्रति आदर सम्‍मान अापकी रचनाओं के माध्‍यम से दिखाई देता रहता है । ये बहुत ही अच्‍छी बात है । आाभार आपका इसके लिये ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 19, 2015 at 10:38am

ख्वाहिशों की हदें क्या बला? जो समझना अगर आपको 

एक बच्चे को पुचकारिये, वो खुशी से उछल जाएगा

बहुत ख़ूबसूरत ऐश'आर हुए हैं आ० भाई मिथिलेश जी हार्दिक बधाई .

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 19, 2015 at 10:29am

आदरणीय मिथिलेश जी, बड़े खूबसूरत अश’आर हुए हैं, दाद कुबूल करें

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