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अपनी साँसें भी मुझे अपनी सी लगती ही नहीं

अपनी साँसे भी मुझे अपनी सी लगती ही नहीं,
बात इतनी सी मगर दिल से ये निकली ही नहीं |

दिल में आतिश है बहुत ये हुस्न बे जलवा नहीं
चाहता हूँ आग उसमें पर वो जलती ही नहीं |

शाम से शब ग़ैर की ज़ुल्फ़ों में जब करने लगे
रात ऐसी जो हुई फिर सुब्ह निकली ही नहीं |

जब तलक थे हमकदम, अपना सफ़र चलता रहा,
दरिया क़तरा जब हुवा, मंज़िल वो मिलती ही नहीं |

इस कदर रोया हूँ मैं आखें भी धुंधला सी गई,
आज कुछ बूँदे भी आँखों से निकलती ही नहीं |  

हर्ष महाजन

.
हर्ष महाजन
"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment by Samar kabeer on July 26, 2015 at 11:49am
जनाब हर्ष महाजन जी,आदाब,जनाब मिथिलेश जी ने सही कहा है कि मतले में ईताए जली का दोष है,सानी मिसरा इस तरह कर लें तो यह दोष निकल जाएगा :-

"बात इतनी सी मगर दिल से ये निकली ही नहीं"

"दिल में आतिश है बहुत, हुस्न भी बे-जलवा नहीं,
चाहुं मैं उसमें भी वो आग, पर जलती ही नहीं"

इस शैर को इस तरह कर लें :-

"दिल में आतिश है बहुत ये हुस्न बे जलवा नहीं
चाहता हूँ आग उसमें पर वो जलती ही नहीं"

"गैर की जुल्फों में जब, शाम से शब् करने लगे,
रात ऐसी जो हुई, सुबह फिर निकली ही नहीं"

इस शैर को इस तरह कर लें :-

"शाम से शब ग़ैर की ज़ुल्फ़ों में जब करने लगे
रात ऐसी जो हुई फिर सुब्ह निकली ही नहीं"

"जब तलक थे हमकदम, अपना सफ़र चलता रहा,
दरिया कतरा जो हुआ, मंजिल मिलती ही नहीं"

इस शैर का सानी मिसरा इस तरह कर लें :-

"दरिया क़तरा जब हुवा,मंज़िल वो मिलती ही नहीं"

"इस कदर रोया हूँ मैं, आँखें भी धुंधला सी गई,
आज चंद बूँदें भी आँखों से निकलती ही नहीं"

इस शैर का भी सानी मिसरा इस तरह कर लें :-

"आज कुछ बूँदे भी आँखों से निकलती ही नहीं"

आपकी मंच पर यह पहली ग़ज़ल है जिसका हम स्वागत करते हैं ,इसी तरह प्रयास करते रहें ,बाक़ी शुभ शुभ ।
Comment by Ram Ashery on July 26, 2015 at 10:23am

बहुत सुंदर आपको हृदय से बधाई स्वीकार हो 

Comment by Harash Mahajan on July 26, 2015 at 9:19am

आदरणीय Jatinder Aulakh जी आपको मेरी ये रचना पसंद आई उसके आपका बहुत-बहुत शुक्रिया और धन्यवाद !! उम्मीद है आप आगे भी  हौंसिला अफजाई करते रहेंगे !!

साभार !!

Comment by Harash Mahajan on July 26, 2015 at 9:17am

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी इस छोटी सी कृति पर आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए तह-ए-दिल से शुक्रिया और आभार  !! मेरे ब्लॉग पर शामिल करने के लिए मेरी ये पहली रचना है | इस पर इंगित दोष के बारे में आप जैसे गुनीजनों का मार्गदर्शन रहेगा तो सही से कहने  का साहस और  कोशिश ज़रूर करता रहूँगा | इस रचना के बारे में कुछ भी दोष या जानकारी दे सकें तो आभारी रहूँगा | आभार !!

Comment by Jatinder Aulakh on July 26, 2015 at 5:24am
Bahut khoob

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 26, 2015 at 12:29am

आदरणीय हर्ष महाजन जी बढ़िया ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई 

काफिया में ईता दोष के सम्बन्ध में गुनीजनों से मार्गदर्शन का निवेदन है. सादर 

कृपया ध्यान दे...

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