For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - फिल बदीह -- घटी है दरमिय़ाँ दूरी , किसी के दूर जाने से ( गिरिराज भंडारी )

1222       1222       1222        1222

मुहब्बत कब छिपी है चिलमनों की ओट जाने से

नज़र की शर्म कह देगी तुम्हारा सच जमाने से 

 

अरूजी इल्म में उलझे नहीं, बस शादमाँ वो हैं

हमे फुरसत नहीं मिलती कभी मिसरे मिलाने से

 

उदासी किस क़दर दिल में बसी है क्या कहें यारों

बस अश्कों का बहा दर्या है दिल के आशियाने से 

 

अकड़ने से बढ़ा हो क़द , मिसाल ऐसी नहीं, लेकिन 

झुके हैं  बारहा  लेकिन किसी के  सर झुकाने से

 

कभी ये भी  हुआ है प्यार के रस्ते में , जादू सा

घटी है दरमिय़ाँ दूरी , किसी के दूर जाने से...

 

तो इक़रारे मुहब्बत क्या ज़बानी भी ज़रूरी है
ख़मोशी में अयां है सब, छिपा क्या है ज़माने से

**********************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 908

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by kanta roy on July 3, 2015 at 9:47am
हर एक शेर लाजवाब बनी है आपकी आदरणीय गिरीराज भंडारी जी । क्या कहने है इस शेर का---
मुहब्बत कब छिपी है चिलमनों की ओट जाने से
नज़र की शर्म कह देगी तुम्हारा सच जमाने से .... जितनी भी दाद दे कम ही है यहाँ .. वाह !!!

शायर का मिसरा मिलाने से फुरसत ना मिलने पर भी क्या सुंदर शेर बनी है आपकी ..... वाह !!!
अचानक से दर्द का फसाना भी बयाँ कर गये आप बडी ही शायराना सा अंदाज़ लिए ..... क्या कहना है इस शेर के भी !!
अकड़ने की बात में तो बातों ही बातों में बडी बात कर गये ..... अति सुंदर
प्यार में दूरियाँ अक्सर बेहद नजदिकीयाँ कायम कर जाती है ..बडी रूमानियत से लिख गये शेर इस बात पर भी ... गजब हुई यह शेर , क्या कहना है इस अंदाज के भी ..

वाह !!!! ढेरों बधाई इस खूबसूरत गजल के लिए ।
Comment by Pari M Shlok on July 3, 2015 at 9:39am
अजूबा भी हुआ है प्यार के रस्ते में , यूँ यारों
घटी है दरमिय़ाँ दूरी , किसी के दूर जाने से

अकड़ने से बढ़ा हो क़द , मिसाल ऐसे नहीं, लेकिन
झुकी है भीड़ निश्चित ही किसी के सर झुकाने से

वाह सर लाज़वाब
Comment by Rahul Dangi Panchal on July 3, 2015 at 7:43am
आदरणीय अच्छी गजल हुई है । एक बार ६वाँ शे'र देखे क्या तकाबुले रदीफ है?

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 3, 2015 at 12:41am

आदरणीय गिरिराज सर बढ़िया फिल बदीह ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद हाज़िर है.

बेहतरीन शेर -

अजूबा भी हुआ है प्यार के रस्ते में , यूँ यारों

घटी है दरमिय़ाँ दूरी , किसी के दूर जाने से

 

Comment by maharshi tripathi on July 2, 2015 at 11:44pm

उदासी किस क़दर दिल में बसी है क्या कहें यारों

बस अश्कों का बहा दर्या है दिल के आशियाने से ---लाजवाब 

अकड़ने से बढ़ा हो क़द , मिसाल ऐसे नहीं, लेकिन 

झुकी है भीड़ निश्चित ही किसी के सर झुकाने से--कमाल का मतला है 

जो चीखे , रोये, गाये झूठ ले कर भी , वही जीते

लिये सच हार बैठे , जो न छूटे  बुदबुदाने से---विशेष दाद ,,,,,,,,कमाल की गजल है आ.गिरिराज भंडारी सर जी |

Comment by MAHIMA SHREE on July 2, 2015 at 9:20pm

अकड़ने से बढ़ा हो क़द , मिसाल ऐसे नहीं, लेकिन 

झुकी है भीड़ निश्चित ही किसी के सर झुकाने से....बहुत खूब..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 2, 2015 at 4:23pm

आदरणीय पाठकों निम्न मिसरे में ' मिसाल ' शब्द के उपयोग करते समय लिंग दोष आ गया है  अकड़ने से बढ़ा हो क़द , मिसाल ऐसे नहीं, लेकिन   

इस मिसरे को कृपया ऐसे पढ़ें --- 

अकड़ने से बढ़ा हो क़द , मिसाल ऐसी नहीं, लेकिन     ---    आप सब का शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 2, 2015 at 4:19pm

आदरणीय आशुतोष भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका बहुत बहुत  आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 2, 2015 at 4:18pm

आदरणीय कृष्णा भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका बहुत शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 2, 2015 at 4:17pm

आदरणीय श्याम नारायण भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका आभारी हूँ ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin posted discussions
8 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बहुत सुंदर अभिव्यक्ति हुई है आ. मिथिलेश भाई जी कल्पनाओं की तसल्लियों को नकारते हुए यथार्थ को…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
Thursday
Sushil Sarna posted blog posts
Jun 5
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
Jun 5
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
Jun 5
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Jun 3
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Jun 3

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Jun 3
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Jun 2

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service