1222 1222 1222 1222
मुहब्बत कब छिपी है चिलमनों की ओट जाने से
नज़र की शर्म कह देगी तुम्हारा सच जमाने से
अरूजी इल्म में उलझे नहीं, बस शादमाँ वो हैं
हमे फुरसत नहीं मिलती कभी मिसरे मिलाने से
उदासी किस क़दर दिल में बसी है क्या कहें यारों
बस अश्कों का बहा दर्या है दिल के आशियाने से
अकड़ने से बढ़ा हो क़द , मिसाल ऐसी नहीं, लेकिन
झुके हैं बारहा लेकिन किसी के सर झुकाने से
कभी ये भी हुआ है प्यार के रस्ते में , जादू सा
घटी है दरमिय़ाँ दूरी , किसी के दूर जाने से...
तो इक़रारे मुहब्बत क्या ज़बानी भी ज़रूरी है
ख़मोशी में अयां है सब, छिपा क्या है ज़माने से
**********************************************
मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सौरभ भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका आभार ।
बहुत बढिया ! बेहतर सुझाव-सलाह भी आयी है. हार्दिक बधाई आदरणीय गिरिराजभाई.
आदरणीय वीनस भाई , आपको गज़प पर आये देख कर ही मै खुश हो जाता हूँ । विस्तार से प्रतिक्रिया के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ।
1/ .निश्चित ही भाव खटक रहा है ... क्या ऐसा सदैव होता है...???
इस शे र को मैने अभिवादन ( हाथ जोड़ कर नमस्कार ) के लिये कहा है , जिसका जवाब नमस्कार की मिलता है । फिर भी अगर इस्ताना गलत लग र्हा हो तो कुछ और सोचूँगा ,
2/ अजूबा हटा के अब शे र कर रहा हूँ ----
कभी ये भी हुआ है प्यार के रस्ते में , जादू सा
घटी है दरमिय़ाँ दूरी , किसी के दूर जाने से...
3 / चीखे गाये वाला शे र गज़ल से हटा रहा हूँ , वैसे भी शेर भर्ती का मुझे खुद लगा था ।
4/ आपका सुझाया शे र बेहतरीन है , स्वीकार करने की इज़ाजत दीजिये
तो इक़रारे मुहब्बत क्या ज़बानी भी ज़रूरी है
ख़मोशी में अयां है सब, छिपा क्या है ज़माने से
आपका आभार ,
आदरणीय वीनस भाई , मेरी एक और ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति चाहता हूँ , ज़रूरी है . भाषायी ग़लती पर चर्चा कुछ हुआ है , हल नहीं मिला है -- वो गज़ल ये है ---
2122 2122 2122 212
कहकहे यूँ मौत जितनी भी लगाई दोस्तो
ये न भूलो, ज़िन्दगी भी गुनगुनाई दोस्तो
मुहब्बत कब छिपी है चिलमनों की ओट जाने से
नज़र की शर्म कह देगी तुम्हारा सच जमाने से ...............बढ़िया
अरूजी इल्म में उलझे नहीं, बस शादमाँ वो हैं
हमे फुरसत नहीं मिलती कभी मिसरे मिलाने से..........क्या कहने
उदासी किस क़दर दिल में बसी है क्या कहें यारों
बस अश्कों का बहा दर्या है दिल के आशियाने से..............बहुत खूब
अकड़ने से बढ़ा हो क़द , मिसाल ऐसी नहीं, लेकिन
झुकी है भीड़ निश्चित ही किसी के सर झुकाने से...............निश्चित ही भाव खटक रहा है ... क्या ऐसा सदैव होता है...???
अजूबा भी हुआ है प्यार के रस्ते में , यूँ यारों
घटी है दरमिय़ाँ दूरी , किसी के दूर जाने से..........
अजूबा शब्द की महीनी को समझना आवश्यक है ...
मेरे ख्याल से चमत्कार शब्द में सकारात्मकता है वह अजूबा शब्द में नहीं है
जो चीखे , रोये, गाये झूठ ले कर भी , वही जीते .........
लिये सच हार बैठे , जो न छूटे बुदबुदाने से............. यह शेर अपने ही शब्दों में बहुत उलझ गया है
जो चीखे, रोये, गाये झूठा हो कर भी वही जीते
ये इक़रारे मुहब्बत, क्या ज़बाँ से भी ज़रूरी है
ख़मोशी जब बयाँ करती है किस्सा कब जमाने से ...........
"ये" और "कब" शब्द भर्ती का है
पहले मिसरे का एक और अर्थ देखें >> ये मुहब्बत का इकरार क्या ज़बान से भी अधिक आवश्यक है ??
ज़माने का एक अर्थ "समय" से भी लगाया जा सकता है ....
व्याकरण अनुसार और यहाँ जमाने से की जगह जमाने को शब्द आना चाहिए
बयां की जगह अयां (शुद्ध शब्द "इयां" ) शब्द अधिक उचित होगा .,... जिसका अर्थ है प्रकट करना
शेर को कुछ यूं किया जा सकता है ....
तो इक़रारे मुहब्बत क्या ज़बानी भी ज़रूरी है
ख़मोशी में अयां है सब, छिपा क्या है ज़माने से
आदरणीया कंता जी , विस्तार से गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन के लिये आपका आभारी हूँ ॥
आदरणीय प्रि एम श्लोक जी , सरहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका बहुत आभार ।
आदरणीय राहुल भाई , सराहना के लिये आपका अभार । 6 वें शे र मे तकाबुले रदीफ दोष है मुझे मालूम है , याद दिलाने का शुक्रिया । मै अभी भी कुछ ठीक सा मिसरा सोच रहा हूँ , ता कि सुधार कर पाऊँ । आभार आपका ॥
आदरणीय मिथिलेश भाई , हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ॥
आदरणीय महर्षि भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका आभारी हूँ ।
आदरणीया महिमा जी , सराहना के लिये आपका बहुत बहुत आभार ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online