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गजल-सुख की भी दोस्त गम सी तासीर बन गयी है।

221 2122 221 2122

नाकामयाबी मेरी तकदीर बन गयी है।
अब जिन्दगी ये गम की तस्वीर बन गयी है।।

मरहम समय का भी कुछ आराम दे न पाया।
ये चोट अब जिगर की जागीर बन गयी है।।

उलझी पडी है उल्फत की बेडियों में साँसें।
यादों से मिल के धडकन भी तीर बन गयी है।।

सुनती है गर कहीं तू इक बार आ के मिल ले।
रो रो के मेरी हालत गम्भीर बन गयी है।।

हँसता हुँ तब भी चहरा छोडें नहीं उदासी।
सुख की भी दोस्त गम सी तासीर बन गयी है।।

आँखों ने आँसुओं से चहरे पे लिख दिया है ।
गुरबत जमाने में इक तकसीर बन गयी है।।

उसके लिए मुहब्बत इक खेल था एे 'राहुल'।
तेरे लिए तो आँखों का नीर बन गयी है।।

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 17, 2015 at 6:47pm

खूबसूरत गज़ल के लिये दाद कुबूल फरमाए. आ0 राहुल भाई जी.

Comment by Rahul Dangi Panchal on June 17, 2015 at 5:28pm
आदरणीय Nilesh Shevgaonkar जी शुक्रिया
Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 17, 2015 at 3:40pm

वाह बहुत ख़ूब 

Comment by Rahul Dangi Panchal on June 17, 2015 at 2:35pm
आदरणीय narendrasinh chauhan व आदरणीय Dr Ashutosh Mishra जी शुक्रिया
Comment by narendrasinh chauhan on June 17, 2015 at 2:28pm

बहुत खूब सुंदर गजल हेतु बधाई स्वीकारें

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 17, 2015 at 2:17pm

आदरणीय इस सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई सादर 

Comment by Rahul Dangi Panchal on June 17, 2015 at 1:38pm
आदरणीय Shyam Narain Verma जी शुक्रिया
Comment by Shyam Narain Verma on June 17, 2015 at 12:58pm
बहुत खूब ! इस सुंदर गजल हेतु बधाई स्वीकारें ।
Comment by Rahul Dangi Panchal on June 17, 2015 at 8:53am
आदरणीय krishna mishra 'jaan'gorakhpuri जी सादर धन्यवाद
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 17, 2015 at 8:37am

क्या बात है क्या बात है! बहुत ही सुन्दर गज़ल हुयी है आ० भाई राहुल जी,शेर दर शेर दाद कबूल फरमाएं!

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