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गज़ल - फिल बदीह --- वो सुनते नहीं कुछ , पुकारा बहुत है ( गिरिराज भंडारी )

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जो कहते थे उनको इशारा बहुत है

वो सुनते नहीं कुछ , पुकारा बहुत है

 

ऐ तन्हाई आ मेरी जानिब चली आ

कि यादों को तेरा सहारा बहुत है

 

तबीयत से इक फूँक भारो तो यारों

जलाने को दुनिया, शरारा बहुत है

 

ये मजहब का ठेका हटा लो यहाँ से 

सुकूँ के लिये भाई चारा बहुत है

 

फलक बोस इमारत उन्हें हो मुबारक    --- गगन चुम्बी 

मुझे टूटी छ्त का सहारा बहुत है

 

ऐ साक़ी सुबू तू पिला दे किसी को

मुझे जाम आँखो का प्यारा बहुत है

 

तेरा शुक्रिया ग़म हमेशा कहूंगा 

तपा के , रुला के , निखारा बहुत है 

 

मुझे और खुशियाँ न देना ख़ुदाया

मुझे एक तेरा नज़ारा बहुत है

**********************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment by गिरिराज भंडारी on June 17, 2015 at 9:02am

आदरणीय समर कबीर भाई , आपकी मुहब्बतों से इनायतों दिल भर आया , मुहब्बत ऐसे ही बनाये रखियेगा ॥  हौसला अफज़ाई का शुक्रिया ।

Comment by vijay nikore on June 16, 2015 at 6:25pm

पढ़ कर दिल खुश हो गया। बधाई, भाई गिरिराज जी।

Comment by Samar kabeer on June 15, 2015 at 11:28pm
जनाब गिरिराज भंडारी जी,आदाब,सब से पहली मुबारकबाद तो फ़िल बदीह की लीजिये ,इतने कम समय में इतनी मुरस्सा ग़ज़ल कहना,कमाल की बात है,अगर आप मेरे सामने होते तो आपको ज़ोर से बाँहो में भींच लेता,दिल बाग़ बाग़ हो गया,आज रात को मुझे नींद अच्छी आएगी,शैर दर शैर दाद के साथ ढेरों मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं,सलामत रहिये ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 15, 2015 at 8:30pm

आदरणीय सुशील भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ।

Comment by Sushil Sarna on June 15, 2015 at 7:20pm

जो कहते थे उनको इशारा बहुत है
वो सुनते नहीं कुछ , पुकारा बहुत है

ऐ तन्हाई आ मेरी जानिब चली आ
कि यादों को तेरा सहारा बहुत है

वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह क्या कहने आदरणीय गिरिराज जी … बहुत सुंदर ग़ज़ल बन पड़ी है। हार्दिक बधाई।


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Comment by गिरिराज भंडारी on June 15, 2015 at 10:30am

आदरणीया कांता जी , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका ।


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Comment by गिरिराज भंडारी on June 15, 2015 at 10:29am

आदरणीय दिनेश भाई , उत्साह वर्धन के लिये आभार आपका ।

Comment by kanta roy on June 15, 2015 at 8:15am
वाह !!!! क्या गजल कही है आपने ! हर शेर लाजवाब है । तनहाई को पुकारने की अदा भी क्या अदा है तो वहीं दुसरे शेर में देशभक्ति और मजहब की बात भी बहुत दिलदारी से कर ली आपने अपनी गजल में । हर शेर का अपना ही रंग और मिजाज़ है । शुक्रिया इतनी शानदार गजल को हम पाठकों तक पहुँचाने के लिये आदरणीय गिरीराज भंडारी जी ।
Comment by दिनेश कुमार on June 15, 2015 at 7:31am

बहुत अच्छी ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद सर .. वाह वाह


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Comment by गिरिराज भंडारी on June 15, 2015 at 5:30am

आदरणीय कृष्णा भाई , आपका बहुत शुक्रिया ।

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