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मिला कीमती वक़्त जाया न कर
बुरी बात होंठों पे लाया न कर
बड़ी जितनी चादर उसी में सिमट
तू ये नाज़ नखरे दिखाया न कर
कभी वो तेरा हाथ देंगे मरोड़
किसी को तू ऊँगली दिखाया न कर
अदब से कहेगा सुनेंगे सभी
सुलगती जुबाँ से सुनाया न कर
तवा गर्म है सब्र से काम ले
इन हाथों को अपने जलाया न कर
सही है अगर तू दिखा तो सबूत
हवा में यूँ तोते उड़ाया न कर
सभी खोलता “राज’ पैकर तेरा
कोई बात दिल में छुपाया न कर
बहुत चोट लगती तुझे क्या पता
किसी को नजर से गिराया न कर
बुलंदी का रस्ता जहाँ बंद हो
उधर पाँव अपने बढ़ाया न कर
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Comment
आ० सौरभ जी,कई दिनों से बाहर थी ओबिओ पर आना नहीं हो पा रहा था आज वापस आई तो नेट पर आने का वक़्त मिला प्रतिक्रिया देने में देरी का खेद है आपको ग़ज़ल अच्छी लगी मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से आभारी हूँ इस ग़ज़ल पर आ० समर भाई जी की बातों से कई बातें स्पष्ट हुई जिनकी मैं शुक्रगुजार हूँ \
उड़ाइये तोते और गिनिये कबूतर ! अच्छी ग़ज़ल पर अच्छी चर्चा केलिए आपका और सुधीजनों का शुकिया.
दाद कुबूल कीजिये, आदरणीया.
woww welcome back ..मिथिलेश जी ,सच में ग़ज़लें आपकी बहुत इन्तजार कर रही थी आज आपकी प्रतिक्रिया वो भी लाजबाब पाकर दिल खुश हो गया आपकी बात सही है अन्य जानकार लोगों से भी मशविरा किया था अतः फिलहाल तो मतला ऐसे ही रहने देती हूँ ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सफल हुआ तहे दिल से बहुत-बहुत आभार आपका.
आदरणीया राजेश दीदी
बहुत ही बढ़िया मतला हुआ है
मिला कीमती वक़्त जाया न कर
बुरी बात होंठों पे लाया न कर
वक़्त जाया करने पर चर्चा पढ़ी .... बचपन से आज तक 'वक़्त जाया मत करो' इतनी बार सुन चूका हूँ कि शब्दकोष से इतर एक प्रचलित शब्द है जिसे 90% लोग इस्तेमाल करते है इसलिए मुझे यह बिलकुल गलत नहीं लग रहा है ... वैसे इसका प्रतिस्थापन ----मिले कीमती पल गँवाया न कर --- भी बढ़िया है मगर प्रचलित और सर्व स्वीकार्य शब्द से व्यक्तिगत तौर पर मुझे कोई आपत्ति नहीं है. इसका प्रयोग मेरे हिसाब से उचित है
बाकि शेर दर शेर ---->
बड़ी जितनी चादर उसी में सिमट
तू ये नाज़ नखरे दिखाया न कर................ बढ़िया शेर
कभी वो तेरा हाथ देंगे मरोड़
किसी को तू ऊँगली दिखाया न कर.... हा हा हा बहुत बढ़िया
अदब से कहेगा सुनेंगे सभी
सुलगती जुबाँ से सुनाया न कर....... कमाल का शेर ..... वाह वाह ... कितनी नजाकत से कहा है
तवा गर्म है सब्र से काम ले
इन हाथों को अपने जलाया न कर.... बढ़िया
सही है अगर तू दिखा तो सबूत
हवा में यूँ तोते उड़ाया न कर........... ये भी खूब कही
सभी खोलता “राज’ पैकर तेरा
कोई बात दिल में छुपाया न कर......... खोलते/खोलता
बहुत चोट लगती तुझे क्या पता
किसी को नजर से गिराया न कर..... बहुत ही उम्दा शेर .... दीदी ये शेर अपने साथ ले जा रहा हूँ ... वाह
बुलंदी का रस्ता जहाँ बंद हो
उधर पाँव अपने बढ़ाया न कर .... बढ़िया
इस बेहतरीन ग़ज़ल पर दिल से दाद हाज़िर है दीदी
आ० डॉ० आशुतोष जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ तहे दिल से आभारी हूँ |
बहुत चोट लगती तुझे क्या पता
किसी को नजर से गिराया न कर...आदरणीया राजेश जी ..इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई सादर
आ० विजय निकोर जी ,ग़ज़ल आपको पसंद आई तहे दिल से शुक्रिया .
आ० समर कबीर जी,आप उर्दू के अच्छे जानकार हैं तो आपने सही मार्ग दर्शन ही किया होगा आपने सही कहा ग़ज़लों के बीच में ज़ाया शब्द आ रहा है काफिये में नहीं दिखा| मतले में काफिया बदलना कोई बड़ी बात नहीं बस ये शब्द पसंद था इसलिए इसे ही रखना चाहती थी अब क्यूंकि संशय पैदा हो गया है तो बदलने की सोचूँगी---पहले मतला इस तरह लिखा था --मिले कीमती पल गँवाया न कर --- इसी को प्रतिस्थापित कर दूँगी और विद्वद्जनों की राय से पूर्ण तसल्ली कर लूँ मार्गदर्शन के लिए आपका शत शत आभार .
अच्छी गज़ल के लिए बधाई, आदरणीया राजेश जी।
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