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हवा में यूँ तोते उड़ाया न कर(ग़ज़ल 'राज')

१२२ १२२ १२२ १२

मिला कीमती वक़्त जाया न कर

बुरी बात होंठों पे लाया न कर

 

बड़ी जितनी चादर उसी में सिमट    

तू ये नाज़ नखरे दिखाया न कर

 

कभी वो तेरा हाथ देंगे मरोड़

किसी को तू ऊँगली दिखाया न कर

 

अदब से कहेगा सुनेंगे सभी

सुलगती  जुबाँ से सुनाया न कर

 

तवा गर्म है सब्र से काम ले

इन हाथों को अपने जलाया न कर

 

सही है अगर तू दिखा तो सबूत

हवा में यूँ तोते उड़ाया न कर

 

सभी खोलता “राज’ पैकर तेरा  

कोई बात दिल में छुपाया न कर

 

बहुत चोट लगती तुझे क्या पता

किसी को नजर से गिराया न कर

 

बुलंदी का रस्ता जहाँ बंद हो

उधर पाँव अपने बढ़ाया न कर  

-----------

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 8, 2015 at 11:24am

आ० सौरभ जी,कई दिनों से बाहर थी ओबिओ पर आना नहीं हो पा रहा था आज वापस आई तो नेट पर आने का वक़्त मिला प्रतिक्रिया देने में देरी का खेद है आपको ग़ज़ल अच्छी लगी मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से आभारी हूँ इस ग़ज़ल पर आ० समर भाई जी की बातों से कई बातें स्पष्ट हुई जिनकी मैं शुक्रगुजार हूँ \ 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 4, 2015 at 11:06pm

उड़ाइये तोते और गिनिये कबूतर ! अच्छी ग़ज़ल पर अच्छी चर्चा केलिए आपका और सुधीजनों का शुकिया.

दाद कुबूल कीजिये, आदरणीया.

Comment by Samar kabeer on June 25, 2015 at 11:35pm
जनाब मिथिलेश वामनकर जी,आदाब,आप काफ़ी दिनों के बाद मंच पर आए हैं,ज़ाहिर है बहुत सी ग़ज़लें आपको देखना हैं और उन पर अपनी प्रतिक्रिया भी देना है ।
आपने मेरी प्रतिक्रिया ध्यान से नहीं पढ़ी,चर्चा का विषय वक़्त ज़ाए करना नहीं है बल्कि यह है कि "ज़ाए" शब्द डिक्शनरी में "ज़ाए" ही लिखा है जिसकी हिज्जे मैं ऊपर कर चुका हूँ जिससे ये साबित होता है कि सही शब्द "ज़ाए" है ना कि "ज़ाया",आपके कथानुसार 90% लोग "ज़ाया" बोलते हैं और आप भी बचपन से सुनते आ रहे हैं,चलिये मान लेते हैं कि "ज़ाए" शब्द बिगड़ कर "ज़ाया" हो गया है लेकिन इसकी असलियत से इनकार करना अदबी गुनाह है,इस शब्द का इस्तेमाल उर्दू शायरी या ग़ज़ल में होता आया है,लेकिन हमेशा लिखा "ज़ाए" गया और 90% लोगों ने इसे "ज़ाया" पढ़ा,और ये शब्द ग़ज़ल में जहाँ भी आया है शुरू या दरमियान में ही आया है,आज तक (बहना की ग़ज़ल छोड़कर) किसी ने भी इसे क़ाफ़िया नहीं बनाया क्यूँकि ये क़ाफ़िया हो ही नहीं सकता,इसके मुतावाज़िन क़ाफ़िये हैं ही नहीं,आप ऐसा एक उदाहरण भी नहीं दे सकेंगे,बहना राजेश कुमारी ने इसे तस्लीम कर लिया था लेकिन आपकी प्रतिक्रिया से उन्हें फिर बल मिल गया और वो कहने लगीं कि मतला फ़िलहाल ऐसे ही रखेंगी,ये सीखने सिखाने का मंच है इसलिये इतनी चर्चा हुई ,अन्यथा किसके पास इतना समय है?,आपके जवाब के इंतज़ार में ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 25, 2015 at 10:51am

woww welcome back ..मिथिलेश जी ,सच में ग़ज़लें आपकी बहुत इन्तजार कर रही थी आज आपकी प्रतिक्रिया वो भी लाजबाब पाकर दिल खुश हो गया आपकी बात सही है अन्य जानकार लोगों से भी मशविरा किया था अतः फिलहाल तो मतला ऐसे ही रहने देती हूँ ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सफल हुआ तहे दिल से बहुत-बहुत आभार आपका. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on June 25, 2015 at 3:43am

आदरणीया राजेश दीदी 

बहुत ही बढ़िया मतला हुआ है 

मिला कीमती वक़्त जाया न कर

बुरी बात होंठों पे लाया न कर

वक़्त जाया करने पर चर्चा पढ़ी .... बचपन से आज तक  'वक़्त जाया मत करो' इतनी बार सुन चूका हूँ कि शब्दकोष से इतर एक प्रचलित शब्द है जिसे 90% लोग इस्तेमाल करते है इसलिए मुझे यह बिलकुल गलत नहीं लग रहा है ... वैसे इसका प्रतिस्थापन ----मिले कीमती पल गँवाया न कर --- भी बढ़िया है मगर प्रचलित और सर्व स्वीकार्य शब्द से व्यक्तिगत तौर पर मुझे कोई आपत्ति नहीं है. इसका प्रयोग मेरे हिसाब से उचित है 

बाकि शेर दर शेर ---->

बड़ी जितनी चादर उसी में सिमट    

तू ये नाज़ नखरे दिखाया न कर................ बढ़िया शेर 

 

कभी वो तेरा हाथ देंगे मरोड़

किसी को तू ऊँगली दिखाया न कर.... हा हा हा बहुत बढ़िया 

 

अदब से कहेगा सुनेंगे सभी

सुलगती  जुबाँ से सुनाया न कर....... कमाल का शेर ..... वाह वाह ... कितनी नजाकत से कहा है 

 

तवा गर्म है सब्र से काम ले

इन हाथों को अपने जलाया न कर.... बढ़िया 

 

सही है अगर तू दिखा तो सबूत

हवा में यूँ तोते उड़ाया न कर........... ये भी खूब कही 

 

सभी खोलता “राज’ पैकर तेरा  

कोई बात दिल में छुपाया न कर......... खोलते/खोलता 

 

बहुत चोट लगती तुझे क्या पता

किसी को नजर से गिराया न कर..... बहुत ही उम्दा शेर .... दीदी ये शेर अपने साथ ले जा रहा हूँ ... वाह 

 

बुलंदी का रस्ता जहाँ बंद हो

उधर पाँव अपने बढ़ाया न कर  .... बढ़िया 

इस बेहतरीन ग़ज़ल पर दिल से दाद हाज़िर है दीदी 

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 17, 2015 at 12:32pm

आ० डॉ० आशुतोष जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ तहे दिल से आभारी हूँ | 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 17, 2015 at 11:36am

बहुत चोट लगती तुझे क्या पता

किसी को नजर से गिराया न कर...आदरणीया राजेश जी ..इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 16, 2015 at 7:41pm

आ० विजय निकोर जी ,ग़ज़ल आपको पसंद आई तहे दिल से शुक्रिया .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 16, 2015 at 7:40pm

आ० समर कबीर जी,आप उर्दू के अच्छे जानकार हैं तो आपने सही मार्ग दर्शन ही किया होगा आपने सही कहा ग़ज़लों के बीच में ज़ाया शब्द  आ रहा  है  काफिये में नहीं दिखा| मतले में काफिया बदलना कोई बड़ी बात नहीं बस ये शब्द पसंद था इसलिए इसे ही रखना चाहती थी  अब क्यूंकि संशय पैदा हो गया है तो बदलने की सोचूँगी---पहले मतला इस तरह लिखा था --मिले कीमती पल गँवाया न कर ---   इसी को प्रतिस्थापित कर दूँगी   और विद्वद्जनों की राय से पूर्ण तसल्ली कर लूँ मार्गदर्शन  के लिए  आपका शत शत  आभार .

Comment by vijay nikore on June 16, 2015 at 6:27pm

अच्छी गज़ल के लिए बधाई, आदरणीया राजेश जी।

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