For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -- एक प्रयास (मिथिलेश वामनकर)

मुफ़तइलुन / मफ़ाइलुन/  मुफ़तइलुन / मफ़ाइलुन  (इस्लाही ग़ज़ल)
2 1 1 2 /  1 2 1 2 /  2 1 1 2 /  1 2 1 2

 

गम दे, ख़ुशी दे ज़िन्दगी, कितनी किसे हिसाब क्या              

दरिया फ़ना हयात का,   मुझसा वहां हुबाब क्या                     हुबाब-बुलबुला

 

हँस के जिए दुआ किये, मर भी गए दुआ दिए  

तुम ही कहो ऐ मेहरबां, सबसे बड़ा सवाब क्या                      सवाब-पुण्य

 

कहते रहे वो माज़रा, ........पूछा तो इस निज़ाम से

जिनसे किया सवाल था, उनसे मिला जवाब क्या

 

गम ने मुझे सिखा दिया, ..........गैर नहीं बशर कोई    

दिल से जिसे लगा लिया, फिर क्या गदा नवाब क्या               गदा-भिखारी

 

रंग-ए-जहाँ न रौशनी, ........है न ज़िया की आरज़ू

नूर-ए-ख़ुदा न मिल सका,   कोई हसीन ताब क्या                   ताब-चमक

 

दिल का पता न होश का, जब से मिली नज़र जवां

मद से भरे वो दो नयन,  कितना नशा, शराब क्या

 

उनके हसीन ख़्वाब का, फिर से जफ़ा ही हश्र है

आँखें नहीं रही अगर,   कहिये वहां सराब क्या                     सराब-मृगमरीचिका

 

दिल में ग़मों के साथ हम,    लब पे हँसी लिए रहे

हम भी तो खुशमिजाज़ है,  इससे बड़ा खिताब क्या

 

अब हो गया तमीज़ का......... उरियां वुजूद देखियें

आब-ओ-हया न आँख में, फिर ये भला हिज़ाब क्या

 

तुम न रहे करीब भी,.............तुम न बने हबीब ही

खुल जो गई ये असलियत,अब के नया नकाब क्या

 

हमको मिला न तज्रिबा,  भटका किये जो दर-ब-दर

हमसे हयात ने कहा-   “मुझसे गजब किताब क्या”

 

इसको कभी उसे कभी,............रोये कभी हँसे कभी, 

मर भी गए जो दफअतन फिर ये ख़ुशी अज़ाब क्या

 

------------------------------------------------------
(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
----------------------------------------------------

Views: 1133

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 26, 2015 at 12:25am

आदरणीय मिथिलेशजी, कमाल ! किस सधे ढंग से ग़ज़ल को निभा ले गये ! मुबारकां जी मुबारकां !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 26, 2015 at 12:24am

आदरणीय  मोहन बेगोवाल सर सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 26, 2015 at 12:23am

आदरणीय  डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 26, 2015 at 12:22am

आदरणीय समर कबीर जी सराहना और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार 

इंटरनेट कनेक्शन पर ओबीओ नहीं खुल रहा है इस समस्या के कारण विलम्ब से जवाब दे रहा हूँ. क्षमा चाहता हूँ. अब नई जुगत मोबाइल इन्टरनेट से लेपटॉप कनेक्ट कर बड़ी धीमी गति वाले इन्टरनेट से जवाब दे रहा हूँ.

आपने नवाब और हमाम दो लफ़्ज़ों पर मार्गदर्शन दिया है. दरअसल इन लफ़्ज़ों को चूंकि ऐसे ही बोलचाल में इस्तेमाल करता हूँ इसलिए चूक हुई है. हमाम के सन्दर्भ में बदलकर मिसरा कुछ यूं कहा है -

अब हो गया तमीज़ का उरियां वुजूद देखियें  

आब-ओ-हया न आँख में, फिर ये भला हिज़ाब क्या

कुछ बेहतर हो सके तो मार्गदर्शन का निवेदन है 

नवाब का कोई जवाब नहीं सूझ रहा क्योकिं काफिया बदलना पड़ेगा या शेर ग़ज़ल से हटाना होगा 

अगले मिसरे में कुछ यूं संशोधन निवेदित है -

इसको कभी उसे कभी,............रोये कभी हँसे कभी,

मर ही गए जो दफअतन फिर ये ख़ुशी अजाब क्या / जां से गए जो दफअतन फिर ये ख़ुशी अजाब क्या 

मार्गदर्शन के लिए हृदय से आभारी हूँ . सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 26, 2015 at 12:10am

आदरणीय narendrasinh chauhan जी सराहना के लिए हार्दिक आभार 

Comment by मोहन बेगोवाल on May 25, 2015 at 10:52pm

 बहुत ही कमाल की ग़ज़ल पढने को मिली - मिथलेश वामनकर जी

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 25, 2015 at 4:26pm

मैं  तो यही कहूंगा

तेरी प्यारी-प्यारी गजल को किसी की नजर न लगे ----चश्म -ए -बद दूर

Comment by Samar kabeer on May 25, 2015 at 3:03pm
जनाब मिथलेश वामनकर जी,आदाब,बहुत ही ख़ूबसूरत और शानदार ग़ज़ल कही है आपने,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।
कुछ बातें आपसे साझा करना चाहूँगा :-

"दिल से जिसे लगा लिया फिर क्या गदा नवाब क्या"

इस मिसरे में "नवाब" का क़ाफ़िया आम बोल चाल में तो ठीक है लेकिन उर्दू डिक्शनरी के हिसाब से सही शब्द है "नव्वाब",इसी क्रम में आपकी ग़ज़ल का यह मिसरा :-

"हमको मिली तमीज़ भी ......उरयां किसी हमाम में"

आपने लिखा है "हमाम" सही शब्द है "हम्माम"

"मर जो गए हम दफअतन फिर ये ख़ुशी अज़ाब क्या"

इस मिसरे की लय से मैं संतुष्ट नहीं हूँ ।
Comment by narendrasinh chauhan on May 25, 2015 at 1:02pm

बहॉट उम्दा ग़ज़ल

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service