For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -नूर हमनें ये जिस्म पाप का गट्ठर बना दिया.

गागा लगा लगा/ लल/ गागा लगा लगा

आवारगी ने मुझ को क़लन्दर बना दिया
कुछ आईनों ने धोखे से पत्थर बना दिया.
.
जो लज़्ज़तें थीं हार में जाती रहीं सभी  
सब जीतने की लत ने सिकंदर बना दिया.
.
नाज़ुक से उसने हाथ रखे धडकनों पे जब  
तपता सा रेगज़ार समुन्दर बना दिया.
.
एहसास सब समेट लिए रुख्सती के वक़्त
दीवानगी-ए-शौक़ ने शायर बना दिया. 
.
जो उस की राह पे चले मंज़िल उन्हें मिले  
बाक़ी तो बस सफ़र ही मुकद्दर बना दिया.
.
उसने हमें नवाज़ दिया ख़ुद उसी का घर 
हमनें ये जिस्म पाप का गट्ठर बना दिया.
.
कैसे मुजस्मासाज़ तुझे शुक्रिया कहूँ 
कंकर था मैं तराश के शंकर बना दिया.
.
निलेश "नूर" 
मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 1452

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 16, 2015 at 11:36am

बहुत ही सुंदर गजल, आदरणीय निलेश जी. यह शेर बहुत पसंद आये.दिल से बधाइयाँ आपको

जो उस की राह पे चले मंज़िल उन्हें मिले  
बाक़ी तो बस सफ़र ही मुकद्दर बना दिया.
.
उसने हमें नवाज़ दिया ख़ुद उसी का घर 
हमनें ये जिस्म पाप का गट्ठर बना दिया.
.

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 16, 2015 at 10:52am

शुक्रिया आ. गिरिराज जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 16, 2015 at 10:27am

आदरनीय नीलेश भाई , बहुत सुन्दर !! गज़ल के लिये आपको दिली बधाइयाँ । आपकी गज़ल पर हुये चर्चा से भी बहुत लाभ मिला । आपको और आ. वीनस भाई को हार्दिक धन्यवाद चर्चा के लिये ॥

Comment by वीनस केसरी on May 16, 2015 at 9:46am

1) गागा लगा लगा/ लल/ गागा लगा लगा ..... गा =2 ल =1 ..मीटर गिनने का एक तरीका ये भी है जो मुझे लय में प्रतीत होता है.

भाई ये तो मैं भी समझ गया मगर क्या इस बहर के लिए ये मीटर सही है ?
गागा लगा लगा/ लल/ गागा लगा लगा = २२१२ १२ / ११ / २२ १२ १२
खुद समझने के लिए तो ठीक है मगर इसे आप मानक मान कर मंच पर साझा कर देंगे ?
यदि आपने गागाल / गालगाल / लगागाल  / गालगा  तब तो स्वीकार्य होता क्योकि इस बहर की मात्र २२१ / २१२१/ १२२१ / २१२ है 

मगर आपने जो लिखा है उसे कैसे स्वीकारा जाए ?
तब इस बहर का मूल वजन क्या रहेगा ?
कौन से जिहाफ लगाए जायेंगे ?

------------------------------------------------------------------


2) धडकनों पे हाँथ कैसे रखा जा सकता है... जैसे चाँद सितारें तोड़े जा सकते हैं  

जी नहीं चाँद सितारों का भौतिक रूप है इसलिए उसे किसी उपक्रम से तोडा भी जा सकता है मगर धड़कन पे हाँथ नहीं रखा जा सकता, हाँथ सीने पे रखा जा सकता है, धड़कन को गिना महसूस किया जा सकता है, धड़कन धीमी तेज़ हो सकती है, मगर उसपे हाँथ नहीं रखा जा सकता ... 
-------------------------------------------------------------------
 

3) शाइर को शायर अनुसार काफिया बनाना कितना सही है -चित्र संलग्न 

नेट की दुनिया को मानक न मानिए, किसी मानक उर्दू शब्दकोष में "शायर" "शायरी"  मिले तो उसका चित्र संलग्न करें ... हाँ लुगत भी मानक हो ... चिरकुट उर्दू लुगत और हिन्दी शब्दकोष न देखिएगा

शाइर में ऐन हर्फ़ होता है जिससे ए भी बनता है मगर शाएर भी गलत है क्योकि मानक शब्द शाइर,शाइरा,  शाइरी, शुअरा मुशाइरा है

-------------------------------------------------------------------
4) कंकर (पत्थर के बहुत छोटे टुकड़े) को शिवलिंग कैसे बनाया जा सकता है ..हिंदी की कहावत है , कंकर का शंकर हो जाना...
उर्दू में ज़र्रे का आफ़ताब हो जाना ....और मैंने शिवलिंग कहीं नहीं कहा है.... मैं कंकर तुल्य हूँ... और शंकर ....परम  का प्रतीक हैं ..


कंकर का शंकर हो जाना..
इस कहावत के बानने का कारण तर्क नहीं बल्कि कंकर शंकर की समतुकांतता है  
कहावत अनुसार प्रयोग है फिर तो स्वीकार्य है, मुझे ये कहावत नहीं पता थी!!! 
मगर आपले मिसरे में कर्ता की मौजूदगी और दूसरे मिसरे में कर्म तराशना आपके मिसरे को इस कहावत से दूर कर करता है 

कंकर को तराश कर शंकर बनाना स्पष्ट रूप से शिवलिंग बनाने की और ही इशारा है ....
बाकी तो ये कोई बड़ा ऐब नहीं है मगर कहावत को तोड़न भी ऐब मन जाता है इसलिए बेहतर होगा आप कंकर को पत्थर कह लें

--------------------------------------------------------------------
5) 
आवारगी ने मुझ को क़लन्दर बना दिया ............ यहाँ तो कर्ता मौजूद है 
कुछ आईनों ने धोखे से पत्थर बना दिया.,,,,,,,,,,,,,,यहाँ हुए कर्म का कर्ता कहाँ  गया ?

भाई पहले मिसरे में बात पूरी हो जा रही है और इसका दूसरे मिसरे से कोई संबंध नहीं बन रहा है, शेर दो लख्त है| दोनों मिसरे चस्पां नहीं हैं, आवारगी ने आपको कलंदर बनाया और आईनों ने धोके से पत्थर बनाया ...ये दो अलग अलग बातें हैं इनको जोड़ कर कैसे देखा जा सकता है !!!
आपको सानी सही करना पड़ेगा ... 

दूसरी बात ....आईना साफगोई का प्रतीक है ...अगर रिवर्स कांट्रास्ट पैदा करना है तो इसे शेर बना कर उला में पहले उसे स्पष्ट कीजिये ....मतला दूसरा कह लीजिये ...

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 16, 2015 at 2:37am

उर्दू नहीं पढ़ पाते... जिस ज़रिये से जो उच्चारण या लिखावट मिलते हैं..हम हिंदी पढने वाले उसे ही मान लेते हैं..
इसके बाद भी शायर उच्चारण पर यदि आपत्ति हो तो मैं वो शेर हटा लूँगा 
सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 16, 2015 at 2:23am

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 16, 2015 at 1:50am

आ. वीनस ही ..शुक्रिया ..सिलसिलेवार जवाब यूँ है 
1) गागा लगा लगा/ लल/ गागा लगा लगा ..... गा =2 ल =1 ..मीटर गिनने का एक तरीका ये भी है जो मुझे लय में प्रतीत होता है.
2) धडकनों पे हाँथ कैसे रखा जा सकता है... जैसे चाँद सितारें तोड़े जा सकते हैं  
3) शाइर को शायर अनुसार काफिया बनाना कितना सही है -चित्र संलग्न 
4) कंकर (पत्थर के बहुत छोटे टुकड़े) को शिवलिंग कैसे बनाया जा सकता है ..हिंदी की कहावत है , कंकर का शंकर हो जाना...
उर्दू में ज़र्रे का आफ़ताब हो जाना ....और मैंने शिवलिंग कहीं नहीं कहा है.... मैं कंकर तुल्य हूँ... और शंकर ....परम  का प्रतीक हैं ..
5) 
आवारगी ने मुझ को क़लन्दर बना दिया ............ यहाँ तो कर्ता मौजूद है 
कुछ आईनों ने धोखे से पत्थर बना दिया.,,,,,,,,,,,,,,यहाँ हुए कर्म का कर्ता कहाँ  गया ?
पहले मिसरे में जो काम आवारगी कर रही है ...वो दूसरे मिसरे में कुछ आईने कर रहे हैं...किसके साथ....ये स्पष्ट है.... क्या...पत्थर बना दिया .....


Comment by वीनस केसरी on May 16, 2015 at 1:10am

कुछ प्रश्न जो इस ग़ज़ल को पढ़ कर पैदा हुए यहीं छोड़े जा रहा हूँ .....

गागा लगा लगा/ लल/ गागा लगा लगा
............. ये क्या है निलेश भाई जी
धडकनों पे हाँथ कैसे रखा जा सकता है,,,,,,
शाइर को शायर अनुसार काफिया बनाना कितना सही है
कंकर (पत्थर के बहुत छोटे टुकड़े) को शिवलिंग कैसे बनाया जा सकता है

आवारगी ने मुझ को क़लन्दर बना दिया ............ यहाँ तो कर्ता मौजूद है
कुछ आईनों ने धोखे से पत्थर बना दिया.,,,,,,,,,,,,,,यहाँ हुए कर्म का कर्ता कहाँ  गया ?

Comment by Hari Prakash Dubey on May 15, 2015 at 10:52pm

//जो लज़्ज़तें थीं हार में जाती रहीं सभी  
सब जीतने की लत ने सिकंदर बना दिया.//

//कैसे मुजस्मासाज़ तुझे शुक्रिया कहूँ  //
//कंकर था मैं तराश के शंकर बना दिया.//....बहुत ही सुन्दर रचना आ.  Nilesh Shevgaonkar जी ! हार्दिक  बधाई  ! सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 15, 2015 at 10:47pm

शुक्रिया जनाब बिस्मिल साहब 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service