For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

शब्दों को नापना नहीं आता

शब्दों को नापना नहीं आता
अक्षर गिनते कतराती हूँ
छोड़ मुझे दौडने लगते
पकडने में गिर जाती हूँ
शब्दों को नापना नहीं आता
अक्षर गिनते कतराती हूँ
तले मन गहन समंदर
तल समंदर में खो जाती हूँ
लहरे मेरी सखी सहचरी
लहरों संग खेल जाती हूँ
शब्दों को नापना नहीं आता
अक्षर गिनते कतराती हूँ
कर जाती हूँ कुछ भी कैसा
चढ जाती हूँ मै मीनार भी
घात बात सह नही पाती
दोहरे लोगों से घबराती हूँ
रोके कितना मुझे जमाना
मन पहाड़ चढ जाती हूँ
शब्दों को नापना नहीं आता
अक्षर गिनते कतराती हूँ


कान्ता राॅय
भोपाल

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 569

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by kanta roy on May 5, 2015 at 8:01am
बिलकुल सच कहा आपने कि फिर गजल तो नहीं लिख पाऊँगी ....अरमान बहुत हैकि सब कर जाती लेकिन दुविधाओं से कतराती हूँ ..... उम्मीद है आदरणीय मोहन सेठी 'इंतजार ' जी कि एक दिन शायद आप और मै दोनों ही सीख जाये अक्षरों को भी गिनना । आभार रचना पसंदगी के लिए ।
Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on May 5, 2015 at 7:55am

भावपूर्ण रचना बहुत अच्छी लगी ....बधाई (अगर आप "शब्दों को नापना नहीं आता अक्षर गिनते कतराती हूँ" तो आप ग़ज़ल तो नहीं लिख पायेंगी ...मेरी तरहां )....सादर 

Comment by kanta roy on May 5, 2015 at 7:12am
आभार आपको आदरणीय श्री सुनील जी मेरा हौसला वर्धन के लिए
Comment by shree suneel on May 5, 2015 at 12:59am
सुन्दर प्रस्तुति आदरणीया कांता राॅय जी. बधाई
Comment by kanta roy on May 5, 2015 at 12:14am
आदरणीय समीर कबीर साहब कोशिश की थी चंद अपनी नाकामयाबी की दास्तान लिखने की ... दोस्तों ने उसे सर पर रख लिया और कविता कह दिया ...... आभार आपको हृदय तल से मेरा हौसला अफजाई के लिए ।
Comment by Samar kabeer on May 5, 2015 at 12:04am
मोहतरमा कान्ता जी,आदाब,बहुत ही अच्छे अन्दाज़ में पेश किये हैं अपने विचार, कविता का पूरा रस है आपकी रचना में,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं |
Comment by kanta roy on May 4, 2015 at 10:43pm
हृदय तल से आभार आपको आदरणीय डाॅक्टर विजय शंकर जी मुझे शब्दों से खेलना सिखाने के लिए ।
Comment by Dr. Vijai Shanker on May 4, 2015 at 10:12pm
शब्दों को नापना नहीं आता,बहुत सुन्दर प्रस्तुति, बधाई, आदरणीय ,
शब्दों को नापना नहीं आता,
बाँधना तो आता है,
कवि हैं आप, साधना भी आता है,
बस शब्दों से खेलना शुरू कर दीजिये,
खिलौनों की तरह, चोट नहीं करेंगे , कभी भी।
सादर।
Comment by kanta roy on May 4, 2015 at 9:10pm
आभार आपको आदरणीय मनोज कुमार एहसास जी
Comment by मनोज अहसास on May 4, 2015 at 8:19pm
bahut khub

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service