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जिन्दगी के गीत गाता आदमी रो जायेगा

२१२२    २१२२    २१२२   २१२

जिन्दगी के गीत गाता आदमी रो जायेगा

जिस घड़ी पत्थर का ये दिल मोम सा हो जायेगा

 

भूख से बेहाल बच्चा जो न सोया अब तलक

माँ अगर लोरी सुना दे भूखा ही सो जायेगा

 

आज तक मंदिर न जाकर कर दिया जो पाप है

माँ की सेवा से मिला आशीष वो धो जायेगा

 

मुतमइन था देख कर मैले में इंसानों की भीड़
तब न सोचा था,यहाँ बच्चा मेरा खो जाएगा

 

मानती जिस को थी दुनिया इक मसीहा आज तक

बीज नफरत के नहीं सोचा था यूं बो जायेगा

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Dr. Vijai Shanker on April 23, 2015 at 5:50am
प्रयास सराहनीय है, डॉo आशुतोष मिश्रा जी , इसके लिए तो खासतौर से
भूख से बेहाल बच्चा जो न सोया अब तलक
माँ अगर लोरी सुना दे भूखा ही सो जायेगा
बधाई , सादर।

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 22, 2015 at 11:12pm

सच कहूँ तो मुझे कुछ प्रभावित नहीं कर सकी यह ग़ज़ल, मतला पढने के बाद ही जद्दोजहद शुरू हो जाता है कि आखिर शायर कहना क्या चाह रहा है. हो सकता है और मित्रों को ग़ज़ल अच्छी लगे, सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 22, 2015 at 10:51pm

आदरणीय आशुतोष जी सुन्दर ग़ज़ल हुई है बधाई 

आदरणीय समर कबीर जी की बात पर गौर अवश्य कीजियेगा 

Comment by Shyam Narain Verma on April 22, 2015 at 4:16pm

इस लाजवाब, उम्दा ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई 

सादर

Comment by Samar kabeer on April 22, 2015 at 3:10pm
जनाब डा.अशुतोष मिश्रा जी,आदाब,सुन्दर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें |

इस शैर में :-

"जब गए थे मेले में हम सब लगे इंसान से
तब न सोचा था कि बच्चा यूं मेरा खो जायेगा"

सानी मिसरे पर ऊला मिसरा चस्पाँ नहीं हो पा रहा है,देख लीजियेगा |

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