22 22 22 22 22 2
दरवाज़े पर देखो कोई आया क्या ?
अपने हिस्से का कोलाहल लाया क्या ?
ख़ँडहर जैसा दिल मेरा वीराना, भी
खनक रही इन आवाज़ों को भाया क्या ?
कुतिया दूध पिलाती है, बंदरिया को
इंसाँ मारे इंसाँ को, शर्माया क्या ?
फुनगी फुनगी खुशियाँ लटकी पेड़ों पर
छोटा क़द भी, तोड़ उसे ले पाया क्या ?
सारे पत्थर आईनों पर टूट पड़े
कोई पत्थर ,पत्थर से टकराया क्या ?
जुगनू सहमा सहमा सा क्यों लगता है
कोई सूरज फिर उसको धमकाया क्या ?
खाली जाम सुराही प्याले पूछ रहे
किसी समस्या का निदान भी पाया क्या ?
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गिरिराज भंडारी
Comment
गहराई तो खूब है आदरणीय .. बस भर मन पानी हींच लेने (खींचने) की आवश्यकता है. .. :-)))
आदरणीय सौरभ भाई जी , आपकी बात से मै शत प्रतिशत सहमत हूँ , हमेशा था , बस , समझिये कि बोरिंग की पिछली खुदाई से पानी कम निकल रहा है और अब निस्तार के लिये ज्यादा पानी चाहिये , जल स्तर नीचे चला गया है , अब ब्लास्टिंग करवाना पड़ेगा , कोशिश मे हूँ आप लोगों का साथ है तो आज नहीं कल गहराई बढ़नी तय है ॥
आदरणीय श्याम भाई , हौसला अफज़ाई का बहुत शुक्रिया ॥
आदरणीय समर कबीर भाई , आपका बहुत बहुत आभार , गुणिजन की बातों का संज्ञान ले रहा हूँ ॥
आ. बड़े भाई गोपाल जी , आपकी आपत्ति सही है , अभी सुधार कर लूंगा , आपका आभार ।
आभार आपका , आ. नीलेश जी
बहुत सुन्दर गजल। ढेरों दाद कुबूल करें। सादर |
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