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ग़ज़ल -- हर काम यूँ करो कि हुनर बोलने लगे

221-2121-1221-212

हर काम यूँ करो कि हुनर बोलने लगे
मेहनत दिखे सभी को, समर बोलने लगे

उस बेवफ़ा से बोलना तौहीन थी मेरी
लेकिन ये मेरे ज़ख़्म-ए-जिगर बोलने लगे

तहज़ीब चुप है इल्मो-अदब आज शर्मसार
देखो पिता के मुँह पे पिसर बोलने लगे

आँखों से मैं ज़बान का ऐसे भी काम लूँ
जो भी मैं कहना चाहूँ नज़र बोलने लगे

सब हमको बुतपरस्त समझते रहे मगर
ऐसे तराशे हमने , हजर बोलने लगे

दैरो हरम के नाम पे जब शह्र बँट गया
दोनों तरफ़ से तेग़-ओ-तबर बोलने लगे

मैंने ग़ज़ल सुनाई ज़फ़र की ज़मीन में
सब दोस्त मेरे मुझको ज़फ़र बोलने लगे

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Comment by दिनेश कुमार on April 22, 2015 at 4:22pm
सराहना के लिए बहुत आभार आदरणीय Mohan Sethi 'इंतज़ार' साहब।
Comment by दिनेश कुमार on April 22, 2015 at 4:20pm
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय Dr. Vijai Shanker सर जी। आभार।
Comment by दिनेश कुमार on April 22, 2015 at 4:18pm
सराहना के लिए बहुत बहुत शुक्रिया भाई सुनील जी।
Comment by दिनेश कुमार on April 22, 2015 at 4:16pm
हौसला अफज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया भाई krishna mishra 'jaan'gorakhpuri साहब। वाकई गुस्सा शब्द शे'र को सीमित कर रहा था।
Comment by दिनेश कुमार on April 22, 2015 at 4:14pm
हौसला अफज़ाई के लिए आप का हार्दिक आभार भाई मिथिलेश जी।
Comment by दिनेश कुमार on April 22, 2015 at 4:12pm
हौसला अफज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय समर कबीर सर जी।
आप के दोनों सुझाव बहुत बढ़िया हैं। वाकई अशआर में बहुत निखार आया है। आभार। संशोधन कर लिया है सर जी।
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 22, 2015 at 10:25am

बहुत ख़ूब दिनेश साहब। अच्छी ग़ज़ल हुई है। दाद कुबूल करें।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 22, 2015 at 8:50am

बहुत खूब आ. दिनेश जी.
हर शेर पर दाद लीजिये.
समर साहब के सुझाव बहुत उपयोगी हैं. आपके लिए भी और हम जैसे सभी ग़ज़ल सीखने वालो के लिए भी. बहुत महीन बात उन्होंने बताई है.
आपको फिर बधाई
 

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on April 22, 2015 at 6:38am

आदरणीय दिनेश कुमार जी बेहतरीन शेर हर एक ....बधाई 

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 22, 2015 at 6:15am
सुन्दर , अच्छी ग़ज़ल , बधाई,आदरणीय दिनेश जी, सादर।

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