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ग़ज़ल-नूर-ख़ुदा का ख़ौफ़ करो

१२१२/ ११२२/ १२१२/ २२ (सभी संभव कॉम्बिनेशन्स)

हमें न ऐसे सताओ ख़ुदा
का ख़ौफ़ करो
ज़रा क़रीब तो आओ ख़ुदा का
ख़ौफ़ करो.
.
अभी तो हाथ में आया है मलमली दामन 
अभी न छोड़ के जाओ ख़ुदा का
ख़ौफ़ करो. 
.
न जाने कितने जनम की है तिश्नगी, आकर 
लबों का जाम पिलाओ, ख़ुदा का
ख़ौफ़ करो.
.
करेगा बातें ज़माने में जाने वो क्या क्या
अदू से दिल न लगाओ ख़ुदा का
ख़ौफ़ करो.
.

जनाब आपके ज़ुल्मो की दास्ताँ है तवील  
करम न अपने गिनाओ ख़ुदा का
ख़ौफ़ करो.
.
हुज़ूर हो के ख़फ़ा आप हम से बैठे हैं,
हमीं से मान भी जाओ, ख़ुदा का ख़ौफ़ करो.
.
कभी हमें भी मिले हक़ यूँ रूठ जाने का
कभी हमें भी मनाओ ख़ुदा का ख़ौफ़ करो.
.
ये रात फैल गयी है हमारे अंदर भी
चराग़-ए-इल्म जलाओ ख़ुदा का ख़ौफ़ करो.
.
न जाने आप ग़ज़ल किस की गुनगुनाते हैं
ग़ज़ल हमारी भी गाओ ख़ुदा का ख़ौफ़ करो.
.
नूर 
मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 853

Comment

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Comment by Samar kabeer on April 2, 2015 at 10:49pm
जनाब निलेश नूर साहिब,आदाब,पूरी ग़ज़ल एक ही सांचे में ढली हुई है,अच्छे अशआर निकाले हैं आपने,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं |
Comment by Sushil Sarna on April 2, 2015 at 8:50pm

में न ऐसे सताओ ख़ुदा का ख़ौफ़ करो
ज़रा क़रीब तो आओ ख़ुदा का ख़ौफ़ करो.
.
अभी तो हाथ में आया है मलमली दामन
अभी न छोड़ के जाओ ख़ुदा का ख़ौफ़ करो.

चूम लूं उन हाथों को जिनसे ये अशआर निकले हैं
लफ्ज़ दुआओं के इन लबों से बेशुमार निकले हैं
जनाब नीलेश जी आपकी ग़ज़ल के हर शे'र पर बंदा आपको सलाम करता है। गज़ब के अहसासों से रूबरू कराती इस बेहद दिलकश ग़ज़ल की प्रस्तुति पर आपको और आपकी सृजनशीलता को सलाम सलाम सलाम।

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 2, 2015 at 8:02pm
हुज़ूर हो के ख़फ़ा आप हम से बैठे हैं,
हमीं से मान भी जाओ, ख़ुदा का ख़ौफ़ करो.
कभी हमें भी मिले हक़ यूँ रूठ जाने का
कभी हमें भी मनाओ ख़ुदा का ख़ौफ़ करो.
बहुत अच्छी लगी ये ग़ज़ल , बधाई , आदरणीय नीलेश नूर जी, सादर।
Comment by maharshi tripathi on April 2, 2015 at 7:55pm

ये रात फैल गयी है हमारे अंदर भी 
चराग़-ए-इल्म जलाओ ख़ुदा का ख़ौफ़ करो.
.,,,,,इस सुन्दर प्रस्तुति पर बधाई आ. Nilesh Shevgaonkar  जी |

Comment by Shyam Mathpal on April 2, 2015 at 7:06pm

आदरणीय नीलेश जी,

हमारी बात मान जॉवो खुदा का ख़ौफ़ करो .....अपनी चाहत पर खुदा का वास्ता. खूब .हार्दिक बधाई.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 2, 2015 at 5:55pm

आ०  नूर भाई

इतनी समझ नहीं की गजल पर कुछ कहूं . खुदा का खौफ तारी है . सादर .

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