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ओ बी ओ पर्याय (दोहें) - लक्ष्मण रामानुज

विद्वजनों के योग से,सफल हुआ यह काज,
पाँच वर्ष के काल में, खूब सजाया साज |
 
रसिक मंच से जुड़ सके, करें कौन पाबन्द
दूर देश से जुड़ रहें,  देख  यहाँ  आनंद |  
 
छंदों को यूँ खोजकर, देते सबको ज्ञान,
मान धरोहर देश की,  लाते सबके ध्यान |
 
ह्रदय भाव से आ मिले, इक दूजे के संग,
होली से माहौल में, खिले प्रीत के रंग |
 
पाँच वर्ष की साधना, ओ बी ओ पर्याय,
कृपा करे माँ शारदा, सब पर रहे सहाय |
.
(मौलिक अ अप्रकाशित)

Views: 716

Comment

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Comment by Sushil Sarna on April 2, 2015 at 9:03pm

पाँच वर्ष की साधना, ओ बी ओ पर्याय,
कृपा करे माँ शारदा, सब पर रहे सहाय |

वाह आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लडीवाला जी ओ बी ओ के मान में रचित ये दोहे वास्तव में ओ बी ओ के सफर का पूर्ण शृंगार करते हैं।
इस हेतु आप दिल से बधाई के हकदार हैं।

Comment by Shyam Mathpal on April 2, 2015 at 7:37pm

  आ० लक्ष्मण रामानुज लडीवाला जी,

सुंदर व सामयिक दोहों के लिए बधाई.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 2, 2015 at 5:02pm

आ० लड़ींवाला जी

बढ़िया दोहे रचे आपने . बधाई हो . सादर .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 2, 2015 at 4:56pm

बहुत सुन्दर दोहे रचे आदरणीय लक्ष्मण  भाई जी , हार्दिक बधाई ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 2, 2015 at 3:28pm

आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लडीवाला सर, सुन्दर दोहावली हेतु हार्दिक बधाई 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 2, 2015 at 12:56pm

पाँच वर्ष की साधना, ओ बी ओ पर्याय,
कृपा करे माँ शारदा, सब पर रहे सहाय |

जय हो! माँ शारदा सब पर रहे सहाय!
आ० लक्ष्मण रामानुज लडीवाला सर!अभिनन्दन!

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