For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गुल से है परेशां गुलिस्तां सारा
भंवरे से दिल लगाने की ज़िद उसकी नहीं गवारा
मगर गुल जानता है कि आज काँटों का साथ
फिर माली के हाथों किसी अंजान के साथ
गुलशन से बिदाई का मसला है सारा 


बिछुड़ने का फिक्र नहीं उसको
कल का क्या.... आज तो जी लेने दो उसको
काट शाख़ से सब सूंघेंगे एक दिन
फिर अगले दिन मसल डालेंगे ये उसको

भंवरा तो रोज़ आ कर चूमता है
मंडराता है चारो तरफ लुभाता है उसको
अपनी गुंजन के गीत सुनाता है
और सुबह फिर मिलने का वादा दे जाता है उसको
क्या गुनाह हुआ है गुल से
गर भंवरे से दिल लगाने की ज़िद लगाई है
क्यों गुलिस्तां में बगावत उठ आयी है
जैसे चाहे जी लेने दो उसको 


ऐ गुलिस्तां.....
यहाँ तो सबके कटने की बारी आयी है
मगर ये बात सिर्फ़ गुल को ही समझ आयी है !!

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 476

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on March 26, 2015 at 12:33pm

आदरणीय :

Hari Prakash Dubey जी

गिरिराज भंडारी जी 

Dr Ashutosh Mishra जी 

आप सब का हार्दिक आभार  ....सादर 

Comment by Hari Prakash Dubey on March 26, 2015 at 9:25am

आदरणीय मोहन सेठी जी सुन्दर रचना , हार्दिक बधाई ,सादर !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 25, 2015 at 10:23pm

आदरणीय मोहन भाई , खूबसूरत रचना के लिये आपको बधाई ॥

Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 25, 2015 at 5:06pm

आदरणीय मोहन जी इस सुंदर कृति के लिए हार्दिक बधाई 

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on March 25, 2015 at 11:56am

आदरणीय  Shyam Mathpal जी आभार ...सादर 

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on March 25, 2015 at 11:56am

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी प्रोत्साहन के लिये धन्यवाद ...सादर 

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on March 25, 2015 at 11:55am

आदरणीय  मिथिलेश वामनकर जी आभार ...सादर 

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 24, 2015 at 8:29pm

आदरणीय मोहन सेठी जी सुन्दर रचना हेतु हार्दिक बधाई 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 24, 2015 at 5:31pm

आ० मोहन सेठी जी

मरण तो ध्रुव सत्य है . किसी को  इसकी फ़िक्र है तो किसी को नहीं है . सुन्दर भाव .  सादर .

Comment by Shyam Mathpal on March 24, 2015 at 11:23am

आ. मोहन सेठी जी, 

सुंदर रचना के लिए बधाई ..  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
7 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी, बहुत धन्यवाद"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service